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क्या वसुंधरा राजे को हाशिए पर करने की हो रही कोशिश? केंद्रीय नेतृत्व से चल रहा टकराव खुलकर आया सामने

नई दिल्ली। राजस्थान बीजेपी में चल रहा घमासान खुलकर सामने है। यह घमासान नया नहीं है लेकिन इसमें आए दिन नए-नए ट्विस्ट जुड़ते जा रहे हैं। राजस्थान की पूर्व सीएम और बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे के समर्थक अलग मंच बना चुके हैं। सोशल मीडिया में अपने अपने नेता को सबसे बड़ा बताने सहित बयानबाजी भी जारी है। राजस्थान में राज करने वाली वसुंधरा राजे क्यों असहज हैं? राजस्थान में बीजेपी के भीतर जो जंग वसुंधरा बनाम पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की चल रही है, दरअसल वह लड़ाई वसुंधरा बनाम पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की है।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले से ही यह जंग खुलकर दिखने लगी थी। राजस्थान में पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष कौन होगा इसे लेकर केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे में एकदम ठन गई थी। जहां पार्टी नेता अमित शाह किसी और को प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे वहीं वसुंधरा अपनी पसंद के अध्यक्ष के अलावा किसी और स्वीकार करने को तैयार ही नहीं थीं।
वसुंधरा और केंद्रीय नेतृत्व के बीच का संघर्ष
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अविनाश कल्ला कहते हैं कि जब भी किसी पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव होता है तो ऐसा होता ही है। आज से दो दशक पहले जब वसुंधरा राजे आईं थी उस वक्त भी कई बड़े नेता नाराज थे। राजस्थान में सिर्फ बीजेपी में ही नहीं बल्कि कांग्रेस में भी पीढ़ीगत बदलाव हो रहा है। जब भी नई लीडरशिप आती है तो पुराने वाले यथास्थिति बदलने को तैयार नहीं होते। वसुंधरा राजे भी अपनी पोजिशन बरकरार रखने के लिए अपनी ताकत दिखा रही हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। जब वसुंधरा राजे का मुख्यमंत्री के तौर पर आखिरी कार्यकाल चल रहा था तो बीजेपी नया प्रदेश अध्यक्ष तय कर रही थी, तब भी वसुंधरा और केंद्रीय नेतृत्व के बीच 72 दिन तक गतिरोध चलता रहा।
बीजेपी ने सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है उन्होंने जमीनी स्तर की राजनीति की है। वह अब अपने हिसाब से और केंद्रीय नेतृत्व के हिसाब से फैसले ले रहे हैं। यही संघर्ष की वजह भी है। वह कहते हैं कि जब वसुंधरा राजे पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद दूसरी बार अशोक गहलोत को चैलेंज कर रही थीं, तब इस तरह की खूब खबरें आई कि वह अपनी नई पार्टी बना लेंगी। नतीजा यह हुआ कि उस वक्त के प्रदेश अध्यक्ष को हटाकर वसुंधरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और फिर वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। वह पुरानी नेता हैं और इतनी जल्दी अपनी पोजिशन से नहीं हटेंगी। बीजेपी के भीतर जो चल रहा है यह राज्य से ज्यादा वसुंधरा और केंद्रीय नेतृत्व के बीच का संघर्ष है।
बैठकों में न जाकर भी दिखाई नाराजगी
एक तरफ वसुंधरा राजे राजस्थान बीजेपी संगठन की मीटिंग में कोई न कोई बहाना बनाकर नहीं जा रही हैं, वहीं उनके समर्थक खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं। वसुंधरा न तो प्रदेश संगठन की बैठक में शामिल हुईं, न वह विधानसभा में बीजेपी विधायक दल की बैठक में गईं। जब राजस्थान में कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी उनकी सरकार गिराने की कोशिश कर रही है और कांग्रेस के विधायकों को तोड़ रही है तो उस वक्त भी कहा गया कि बीजेपी की कोशिश इसलिए सफल नहीं हो पाई क्योंकि वसुंधरा समर्थक विधायक साथ नहीं थे। पिछले महीने उनके समर्थकों ने वसुंधरा राजे समर्थक मंच ही बना दिया और इसकी कार्यकारिणी भी बना ली है। इसमें बीजेपी के ही लोग हैं।
निकाय चुनाव में बीजेपी के पिछडऩे के पीछे मानी जा रही यही वजह
राजस्थान में पिछले दिनों हुए निकाय चुनाव में बीजेपी ने जो सीट गंवाई उसके लिए वसुंधरा समर्थकों ने आपसी संवाद की कमी को वजह बताया। वसुंधरा समर्थकों ने नतीजों के बाद संयुक्त बयान जारी किया कि व्यक्ति विशेष के इशारे पर बीजेपी के गढ़ को धरातल से रसातल में पहुंचाया जा रहा है। अगर स्थिति ऐसी ही रही तो बीजेपी की नैया डूबने से कोई नहीं बचा सकता। व्यक्ति विशेष के इशारे पर प्रदेश संगठन ने जनआधारहीन लोगों को चुनाव प्रभारी बनाया। कुछ दिन पहले वसुंधरा समर्थक विधायक प्रताप सिंह सिंघवी ने कहा कि वसुंधरा ही मेरी और पार्टी की सर्वमान्य नेता हैं। उन्हें इग्नोर किया जाता है तो यह पार्टी के लिए अच्छा नहीं है।

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