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गलती की है तो सजा जरूर मिलेगी, लेकिन सच का साथ नहीं छोड़ेंगे तो सजा से तकलीफ कम होगी

कहानी – स्वामी विवेकानंद को बचपन से ही बातचीत करने का बहुत शौक था। जब वे विद्यार्थी थे, तब भी वे अपनी साथियों को कहानी, किस्सा या कोई दार्शनिक बातें सुनाया करते थे। बचपन में उन्हें नरेंद्र के नाम से जाना जाता था।

एक दिन वे अपनी कक्षा में साथी विद्यार्थियों से बात कर रहे थे। वे बहुत तेज बोलते थे। अन्य विद्यार्थी उनसे कुछ प्रश्न पूछ रहे थे। उसी समय उनके शिक्षक ने कक्षा में प्रवेश किया। शिक्षक इस बात से नाराज हो गए कि कक्षा में इतना शोर क्यों हो रहा था और कौन जोर-जोर से बोल रहा था?

सभी विद्यार्थियों ने नरेंद्र की ओर इशारा कर दिया। इसके बाद शिक्षक ने सभी विद्यार्थियों से कहा, ‘कक्षा पढ़ाई के लिए होती है, बातचीत के लिए नहीं। मैं कुछ प्रश्न पूछ रहा हूं। जो उत्तर नहीं दे पाएगा, उसे दंड मिलेगा।’

शिक्षक ने जब प्रश्न पूछे तो लगभग सभी विद्यार्थियों ने गलत उत्तर दिए। सिर्फ नरेंद्र ने सही उत्तर बताए थे। शिक्षक समझ गए कि ये एक बच्चा पढ़ाई में मन लगा रहा था, बाकी सभी शोर कर रहे थे। उन्होंने सभी विद्यार्थियों को खड़ा कर दिया। सारे विद्यार्थी बेंच पर खड़े हो गए तो शिक्षक ने देखा नरेंद्र भी बेंच पर खड़ा है।

शिक्षक ने कहा, ‘नरेंद्र तुम्हें खड़ा नहीं होना है। तुम पढ़ने-लिखने वाले हो और तुमने उत्तर भी सही दिया है। तुम बैठ जाओ। दंड इनको मिलना चाहिए जो शोर कर रहे थे। पढ़ नहीं रहे हैं।’

नरेंद्र ने कहा, ‘गुरुजी, सच तो ये है कि उस शोर में सबसे ऊंची आवाज मेरी ही थी। मैं ही इन लोगों से बात कर रहा था और कहानी सुना रहा था। अगर इस बात का दंड इन्हें मिल रहा है तो ये दंड मुझे भी मिलना चाहिए।’

इस बात से शिक्षक बहुत प्रसन्न हुए।

सीख – जीवन में कभी भी झूठ का सहारा न लें। हमेशा सच का साथ दें। अगर कोई भूल हो जाए तो उसे स्वीकारें। दंड से घबराएं नहीं। जो लोग गलती होने पर उसे स्वीकार कर लेते हैं और सच्चाई को नहीं छोड़ते हैं, वे कठोर दंड भी आसानी से सहन कर लेते हैं।

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