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मौके पर हो दूध का दूध और पानी का पानी, वरना अभियान चलते रहेंगे और लोग जहर पीते रहेंगे

पत्रकार, कुशाल सिंह मेड़तियां की विशेष रिपोर्ट
खुलासा न्यूज, बीकानेर। खाद्य पदार्थों में मिलावट को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा ‘शुद्ध के लिए युद्ध’ अभियान चलाया जाता है, जो अभी बीकानेर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहा है। इस अभियान के तहत बुधवार को लूनकरणसर व नापासर में स्वास्थ्य विभाग की टीम द्वारा सैंपल लिये गए। इन सैंप्लस को जांच के लिए लैब में भेजा जाएगा, जिसमें पता चलेगा कि शुद्धता कितनी है। लेकिन इस बीच यह बात भी प्रमुखता से निकलकर सामने आ रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों की बजाय दूध व दूध से बने प्रोडक्ट्स की डिमांड या यूं कहे कि खपत शहर में अधिक है, जिसकी यह बानगी है कि जगह-जगह दूध की मिनी डेरियां दूध बेच रही हैं, दूध से बने प्रोडक्ट्स की सैकड़ों फैक्ट्रियां व स्टोर हैं लेकिन इन पर जांच तभी देखने को मिलती है जब होली या दिवाली का त्यौहार आता है। इन त्यौहार से पहले स्वास्थ्य विभाग का अभियान चलता है, जिसमें अभियान को सार्थक बनाने के लिए कुछेक दुकानों या स्टोर्स पर छापेमारी कर सैंपल इक्कटे किये जाते है, लेकिन उन सैंपल के परिणाम आज तक सार्वजनिक तौर पर सामने नहीं आये। इसी का नतीजा है कि आज मिलावटखोर हावी है। शहर के कई स्थानों पर मिलावट माफिया सक्रिय है, जिनकी न कोई जांच होती है और न ही किसी प्रकार की कोई कार्रवाई। हाल वर्तमान में सर्दी को मौसम को देखते शहर में जगह-जगह घेवर, फीणी की दुकानें सजी हुई, जिनमें बिकने वाले पदार्थों में शुद्धता कितना है, इस पर जांच नहीं हो रही।

यह मिलावटी जहर केवल बीकानेर की जनता को नहीं, बल्कि अन्य शहरों में भी यहां से सप्लाई किया जाता है, जो कई दफा बाजारों में बिकने से पहले पकड़ा जा चुका है। आमजन के स्वास्थ्य के साथ हो रहे इस खिलवाड़ को रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा किये जा रहे अब तक के प्रयासों से यह नहीं लगता कि मिलावटखोरी पर भी कभी अंकुश लग पाएगा, क्योंकि इसका मुख्य बड़ा कारण यह है कि यह अभियान निरंतर नहीं है, दूसरा कारण यह भी है कि विभाग द्वारा लिये जाने वाले सैंप्लस के परिणाम महीनों तक नहीं आते। अगर वास्तव में जनता को इस जहर से बचाना ही है तो पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरना पड़ेगा। बकायदा एसीबी की तरह विभाग में एक अलग ही टीम बनाई जानी चाहिए जो सिर्फ मिलावटखोरों पर ही नजर रखे। शिकायत मिलते ही तुरंत एक्शन हो जाए। टीम के पास एक ऐसी जांच मशीन होनी चाहिए जो मौके पर ही दूध का दूध और पानी का पानी कर दे। अन्यथा ये अभियान यूं ही चलते रहेंगे और लोग जहर पीने के लिए मजबूर होते रहेंगे।

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