
शिखर को चूम लूंगा मैं, तुम जो शाबास कहो’






पं. भीष्ममदेव राजपुरोहित स्मृति शब्दांजलि का आयोजन। शानदार रहा कवि सम्मेलन
श्रीडूंगरगढ । भाषा, शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक सरोकारों के लिए ख्यात पं. भीष्मदेव राजपुरोहित की स्मृति में ‘शब्दांजलि’ समारोह भव्य कवि सम्मेलन के साथ सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर राजस्थानी संस्मरण प्रतियोगिता के प्रथम पुरस्कार विजेता लोकप्रिय कवि कैलाश मण्डेला ने कहा कि – शिखर को चूम लूंगा मैं, तुम जो शाबास कहो, भरूं दामन में सितारे, तुम जो आकाश कहो। ठीक इसी तरह गुरुदेव ने अपने शिक्षण में संस्कारित व दीक्षित किया और शिष्यों को जमीन से आकाश की सामाजिक सरोकारों की यात्रा करवाई ।स्मारोह के मुख्य अतिथि के रूप में उद्बोधन करते हुए डॉ. मदन सैनी ने कहा कि पंडित भीष्मदेव के लिए शिक्षा के मायने ही अलग थे। वे इसे संस्कार व सर्वागीण विकास के आधार फलक के रूप में जीते थे और व्यक्तित्व विकास उसकी पहली दहलीज थी। सैनी ने कहा कि वे सच्चे अर्थो में गुरु थे, जो गुरुता रखते भी थे और कर्म से साबित भी करते थे।अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डॉ. चेतन स्वामी ने अनेक संस्मरणों व प्रसंगों का जिक्र करते हुए कहा कि वे सिर्फ कहने भर या आजीविका के उद्देश्य से शिक्षक नहीं थे अपितु शिक्षक वह मोमबत्ती है, जो स्वयं जल कर दूसरे को प्रकाशित करती है, को चरितार्थ करते रहे। गुरुदेव गहरे पानी के मोती थे। गंभीरता के साथ सादगी उनके जीवन आदर्श रहे।स्वागत भाषण करते हुए श्याम महर्षि ने कहा कि सामाजिक सरोकारों के पुरोधा व बुद्धिजीवी इस महात्मा का श्रीडूंगरगढ ऋणी है, जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन शिक्षा को समर्पित कर दिया।
बजरंग शर्मा ने पंडितजी को दिव्य पुरुष बताते हुए उनके जीवन मूल्यों को आत्मसात करने का आह्वान किया। लॉयन महावीर माली ने उन्हें बालिका शिक्षा के लिए समर्पित व्यक्तित्व व उन्नायक बताया। शिक्षाविद् छगनलाल सेवदा ने उन्हें मानवता का पक्षधर व संस्कारवान ऋषि बताया।स्मारोह में रामगढ के श्री पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ और डॉ. रेणुका व्यास ‘नीलम’ को प्रतियोगिता के विजेता के रूप में पुरस्कृत किया गया।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन में मनीषा आर्य सोनी की काव्य प्रस्तुति ‘मन वचन और कर्म आत्मा रूहानी बन जाती है’ ने खूब तालियां बटोरी। सागर सिद्दकी की गजल ‘तेरा पावन देखा है या कोई दर्पण देखा है’ तथा मोनिका गौड़ की व्यंग्य कविताओं ने समा बांध दिया। डॉ. कृष्णा आचार्य, लीलाधर सोनी और कैलाश मंडेला को भी काफी सराहा गया।रवि पुरोहित के संयोजन में सम्पन्न समारोह में गोविंदराम राजपुरोहित, मांगीलाल देसलसर, भंवरलाल नोसरिया, विनोदसिंह, श्रवण सिंह सोढा, पुष्पा राजपुरोहित, मर्यादा, सीमा राजपुरोहित, रामचन्द्र राठी, शोभाचंद आसोपा, सत्यदीप, भंवर भोजक, श्रीभगवान सैनी, इंजी. ज्योत्स्ना सहित 100 से अधिक सम्भागियों ने सहभागिता निभाई।


