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इस गांव में लड़की अगर बेटी है तो नहीं है वोटर, बहू बनाती है वोटर आई कार्ड

लखनऊ. यूपी में एक शहर है बदलापुर। नाम थोड़ा फि ल्मी, लेकिन यहां की दास्तां भी फि ल्मों की कहानियों जैसी ही है। यहां अगर लड़की की उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक है और वह किसी परिवार की बेटी है, तो वह बालिग होने के बावजूद बदलापुर की वोटर नहीं हैं। हां यदि वह लड़की किसी परिवार की बहू है, तो वह वोटर हो सकती है। बेटी और बहू में भेद करने की यह चौंकाने वाली रिपोर्ट निर्वाचन अधिकारियों की जानकारी में भी है। उन्होंने बेटियों को वोट का हक दिलाने की कोशिश कीए लेकिन ज्यादातर मामलों में कामयाबी नहीं मिली। अब आपको ये भी बता दें कि बदलापुर ही ऐसी विधानसभा हैए जहां दो महिलाएं श्मशान घाट पर दाह संस्कार करवाती हैं।

इसलिए यहां जागरूकता से अधिक संपत्ति तंत्र का खेल हैए क्योंकि अधिकांश लोग यही मानते हैं कि शादी से पहले लड़की का नाम वोटर लिस्ट में जुड़वाने से वो संपत्ति में भी हकदार हो जाती है।

जनसंख्या से वोटर लिस्ट के बड़े अंतर के बाद खुला ये मामला

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 325 व 326 के अनुसार प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत का अधिकार है। किसी नागरिक को धर्म, जाति, वर्ण, संप्रदाय या लिंग भेद के कारण मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। सिर्फ पागल या अपराधी को ये अधिकार नहीं है। संविधान के ये प्रावधान बदलापुर में नहीं मान्य है।

यहां बेटी. बहू के बीच मतदान का बड़ा भेद देखने में आया है। दरअसल, बदलापुर और आसपास के कई इलाकों की जनसंख्या के अनुपात में मतदाताओं की संख्या में अंतर दिखने पर राज्य निर्वाचन आयोग ने जिला प्रशासन को कम महिला वोटर्स वाले बूथ चिह्नित करने के लिए कहा।

अधिकारियों ने बदलापुर सहित असरुपुर, आशामलपुर, राजापुर, सराय दुर्गादास, हरि रामनाथ सहित कई ऐसे बूथ चिह्नित किए। पता चला कि महिला वोटरों की संख्या इसलिए कम है क्योंकि ज्यादातर परिवारों में बेटियों के बालिग होने के बाद भी उनके नाम मतदाता सूची में शामिल नहीं कराए गए हैं। बूथ लेवल अधिकारी से लेकर तहसीलदार इन परिवारों से संपर्क करने पहुंचते थे तो उन्हें लौटा दिया जाता है।

जबकि वोटर लिस्ट में इन्हीं घरों के सभी पुरुषों और उनकी पत्नियों के नाम शामिल हैं। यहां लोगों का मानना है कि बेटी उसी विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल होगी। जहां उसका विवाह कराया जाएगा। यानी 18 वर्ष की उम्र पूरी करने के बाद भी बेटी का नाम मतदाता सूची में तब तक शामिल नहीं हो पाता जब तक कि उसका विवाह न हो जाए। विवाहित होने के बाद उसे वोट देने का अधिकार भी मिल पाता है।

यहां के लड़के, बेटियों के पक्ष में
जिन बेटियों को बालिग या वयस्क होने के बावजूद मतदान के अधिकार से दूर रखा गया है। उनके पक्ष में यहां के लड़के आवाज उठा रहे हैं। उनके साथ पढ़ने वाली कई लड़कियों के नाम वोटर लिस्ट में इसलिए नहीं हैं क्योंकि वे बेटी हैं। अगर वही लड़की किसी की बहू बन जाती तो उसका नाम विवाह के कुछ ही दिनों बाद वोटर लिस्ट में जुड़वा दिया जाता है।

बेटियां मानीए घरवाले अब भी राजी नहीं
बदलापुर के निर्वाचन अधिकारी लोगों को मतदान के के लिए जागरूक कर रहे हैं। मतदाता सूची में शामिल महिलाओं को वोट दिलाने की शपथ दिलाई जा रही है। साथ ही बेटियों के नाम भी मतदाता सूची में जुड़वाने का अभियान चल रहा है। अधिकारियों की बातें सुनकर बेटियां तो तैयार हैंए लेकिन उनके घरवाले नाम जुड़वाना नहीं चाहते हैं।

ज्यादातर लोग निर्वाचन अधिकारियों को तर्क देते हैं कि बेटी का नाम मतदाता सूची में जुड़वाया तो उससे पैतृक संपत्ति में भी हिस्सा देना होगा। लोगों का मानना है कि बेटी का हक विवाह के बाद सिर्फ ससुराल की संपत्ति में होता है। इसीलिए उसका नाम मतदाता सूची में विवाह के बाद उसके ससुराल के विधानसभा क्षेत्र में जुड़वाया जाता है।

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