दसवीं बार चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे कल्ला को करना पड़ रहा संघर्ष, भाजपा की बजाय कांग्रेस में मिल रही चुनौती

दसवीं बार चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे कल्ला को करना पड़ रहा संघर्ष, भाजपा की बजाय कांग्रेस में मिल रही चुनौती

पत्रकार, कुशाल सिंह मेड़तिया की विशेष रिपोर्ट

खुलासा न्यूज, बीकानेर। राजस्थान की सरकार में सबसे वरिष्ठ मंत्री और पिछले 43 सालों से बीकानेर में कांग्रेस की पहचान होने के बावजूद इस बार फिर मंत्री बीड़ी कल्ला के लिए चुनाव से पहले चुनौतियां देखने को मिल रही है। 1980 से 2018 के 9 चुनाव कांग्रेस से हर बार कल्ला ही उम्मीदवार रहे हैं। पिछली बार कांग्रेस ने लगातार दो बार हारे नेताओं को टिकट नहीं दी लेकिन एकबार टिकट कटने के बाद भी कल्ला खुद की टिकट लाने में सफल रहे। राजस्थान कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार होने के बावजूद कभी भी बीड़ी कल्ला अपनी पार्टी में टिकट के मामले में सर्वमान्य नहीं बन पाए। हर चुनाव में भाजपा की बजाय खुद की पार्टी में कल्ला को ज्यादा चुनौती मिलती रही है और ऐसा इस बार के चुनाव में भी देखने को मिल रहा है।

बड़ा राजनीतिक कद, लेकिन घर में चुनौती

लेकिन इस बार चुनौती कुछ ज्यादा ही मिल रही है या यूं कहें कि पार्टी में कल्ला के विपरीत ध्रुव के नेता एकराय होते नजर आ रहे हैं। दरअसल यह पूरा मामला कल्ला के उस बयान के बाद और ज्यादा चर्चा में आ गया जब कल्ला ने कांग्रेस ही नहीं भाजपा में उनके मुकाबले कोई उम्मीदवार नही होने की बात कही। भाजपा में भले ही कल्ला के इस बयान को लेकर कोई टिप्पणी नहीं हुई हो, लेकिन उससे पहले कांग्रेस में बीकानेर पश्चिम से टिकट के दावेदार एक-एक कर कल्ला के सामने काउंटर बयानबाजी करते हुए नजर आए। प्रदेश कांग्रेस के सचिव रहे राजकुमार किराडू, यूथ कांग्रेस से अरुण व्यास और मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी लोकेश शर्मा की बीकानेर पश्चिम से खुलकर दावेदारी देखने को मिल रही है तो वहीं अल्पसंख्यक वर्ग से गुलाम मुस्तफा बाबू भाई के साथ ही अन्य लोगों ने भी दावेदारी की है।

खुद कर रहे दावा

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नेता प्रतिपक्ष कार्मिक, शिक्षा,जलदाय, बिजली, नगरीय विकास विभाग संस्कृत शिक्षा विभाग कला संस्कृति विभाग उच्च शिक्षा विभाग जैसे अनेक विभागों के मंत्री रहने के बाद भी कल्ला को खुद के टिकट के लिए संघर्ष करते देखा गया है। हालांकि इस बार भी खुद ही चुनाव लडऩे की बात कल्ला कह रहे हैं।

दो बार हारकर जीते

2018 में कल्ला ने छह हजार वोट से भले ही जीत गए। लेकिन जीत का ये अंतर ज्यादा नहीं है। पांच साल तक सरकार में मंत्री रहने के बाद अब एक बार फिर से कल्ला मैदान में उतरने की बात कहते हुए अपने विकास के दम पर जनता का सहयोग मिलने का भरोसा जताते हैं लेकिन सत्ता के विरोध की स्वाभाविक प्रतिक्रिया का लाभ भाजपा को भी मिलेगा। पिछली बार लगातार दो बार हारने और प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की सहानुभूति भी कल्ला के लिए संजीवनी बनी।

इस बार भी चुनौती

प्रदेश में ऐसे कई नेता है जिनका राजनीतिक अनुभव और कद कल्ला के मुकाबले कमतर है। बावजूद भी वह खुद की सीट नहीं बल्कि आसपास की सीटों पर भी टिकट के वितरण में दखल रखते हैं। लेकिन कल्ला को अपनी ही सीट पर चुनौती मिलना अपने आप में एक संघर्ष है।

अब क्या…

हालांकि अपने बयानों से कॉन्फिडेंट नजर आ रहे कल्ला खुद के चुनाव लडऩे की बात कहते हैं लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव नहीं है ऐसे में यदि यह मान भी लिया जाए तो भी टिकट की यह लड़ाई कल्ला के लिए आसान तो नजर नहीं आती। हालांकि असली परीक्षा टिकट मिलने के बाद चुनाव मैदान में है जो की पूरी तरह से जनता के आशीर्वाद पर ही निर्भर है।

Join Whatsapp 26