
मोदी सरकार ने सिंधु जल संधि को लेकर लिया बड़ा फैसला, केंद्र के इस मंत्री ने किया बड़ा खुलासा







मोदी सरकार ने सिंधु जल संधि को लेकर लिया बड़ा फैसला, केंद्र के इस मंत्री ने किया बड़ा खुलासा
ndus Water Treaty :- मोदी सरकार ने सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के तहत भारत को आवंटित जल संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने मंगलवार, 10 जून 2025 को घोषणा की कि सरकार जम्मू-कश्मीर में जलविद्युत परियोजनाओं (Hydroelectric Projects) की जल भंडारण क्षमता बढ़ाने पर काम कर रही है। यह रणनीति देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने, जल प्रबंधन को बेहतर बनाने, और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने की दिशा में एक दीर्घकालिक योजना का हिस्सा है।
हरियाणा के मुक्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में प्रारंभिक चरण की जलविद्युत परियोजनाओं में जल भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए विशेष डिजाइन और तकनीकी योजनाएं तैयार की जाएंगी। यह कदम सिंधु जल संधि के तहत भारत को मिलने वाले जल संसाधनों का अधिकतम और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करेगा। हालांकि, जिन परियोजनाओं की तकनीकी डिजाइन पहले ही अंतिम रूप ले चुकी हैं, उनमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा, क्योंकि इससे समय और संसाधनों की बर्बादी हो सकती है। खट्टर ने कहा, “हमारा उद्देश्य भारत के जल संसाधनों का उपयोग अपनी ऊर्जा और कृषि जरूरतों के लिए करना है। जम्मू-कश्मीर में नई परियोजनाओं को इस तरह डिजाइन किया जाएगा कि वे अधिक जल संग्रहण और बाढ़ नियंत्रण में सहायक हों।”
क्या है सिंधु जल समझौता
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक जल-बंटवारा समझौता है। इसके तहत:
पूर्वी नदियां (सतलुज, ब्यास, रावी): भारत को इनका पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है, जिनका औसत वार्षिक प्रवाह 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) या 41 बिलियन क्यूबिक मीटर है।
पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब): इनका अधिकांश जल (135 MAF या 99 बिलियन क्यूबिक मीटर) पाकिस्तान को आवंटित है, लेकिन भारत को इनका सीमित गैर-उपभोगी उपयोग (जैसे जलविद्युत, नौवहन, और मछली पालन) की अनुमति है।
23 अप्रैल 2025 को पहलगाम आतंकी हमले (जिसमें 26 लोग मारे गए) के बाद भारत ने संधि को निलंबित कर दिया था, जिसे पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का जवाब माना गया। इस निलंबन के बाद भारत ने जल प्रबंधन और जलविद्युत परियोजनाओं पर अपनी रणनीति को और आक्रामक रूप से लागू करना शुरू किया।
भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में पांच प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं को तेजी से पूरा करने पर काम कर रही है, जिनमें शामिल हैं:
बुरसार (800 मेगावाट)
दुलहस्ती II (260 मेगावाट)
स्वालकोट (1856 मेगावाट)
उरी स्टेज II (240 मेगावाट)
किरथाई II (930 मेगावाट)
इन परियोजनाओं से अगले 3-5 वर्षों में 4000 मेगावाट बिजली उत्पादन की उम्मीद है। संधि के निलंबन के बाद भारत को अब इन परियोजनाओं के डिजाइन और संचालन में पाकिस्तान की आपत्तियों का सामना नहीं करना पड़ेगा, जिससे निर्माण प्रक्रिया तेज होगी। साथ ही, रावी नदी पर शाहपुरकांडी बांध (2024 में पूरा) और उझ बांध जैसी परियोजनाएं भारत के जल उपयोग को और बढ़ाएंगी।
जल भंडारण क्षमता बढ़ाने से जलविद्युत उत्पादन में वृद्धि होगी, जिससे जम्मू-कश्मीर और उत्तरी राज्यों की बिजली मांग पूरी होगी। बढ़ी हुई भंडारण क्षमता बरसात में बाढ़ के जोखिम को कम करेगी और सूखे के समय सिंचाई के लिए जल उपलब्ध कराएगी। ये परियोजनाएं स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगी और रोजगार के अवसर पैदा करेंगी। संधि के निलंबन और जल प्रबंधन की नई रणनीति को पाकिस्तान के खिलाफ एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, खासकर आतंकवाद के मुद्दे पर।


