नकल रोकने में नाकाम नेटबंदी, इंटरनेट बंद करने के बावजूद हुईं प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल - Khulasa Online नकल रोकने में नाकाम नेटबंदी, इंटरनेट बंद करने के बावजूद हुईं प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल - Khulasa Online

नकल रोकने में नाकाम नेटबंदी, इंटरनेट बंद करने के बावजूद हुईं प्रतियोगी परीक्षाओं में नकल

 प्रतियोगिता परीक्षाओं में नेटबंदी की जाती है। सुरक्षा के लिए तो नेटबंदी ठीक है, लेकिन अपनी प्रशासनिक अक्षमताओं को ढकने के लिए नेटबंदी गलत है। नेटबंदी करने से जनता को बहुत परेशानी होती है। अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। 75 बार नेटबंदी करके राजस्थान कश्मीर के बाद दूसरे नंबर पर है। हाल ही में बाल दिवस पर राजस्थान में आयोजित बाल विधानसभा में बाल विधायक महेश पटेल द्वारा सरकार से किया गया यह सवाल नेटबंदी के बावजूद होती नकल एवं परीक्षा प्रबंधन की विफलता को बयां करता है।

दरअसल इंटरनेट बंद करने से प्रतियोगिता परीक्षाओं में नकल और पेपर लीक की घटनाएं नहीं रुक रहीं। इंटरनेट बंद करने के बावजूद भी पिछले दिनों राजस्थान में हुईं रीट और पटवारी की परीक्षाओं में इस तरह के मामले सामने आए हैं। इंटरनेट सेवा जरूरी सेवाओं के अंतर्गत आती है और व्यापार एवं व्यवसाय से जुड़ी अधिकांश गतिविधियां इंटरनेट पर ही आधारित हैं। परीक्षाओं के दौरान इंटरनेट सेवा बंद होने से बैंक सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और बिजनेस ट्रांजेक्शन रुक जाते हैं जिससे बिजनेस को बड़ा घाटा उठाना पड़ता है।

बैंकों के अलावा इंटरनेट बैन से सबसे बड़ा नुकसान ई-कामर्स से जुड़े बिजनेस को होता है। अभी चीन दुनिया का सबसे बड़ा ई-कामर्स का बाजार है, जबकि भारत 2022 में सबसे बड़ा बाजार हो सकता है। एक आंकड़े के मुताबिक, एक घंटा इंटरनेट बंद होने से जहां चीन को 1,279 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है, वहीं भारत को यह नुकसान 45 करोड़ रुपये का उठाना पड़ सकता है। अमेरिका को यह नुकसान 394 करोड़ रुपये का हो सकता है। लिहाजा भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सरकार को अलग से कुछ व्यवस्था करनी चाहिए। नेटबंदी से शिक्षा का काम पूरी तरह से ठप हो जाता है। ऐसे सैकड़ों विद्यार्थी हैं जो इंटरनेट के जरिये ही अपनी पढ़ाई करते हैं।

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