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दो घंटे में मृतकों की रिपोर्ट का फरमान फिर बना कागजी घोड़ा,परिजन होते है परेशान

बीकानेर। सरकारी फरमानों की अनुपालना कितनी गंभीरता से होती है। इसकी बानगी पीबीएम अस्पताल में देखने को मिल रही है। जहां लगभग एक सप्ताह बीकानेर के एक मंत्री के एक आदेश को किस तरह धरातली हकीकत दिखाई जा रही है। मामला पीबीएम अस्पताल में मरने वालों के शव को लेकर सामने आ रहा है। जिनकी रिपोर्ट के इंतजार में घंटों उनका अंतिम संस्कार नहीं हो पाता और परिजन शव को लेकर अधिकारियों के सामने गिडगिडाने को मजबूर हो रहे है। मंजर यह है कि समाचार पत्रों में सुर्खियां बनने के बाद भी न तो राज्य सरकार इस ओर ध्यान दे रही है और न ही पीबीएम प्रशासन।
हालात ये है कि बिन्नानी चौक निवासी किशन लाल बिन्नाणी की बुधवार दोपहर तीन बजे को मृत्यु हो गई। उनके पुत्र नितेश ने बताया कि उनकी मृत्यु के बाद कोरोना सैम्पल लिया गया। अखबार में 2 घंटे में रिपोर्ट मिलने की बात पर जब हमने चिकित्साधिकारियों को कहा तो उन्होंने यह कह दिया कि सैम्पल ले लिया। रिपोर्ट आ जा एगी। गुरूवार को सुबह 11 बजे उनकी रिपोर्ट आने के बाद शव दिया गया। इसी तरह फड़बाजार की एक महिला की मौत के करीब 24 घंटे बाद उनके शव को परिजनों को सुपुर्द किया गया। इसी तरह चूनगरान मोहल्ले के 62 वर्षीय व्यक्ति की मौत के बाद 15-18 घंटे बाद शव को शमशान के लिए रवाना किया गया। इसी तरह नौ जून को पीबीएम के संगीता नाम की महिला की शाम को पौने सात बजे मौत हो गई। इससे कोरोनो संदिग्ध के चलते उसकी जांच कराई लेकिन जांच रिपोर्ट 14 घंटे बाद मिली। रिपोर्ट नेगेटिव आई। ऐसे में 15 घंटे बाद शव परिजनों को सपुर्द किया गया।

सामान्य मौत पर भी छूट रहे पसीने
पीबीएम अस्पताल में सामान्य मौत होने के बाद भी शव को लेने में परिजनों के पसीने छूट रहे हैं। कोरोना रिपोर्ट नहीं आने तक शव को परिजनों के सुपुर्द नहीं किया जाता है। कोरोना जांच और शव सुपुर्द करने में 12 से 15 घंटे का समय लग जाता है। सामान्य मौत पर शव को परिजनों के सुपुर्द करने में बेवजह हो रही देरी पर सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए रिपोर्ट दो से तीन घंटे में देने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद बीकानेर में सामान्य मौत के बाद भी परिजनों को शव 10 से 12 घंटे बाद मिल रहा है।

कोई नहीं सुनता हमारी
एक अधिकारी ने बताया कि पीबीएम अस्पताल में कोरोना मरीज की मौत होने पर बहुत परेशान होना पड़ता है। न अटेंडेंट समय पर मिलते है और ना ही मोर्चरी वैन आती है। अस्पताल अधिकारियों को बताते हैं तो वह भी सुनवाई नहीं करते। ऐसे में शव को शिफ्ट कराने से लेकर अंतिम संस्कार कराने में बहुत परेशान होना पड़ता है।

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