
‘आकाशों में उड़े म्हारौ चंदौ लक्ष्मीनाथ म्हारी सहाय करे’, जूनागढ़ परिसर में उड़ा पम्परागत चंदा







पन्द्रह सौ पेंतालवे सुद बैसाख सुमेर, थावर बीज थरपियो बीके बीकानेर।
ऊँट, मिठाई स्त्री सोनो गहणो शाह, पांच चीज पृथ्वी सरे वाह बीकाणा वाह!
खुलासा न्यूज बीकानेर। जांगळ प्रदेश चंदा महोत्सव समिति द्वारा बीकानेर के 538वें स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में जूनागढ़ परिसर में जय जंगळधर बादशाह और मां करणी एवं भगवान श्री गढ गणेश के समक्ष उपस्थित होकर राजपंडित श्याम आचार्य, सिनी आचार्य, किशन आचार्य, पंडित गंगाधर व्यास ने चंदे का पूजन मंत्रोचार के साथ करवाया। साथ ही लोकगीत, ”आकाशों में उड़े म्हारौ चंदौ लक्ष्मीनाथ म्हारी सहाय करे, गवरा दादी पून दे टाबरियों रौ चंदो उड़े।’ बोलो रै छोरो आखातीज रौ तेल खिचड़ो खावै मघो मूूधड़ौ। उसके बाद जूनागढ़ के ऐतिहासिक परिसर में चंदा उडा़कर देश में अमन चैन, खुशहाली की कामना की गई।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने बताया कि बीकानेर के राजा राव बीकाजी ने 537 वर्ष पूर्व बीकानेर की स्थापना की। उन्होने मां करणी से आशीर्वाद लेकर बीकानेर नगर बसाया। बीकानेर नगर को बसाने से पहले चंदे को जहां-जहां उड़ाया और जहां-जहां चंदा गिरा वहां-वहां बीकानेर की सीमा (शफील) बनाई गई।
शिक्षाविद् राजेश रंगा ने बताया कि राव बीकाजी सूर्यवंशी राठौड़ थे और 537 वर्ष पूर्व राव बीकाजी ने चंद्रनुमा गोल आकृति की पतंग जो कि बही के कागज से बनी होती है उसके चारों ओर लाल और केसरिया रंग का कपड़े का उरेब लगाकर उसके ऊपर सरकंडे लगाकर सूर्य की किरणो जैसा गोल आकृति का चंदा प्रतीत होता है और बीकानेर की पगड़ी को पूछ बनाकर नमस्कार करते हुए बीकानेर की अमन चैन खुशहाली के लिए कामना करते हुए बीकानेर का वैभव सदियों-सदियों तक कायम रहे।
इस अवसर पर श्री जानकीनारायण श्रीमाली ने बताया कि सिंधु नदी के पश्चिम और यमुना नदी के पूर्व के विशाल क्षेत्र पर दिग्विजय प्राप्त कर बीकानेर राज्य की स्थापना की। राव बीकाजी बीकानेर स्थापना दिवस के अवसर पर अपनी 22 गज की पगड़ी के साथ 7 फिट का चंदा बनाकर आकाश में उडाकर यह संदेश दिया कि बीकानेर की कीर्ति अनंत काल तक अछुण रहेगी।
इस अवसर पर कृष्णचंद्र पुरोहित ने बताया कि राव बीकाजी अपने काल में चंदों के माध्यम से जनता तक संदेश पहुंचाते थे। उस समय जनता तक संदेश पहुंचाने का एक मात्र जरिया चंदा ही हुआ करता था। क्योंकि उस जमाने में आधुनिक संचार के साधन नहीं थे। चंदा एक घर से दूसरे घर उड़ाया जाता था उस चंदे को कोई भी फाड़ता नहीं था, कोई चोरी नहीं करता था और जो भी इस तरह कि घटना घटित करता था तो उसे राजा द्वारा उसे दंडित किया जाता था और जुर्माने के रूप में 1 रूपया लिया जाता था। आज के युग में टीवी मोबाईल सब कुछ है और सोशल मीडिया का जमाना है लेकिन आज भी चंदे के माध्यम से संदेश पहुंचाने की परंपरा को जीवित रखे हुए है और जनता एवं प्रशासन तक विभिन्न समयानुकूल संदेश पहुंचाते है जिसमें जल ही जीवन है पर्यावरण से सबंधित है संदेश है पेड लगाओ, पशु पक्षियों को बचाने के लिए संदेश है चाईनीज मांझे का बहिष्कार है और बाल विवाह अपराध है अनेकों प्रकार की कला संस्कृति मे बीकानेर की विभिन्न कला जैसे कि बीकानेर गोल्डन आर्ट, मीनिचर आर्ट, मथेरण आर्ट, मॉडर्न आर्ट आदि कलाओं के जरिए इस चंदे पर अपने भाव को अभिव्यक्त कर बीकानेर की समस्याओं को अभिव्यक्त करते हुए और जन-जन तक संदेश पहुंचाते है।
इस अवसर पर कनाड़ा, आस्ट्रेलिया, बैल्जियम और स्पेन से आए हुए पर्यटकों ने बीकानेर स्थापना दिवस की बधाई देते हुए चंदा उड़ाया। मिस्टर डेजर्ट एवं रोबीले चंदा कार्यक्रम में शामिल हुए जो कि शाम्भा बीकानेरी, सत्यदेव किराडू (कबाड़ी काका) किशोर कल्ला (हैप्पी), मोहित पुरोहित, आदित्य पुरोहित, मोहित जोशी, कंवरलाल चौहान, सोनू, पंडित गंगाधर व्यास, भगवान सुथार, कला विशेषज्ञ डॉ. राकेश किराडू, आशीष रंगा, कार्तिक मोदी, ट्युरिस्ट गाईड सुभाष कच्छावा और महादेव जोशी इत्यादि गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

