संकल्प एक ही हो, इंसान हम बनेंगें- आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. - Khulasa Online संकल्प एक ही हो, इंसान हम बनेंगें- आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. - Khulasa Online

संकल्प एक ही हो, इंसान हम बनेंगें- आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

चिंता अंधेरा और चिंतन  दूर करने वाला उजाला – आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.
नन्दी सूत्र: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में व्याख्यान मंगलवार को
बीकानेर। सोच दो तरह की होती है। एक नकारात्मक, दूसरी सकारात्मक सोच होती है। नकारात्मक निराशा पैदा करती है, निराशा से कुंठा पैदा होती है, कुंठा से भय और भय से चिंता होती है। यह व्यक्ति को खण्डित कर देती है। वहीं सकारात्मक सोच से उत्साह, उत्साह से ऊर्जा, ऊर्जा से आशा और आशा से अभिलाषा तथा अभिलाषा से व्यक्ति कार्य संपादित करता है। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के १००८ आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने सोमवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में नित्य प्रवचन के दौरान यह बात कही।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने अपने नित्य प्रवचन में साता  वेदनीय कर्म के आठवें बोल सम्यक ज्ञान में रमण करता जीव साता वेदनीय कर्म का उपार्जन करता है के सम्यक ज्ञान के तीसरे अवदान च्सम्यक ज्ञान का वरदान क्या हैज् के विषय पर अपना व्याख्यान दिया।  महाराज साहब ने एक भजन की पंक्तियां च्संकल्प एक ही हो, इंसान हम बनेंगे, इंसान बन गए तो, भगवान भी बनेगें, हम जैन, बोद्ध, मुस्लिम, हिन्दू हो या ईसाइ, आपस में भाई-भाई, सह ही गले मिलेगें, हम एक ही चमन के, हैं फूल न्यारे- न्यारे, लगते हैं कितने सुन्दर, मिलते रहें खिलेंगे। सुनाकर इसका भावार्थ बताते हुए कहा कि सकारात्मक सोच वाले सोचते हैं कि एक दिन इंसान बन जाऊंगा और जो इंसान बन जाते हैं, वह भगवान भी बन जाते हैं। लेकिन भगवान ऐसे ही नहीं बना जाता, इससे पहले इंसान बनना पड़ता है। महाराज साहब ने कहा कि इंसान भी दो प्रकार के होते हैं। एक आकृति का इंसान और दूसरा प्रकृति (स्वभाव)का इंसान, हम इंसान तो हैं लेकिन आकृति के इंसान हैं। जिसके हाथ, पांव, नाक, कान, मुंह सब होते हैं लेकिन उसमें प्रकृति नहीं होती। जबकि जरूरत प्रकृति के इंसान बनने की है। सकारात्मक सोच ही हमें प्राकृतिक इंसान बनाती है। सकारात्मक सोच से ही हमें सम्यक ज्ञान की प्राप्ति होती है। महाराज साहब ने बताया कि सुबह स्वाध्याय में डायरी पढ़ रहा था, जिसमें चिंता और चिंतन के विषय में अन्तर पूछा गया था। पुज्य गुरुदेव का बहुत ही मार्मिक जवाब मिला।  अब क्या या होगा….?, यह चिंता है और अब क्या हो सकता है!, यह चिंतन है। हमें यह चिंतन करना चाहिए कि हमें चिंता में रहना है या चिंतन में, चिंता अंधेरा है और चिंतन अंधेरे को दूर करने वाला उजाला है। हमें उजाले की ओर बढऩा चाहिए।
चिंता पुरुष का बल, स्त्री का सौंदर्य और संत का ज्ञान
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि मानव प्रकाशप्रिय होता है। द्रव्य प्रकाश का चिंतन करो, जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। जो होगा अच्छा ही होगा, यह सोच हमें चिंता मुक्त करती है। कहा भी गया है तमसो मा ज्योतिर्गमय- तू प्रकाश की ओर चल, चिंतन हर समस्या का समाधान होता है। चिंता किसी समस्या का समाधान नहीं है। ज्ञानीजन कहते हैं चिंता पुरुष का बल, स्त्री का सौंदर्य और संत का ज्ञान हर लेती है। प्रकृति ने पुरुष को बलवान बनाया, स्त्री को जन्मजात सौंदर्य प्रदान किया और संत-साधु ज्ञानवान होते हैं। लेकिन अगर यह तीनों चींता में पड़ जाएं तो इनके गुण चिंता हर लेती है।
सकारात्मक हो संकल्प हमारा
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने फरमाया कि हमारा संकल्प होना चाहिए कि मैं एक अच्छा इंसान बनूंगा, सच्चा इंसान बनूंगा। यह हमारी सकारात्मक सोच हमें आगे बढ़ाती है। भले ही हम सामायिक करें ना करें, तपस्या करो ना करो, कोई बात नहीं लेकिन सोच सकारात्मक होनी चाहिए।
नन्दी सूत्र: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में व्याख्यान आज
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि मंगलवार सुबह सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में  मूलागम पर व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित होगा। इसमें नन्दी सूत्र: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विषय पर जैन विश्वविद्यालय बैंगलुुरु की डॉ. तृप्ति जैन विशेष व्याख्यान देंगी। कार्यक्रम की संयोजिका जोधपुर की डॉ. श्वेता जैन और सहसंयोजिका  दर्शना बांठिया होंगी।

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