क्या जिलें की यूआईटी ठेके पर है

क्या जिलें की यूआईटी ठेके पर है

भीलवाड़ा। नगर विकास न्यास (यूआईटी) में तीन बड़े अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद निर्माण स्वीकृति एवं बिलों के भुगतान में कमीशनखोरी के बड़े खेल की परते उधडऩे लगी है। मोटा कमीशन बंटने से अधिकांश अभियंता न्यास कार्यों को लेकर आंखे मूंदे है। उनकी मूक चुप्पी से न्यास मेंं कई संवेदक मनमर्जी का खेल कर रहे है। हालात यह है कि कई तय समय में काम पूरा नहीं करने के बावजूद नए ठेके ले रहे है। हल्ला मचने पर अधिकारी महज नोटिस थमा कर चुप्पी साधे है। कईयों के तो टेंडर होने के बावजूद निर्माण कार्य ही अभी तक शुरू नहीं हो सके। ब्लेकलिस्टेट होने के बावजूद कईयों को निर्माण का मनचाहा काम मिला हुआ है। इनमें कई संवेदक तो राजनीतिक दबाव तक बनाए हुए है। बिलों के भुगतान में कमीशन का खेल जगजाहिर होने से छोटे स्तर के संवेदकों का भी न्यास से मोह भंग होने लगा है।
यूं हो रहा मनमर्जी का खेल पटेलनगर योजना क्षेत्र में न्यास ने एक नाले पर बनी पुलिया को चौड़ा करने के लिए दो करोड़ रुपए का वर्क आडॅर जारी कर रखा है। पत्रिका ने पड़ताल की तो सामने आया कि पुलिया से अभी वाहनों व लोगों की आवाजाही नाम मात्र की है, यहां की आबादी भी कम है, लेकिन संवेदक व प्रभावशालियों की करोड़ों की जमीन समीप होने से यहां छोटी से बड़ी पुलिया का निर्माण करवाया जा रहा है।
सर्किलों पर बहा रहे पैसा शहर के अधिकांश सर्किल न्यास ने ठेके पर दे रखे है, लेकिन अधिकांश सर्किलों की हालत खस्ता है। अहिंसा सर्किल, कुम्भा सर्किल, पन्नाधाय सर्किल, पांसल चौराहा सर्किल, देवनारायण सर्किल के हाल सर्वाधिक बुरे है। सर्किलों के सौंदर्यीकरण व समीप नाली व नालों पर निर्माण के नाम पर लाखों रुपए खर्च होने के बावजूद न्यास के संबधित अधिकारियों ने यहां की गुणवत्ता की जांच परख नहीं की। न्यास पेराफरी के अधिकांश उद्यानों तथा गौरव व प्रगति पथ आदि मुख्य मार्गों के रखरखाव भी अधिकारियों की अनदेखी से कागजों में हो रहा।
यहां तो रोज शिकायत राजीव गांधी ऑडिटोरियम में लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद यहां की हालत नहीं सुधर सकी है। रखरखाव के नाम पर सालाना लाखों का बिल बन रहा है। ऑडिटोरियम आम जनता के लिए खोले जाने के बाद से विवाद में है। एसीबी में भी निर्माण कार्य की शिकायत पर मामला दर्ज है।
तय सीमा में नहीं होने निर्माण न्यास के अधिकांश कार्य निविदा शर्तों के अनुरूप नहीं हो सके है, छह माह में पूरे होने वाले निर्माण कार्य दो साल में भी पूरे नहीं हो रहे है। अधिक से अधिक काम लेने की होड में यहां निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की भी न्यास अधिकारी अनदेखी कर रहे है। कमीशनखोरी के चक्कर में न्यास में कई काम आरक्षित दर से भी कम राशि में छूट गए। इनमें से अधिकांश कार्य अभी तक शुरू नहीं हो सके। ऐसे में कई बजरी संकट की दुहाई दे रहे है। गुणवत्ता की लेब पर भी कमीशन का लेबल लगा हुआ है।
न्यास में निर्माण कार्य एवं वित्तीय स्वीकृति की मंजूरी सहज नहीं है। हर काम पर कमीशन बंधा हुआ है। शुक्रवार को एसीबी की कार्रवाई के दौरान यह बड़ा खुलासा हुआ है। परिवादी की पीड़ा थी कि निर्माण या बिलों के भुगतान की फाइल, जहां से गुजरती वहां उसे कमीशन देना पड़ता। जेईन,एईन,एक्सइन व एसई तक को वो कमीशन दे रहा है और अन्य संवेदक भी देते रहे है। संबधित कर्मचारी भी कमीशन नहीं देने पर फाइल अटका देते है। वही एसीबी कार्रवाई के दौरान गिरफ्तार हुए अधिकारियों ने यह कडवा सच भी कबूला है कि संवेदक राजनीति व प्रशासनिक दबाव उन पर बनाए रखते है

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