
महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय : बोले कुछ अधिकारी नहीं चाहते विकास






बीकानेर। बीकानेर की महाराजा गंगासिंह युनिवर्सिटी को नेक की टीम ने पिछले दिनों ष्ट ग्रेड दिया। राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री के शहर की इस सरकारी युनिवर्सिटी को इतने घटिया स्तर पर आंकने के पीछे जो कारण सामने आए हैं, वो बड़े चौंकाने वाले हैं। नेक निरीक्षण के बाद कुल 9 पायदान पर परिणाम देती है, इसमें ये युनिवर्सिटी आठवें पायदान पर रही। अब युनिवर्सिटी की ओर से नेक निरीक्षण के पहले खर्च कि गए करोड़ों रुपए पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
दरअसल, युनिवर्सिटी को पांच मुख्य बिन्दुओं में लचर प्रदर्शन के कारण ये शमर्नाक ग्रेड मिली है। इसमें सबसे बड़ा कारण है गलत व आधी अधूरी सूचनाएं देना।युनिवर्सिटी ने निरीक्षण से पहले जो कागजात नेक की टीम को सौंपे थे, उसमें और हकीकत में काफी अंतर था। वहीं रिसर्च के तौर पर युनिवर्सिटी का परिणाम शून्य रहा। युनिवर्सिटी प्रशासन ये भी स्पष्ट नहीं कर पाया कि सामाजिक तौर पर उनके शिक्षकों का समाज में क्या योगदान है।
डिपार्टमेंट दो गुना बता दिए
युनिवर्सिटी को मान्यता मिलने के बाद नेक निरीक्षण तक पांच डिपार्टमेंट ही मिले थे लेकिन पूर्व में भेजी गई रिपोर्ट में दस डिपार्टमेंट बताये गए। ऐसे में निरीक्षण में महज पांच डिपार्टमेंट को ही सरकार से मान्यता मिली। ऐसे में गलत सूचना देने से नंबर कट गए। दरअसल, युनिवर्सिटी ने उन डिपार्टमेंट को भी शामिल कर दिया जो सेल्फा फाइनेंस पर चल रहे हैं। जिसमें राजस्थानी, जीयोग्राफी और साइबर क्राइम जैसे विभाग शामिल है। यह विभाग सरकार की ओर से मान्यता प्राप्त नहीं है।
युनिवर्सिटी में नहीं हो रहा रिसर्च
बीकानेर की इस युनिवर्सिटी में किसी तरह का कोई रिसर्च नहीं हो रहा है। यह मानते हुए नेक टीम ने रिसर्च के खाते में रूत्रस् को कोई अंक नहीं दिए। दरअसल, युनिवर्सिटी ने रिसर्च तो किया है लेकिन रिपोर्ट में इसे दर्ज नहीं किया गया। युनिवर्सिटी में शैक्षणिक स्तर के 59 पद है लेकिन महज 17 ही कार्यरत है। खास बात यह है कि कुछ विभाग ऐसे भी है, जिसमें एक भी पद भरा हुआ नहीं है। कुछ रिसर्च स्कूल खोलने की घोषणाएं कागजों तक ही सीमित पाई गई। जो रिसर्च सच में हुआ है उसे रिपोर्ट में दिखाया नहीं गया।
कॉलेज ने गोल्ड जीते, युनिवर्सिटी ने अपने गिना दिए
खेल के क्षेत्र में भी युनिवर्सिटी कोई खास उपलब्धि नहीं जता सकी। रिपोर्ट में उन सरकारी व निजी कॉलेज के स्पोटर्सस एचीवमेंट गिना दिए गए जो युनिवर्सिटी से एफिलेटेड है। नेक टीम ने स्पष्ट कहा कि ये उपलब्धि कॉलेज की है न कि युनिवर्सिटी की। अगर युनिवर्सिटी के स्टूडेंटस् ने कोई गोल्ड जीता है तो उसका उल्लेख किया जाना चाहिए। युनिवर्सिटी ने भी अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन उसे सही तरीके से पेश नहीं किया गया।
इन संस्थाओं ने क्या किया?
युनिवर्सिटी में हृष्टष्ट, हृस्स् और स्काउट है लेकिन पिछले सालों में इन तीनों संस्थाओं ने क्या काम किया? इस बारे में कोई अधिकृत जानकारी नेक टीम को नहीं दी गई। दरअअसल, तीनों का ही प्रजेंटेशन चलर रहा। ऐसे में सामाजिक योगदान के क्षेत्र में कोई खास अंक नहीं मिल सके।
करोड़ा का खर्च भी बेकार
नेक निरीक्षण से पहले युनिवर्सिटी ने करोड़ों रुपए खर्च कर दिए। इसके बाद भी परिणाम नहीं मिल पाया। इस खरीद को लेकर भी अब सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि परम्परा से हटकर वाइस चांसलर ने ही खरीद के लिए कार्य आदेश अपने हस्ताक्षरों से जारी कर दिए। जो खर्च किए गए उनमें फनीर्चर खरीद पर डेढ़ करोड़ रुपए, कम्प्यूटर खरीद पर डेढ़ करोड़ रुपए, स्मार्ट क्लास व वीडियो कांफ्रेसिंग के लिए ढाई करोड़ रुपए, प्रिंटिंग पर एक करोड़ रुपए व लेब इत्यादी पर भी एक से डेढ़ करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए।
स्टाफ ही नहीं है।


