इस जाति के घरों में इतने दिनों तक नहीं जलते है चूल्हे और नहीं लगता तड़का
बीकानेर. पुरानी परंपरा के अनुसार जोशी जाति के लोगों के घरों में होलाष्टक लगने के साथ ही घर में साग-सब्जी या अन्य खाद्य सामग्री में लगने वाला छमका सात दिनों तक बंद रहेगा और होलिका दहन को चूल्हा नहीं जलेगा। कहा जाता है कि ब्राह्मण सिन्ध से चलकर भारत में जैसलमेर के रास्ते से आए थे। आज भी पुष्करणा ब्राह्मण जैसलमेर, फ लौदी, बीकानेर और जोधपुर में अधिक रहते हैं। बीकानेर के बताते है कि जैसलमेर के मढ़ गांव में भी पुष्करणा बहुल्य था वहां पर गंगदासाणी/चोवटिया जोशी परिवार रहता था। होली पर्व मनाते समय होली की परिक्रमा लगाते वक्त जोशी का एक बच्चा होली की चपेट में आ गया उसे बचाने के चक्कर में उसका परिवार भी होली की लपटे से घिर गया और भस्म हो गया। परम्परा के अनुसार उसी दिन से होलाष्टक लगने पर गंगदासाणीध्चोवटिया जोशी परिवार के घरों में छमका या तड़का नहीं लगातें हैं व होली दहन के दिन घर का चूल्हा भी नहीं जलाया जाता है।
होलिका दहन के दिन लड़के का जन्म हो और वह लड़का पूरे एक साल तक जिंदा रहे और अपनी मां के साथ जलती हुई होलिका की परिक्रमा कर होलिका की पूजा करे और वह परिवार सम्पूर्ण जोशी जाति के लोगों को प्रसाद खिलाए तो उसी दिन से जोशी के लोग होलिका में छमका लगा सकतें है।
इस तरह भोजन का प्रबंध
जोशी जाति के घरों में लगभग इन सात दिनों तक खाना नहीं बनता है। इस दौरान वे ऐसी सब्जी नहीं बनाते जिसमें छौंक लगाई जाए या कोई भी ऐसा व्यंजन नहीं बनाते जो तला जाए। फ लस्वरूप इन जोशी जाति के रिश्तेदार व लड़के के सुसराल के संबंधी इन लोगों के लिए सात दिनों तक भोजन का प्रबंध करते हैं।
सगे.संबंधी करते हैं होली की मस्ती में शामिल
जोशी परिवार के लोगों को रंग लगाने के लिए व होली खेलने के लिए अपने घरों से बाहर निकालने के लिए इनके मित्र, रिश्तेदार, सगे संबंधी इनके घर जाते हैं और इनके चेहरों पर रंग लगाकर होली की मस्ती में इनको शामिल करते हैं।
धूलण्डी के दिन जोशी जाति के लोगों द्वारा नत्थुसर गेट स्थित तण्डी तोड़ने की परंपरा का निर्वहन करते है। जोशी जाति को इस पावन पर्व को इस खेल में शामिल हो सकें। तण्डी तोड़ने के बाद जोशी जाति के घरों में खाना बनना या छमका व तड़का लगना शुरू हो जाता है।