
गुरु गोबिंद सिंह का शहीदी दिवस, जानें-उनके अंतिम संस्कार पर चमत्कार की कहानी





गुरु गोबिंद सिंह ने 1708 में 7 अक्टूबर को महाराष्ट्र के नांदेड़ में स्थित श्री हुजूर साहिब में अपने प्राणों का त्याग किया था. तभी से इस दिन को शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. हालांकि, उनके अंतिम संस्कार के बारे में बहुत सी अनोखी बातें कही जाती हैं. कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह जी की अंत्येष्टि चिता का निर्माण एक झोंपड़ी के रूप में किया गया था और गुरुजी अपने नीले घोड़े पर सवार होकर अंतिम संस्कार की चिता पर आए थे.
किसी भी दाह संस्कार के बाद, शरीर के कुछ अवशेष जरूर रह जाते हैं लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी के मामले में ऐसा नहीं था. कहा जाता है कि उनकी चिता से उनके या उनके घोड़े की कोई राख तक नहीं मिली. उनकी अंत्येष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं मिला जिससे कहा जा सके कि यहां पर किसी शरीर का अंतिम संस्कार भी हुआ था. आइए जानते हैं गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन की कुछ अहम बातें.
गुरु गोंबिंद ने कहा, ‘जो मुझसे मिलने की इच्छा रखते हैं, वो मुझे भजन-कीर्तन में खोजें.’ इसके बाद उन्होंने अपना लिखा भजन गाया. उन्होंने सभी सिखों से गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरू मानने को कहा. उन्होंने कहा कि जो लोग भगवान से मिलना चाहते हैं, वे उन्हें अपने भजन में पा सकते हैं. खालसा का शासन होगा और इसके विरोधियों के लिए कोई जगह नहीं होगी. अलग हो चुके लोग एकजुट होंगे और सभी अनुयायियों को बचाया जाएगा.
उस दिन गुरुगाड़ी लंगर को कहीं और स्थानांतरित किया गया था. इसमें विभिन्न प्रकार के भोजन परोसे गए. इसके बाद गुरु ने खुद अपनी चिता की तैयारी की. इसके चारों तरफ दीवार बनाई गई. गुरु गोबिंद सिंह ने कहा कि उनकी चिता को आग लगाने के बाद कोई भी अंगीठा साहिब को नहीं खोलेगा और ना ही उनकी मृत्यु के बाद किसी भी तरह की समाधि बनाई जाएगी. गुरु जी अपनी चिता के पास गए. इस दौरान लोग बुरी तरह रो रहे थे. आग की ऊंची-ऊंची लपटों के बीच गुरु जी अचानक अपने घोड़े के साथ गायब हो गए.

