कैसे मानें सचिन पायलट, जानिए इनसाइड स्टोरी

कैसे मानें सचिन पायलट, जानिए इनसाइड स्टोरी

खुलासा न्यूज जयपुर। राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार पर पिछले एक महीने से मंडराता संकट फिलहाल टल गया है। राहुल गांधी और सचिन पायलट के बीच हुई मुलाकात के बाद कांग्रेस के बागी नेता ने अपने हथियार डालते हुए गहलोत सरकार के साथ रहने की बात कही है।

राजस्थान में गहलोत सरकार पर मंडराता संकट टला
सचिन पायलट ने राज्य सरकार के साथ रहने का दिया बयान
कांग्रेस आलाकमान ने पायलट को कई शर्तों को माना है
पायलट की घर वापसी के लिए पार्टी के वरिष्ठ और कई युवा नेता कर रहे थे पैरवी
नई दिल्ली
राजस्थान में पिछले एक महीने से अशोक गहलोत सरकार पर मंडराता खतरा फिलहाल टल गया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के मान-मनौव्वल और जमीनी हकीकत को देखते हुए बागी सचिन पायलट समझौते को तैयार हो गए। कुछ समय पहले तक पायलट के खिलाफ तल्ख बयानबाजी कर रहे सीएम गहलोत ने भी पिछले कुछ दिनों से अपने रुख में नरमी लानी शुरू कर दी थी। तभी से यह माना जा रहा था कि पर्दे के पीछे पायलट को मनाने की मशक्कत जारी है। राहुल के करीबी नेताओं में शुमार पायलट से प्रियंका खुद बात कर रही थीं। पायलट को मनाने और उनकी घर वापसी में राहुल से लेकर प्रियंका ने कड़ी मशक्कत की। आइए जानते हैं पायलट की घर वापसी की इनसाइड स्टोरी..

कैसे राजी हुए पायलट?पिछले एक महीने से चुप्पी साधे हुए पायलट यह तो समझ चुके थे कि वह अपने 19 विधायकों के साथ राज्य सरकार को नहीं गिरा सकते हैं। ऐसे में जैसे ही गांधी परिवार की तरफ से उनके पास प्रस्ताव आया उन्होंने नफा-नुकसान आंककर बातचीत की टेबल पर बैठने में ही भलाई समझी। दरअसल, पायलट खेमे के कुछ विधायकों पर राज्य सरकार ने कई केस दर्ज करा दिए थे और ये विधायक पिछले दरवाजे से गहलोत खेमे में वापसी की बातचीत भी शुरू कर चुके थे। ऐसे में पायलट के हाथ से वक्त निकलता जा रहा था। जैसे ही प्रियंका ने उनसे संपर्क साधा वह भी राहुल से मिलने को राजी हो गए।

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पायलट की वापसी की यूं बनी रणनीति
मध्य प्रदेश में कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को गंवा चुकी कांग्रेस राजस्थान में ऐसा नहीं होने देना चाहती थी। पार्टी के कई वरिष्ठ और युवा नेता पार्टी हाइकमान को इस बात पर मनाने में सफल रहे कि भले ही पायलट ने अक्षम्य अपराध किया हो और बीजेपी के खेल में शामिल हुए हों लेकिन उन्हें वापस लाने के लिए हरसंभव कोशिश की जानी चाहिए।

पहले राहुल फिर प्रियंका से मिले पायलट और बनी बात
राजस्थान का सियासी घटनाक्रम सोमवार को अचानक बदला, जब पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात का समय मांगा। दोनों नेताओं की मुलाकात हुई। इस दौरान पायलट ने अपनी मांगों और शिकायतों की जानकारी आगे रखी। पायलट ने राहुल गांधी के साथ-साथ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा से भी करीब दो घंटे तक मुलाकात की। उनके समक्ष अपना पक्ष विस्तार से रखा। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तीन सदस्यीय समिति गठित करने का फैसला किया। जिसके पूरा विवाद सुलझ सका।
सोनिया के इस दांव का भी रहा अहम रोल
सोनिया गांधी ने कमेटी का गठन भी इसलिए किया है जिससे पायलट और उनके समर्थक विधायकों की ओर से उठाए गए मुद्दों का उचित समाधान किया जा सके। कांग्रेस की ओर से तीन सदस्यीय समिति के गठन के फैसले की घोषणा होने के बाद पायलट और उनके समर्थक विधायक पार्टी का वाररूम कहे जाने वाले ’15 गुरुद्वारा रकाबगंज रोडÓ पहुंचे जहां उन्होने प्रियंका गांधी, वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और केसी वेणुगोपाल के साथ बैठक की।
वेणुगोपाल ने कहा, पायलट-गहलोत दोनों नेता हैं खुश
इस मुलाकात के बाद पायलट ने कहा कि उनकी पद की लालसा नहीं है और उनके मुद्दे सैद्धांतिक हैं जो उन्होंने पार्टी आलाकमान के समक्ष रख दिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि समस्या का जल्द समाधान हो जाएगा। पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक बयान में कहा कि पायलट ने कांग्रेस पार्टी और राजस्थान में कांग्रेस सरकार के हित में काम करने की प्रतिबद्धता जताई। वेणुगोपाल ने कहा कि सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ही नेता खुश हैं।
‘राहुल गांधी के दखल से राजनीतिक संकट का निकला हल’
कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राहुल गांधी के दखल से राजस्थान में राजनीतिक संकट का सौहार्दपूर्ण हल निकाल लिया गया। यह कांग्रेस में एकजुटता और कांग्रेस विधायकों की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वे बीजेपी के जाल में नहीं फंसे। कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने रहेंगे और पायलट को क्या भूमिका दी जानी चाहिए, इस पर फिलहाल कोई फैसला नहीं हुआ है।
विधानसभा सत्र से कांग्रेस में नया जोश
इस बीच, पायलट के समर्थक माने जाने वाले विधायक भंवर लाल शर्मा ने सोमवार शाम जयपुर पहुंचकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मुलाकात की। पायलट की कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से मुलाकात विधानसभा सत्र आरंभ होने से कुछ दिनों पहले हुई है। 14 अगस्त से राजस्थान विधानसभा का सत्र आरंभ होगा।
ऐसे गहलोत की कुर्सी पर मंडराया था संकट
मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ खुलकर बगावत करने और विधायक दल की बैठकों में शामिल नहीं होने के बाद कांग्रेस आलाकमान ने पायलट को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री के पदों से हटा दिया था। बागी रुख अपनाने के साथ ही पायलट कई बार स्पष्ट कर चुके थे कि वह बीजेपी में शामिल नहीं होंगे। पायलट और उनके साथी 18 अन्य विधायकों की बगावत के कारण गहलोत सरकार मुश्किल में आ गई थी। गहलोत और कांग्रेस अपनी सरकार बचाने के लिए पिछले कई हफ्तों से जुटे हुए थे। पहले विधायकों को जयपुर के होटल में रखा गया था। बाद में उन्हें जैसलमेर के एक होटल में भेज दिया गया।
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इन शर्तों के साथ राजी हुए पायलट
सूत्रों की माने तो पार्टी आलाकमान ने 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री बनाने का भरोसा दिया है। यहीं नहीं, उन्होंने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनने का भी प्रस्ताव है। हालांकि पायलट के करीबी सूत्रों के मुताबिक वह दिल्ली नहीं आएंगे और राज्य में ही पार्टी के लिए काम करेंगे। इसके अलावा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पायलट की मांग के समाधान के लिए एक उच्च स्तरीय कमिटी के गठन का ऐलान किया है। पायलट के समर्थक कुछ विधायकों को राज्य मंत्रिमंडल में जगह दी जाएगी। इसके अलावा हृस्ढ्ढ और युवा कांग्रेस से हटाए उनके समर्थकों को फिर से शामिल किया जाएगा। इनके खिलाफ दर्ज किए गए सभी केस बंद किए जाएंगे।

पायलट की क्या है रणनीति?
पायलट के करीबी लोगों ने बताया कि उन्हें इस बात का भान हो चुका था कि गहलोत को तुरंत सीएम पद से नहीं हटाया जा सकता है और उन्हें कुछ और समय तक इंतजार करना पड़ेगा। ऐसे में जब पार्टी ने विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में उन्हें चेहरा बनाने की पेशकश की गई तो उन्होंने हामी भर दी। हालांकि उन्हें कब चेहरा बनाया जाएगा इसका फैसला आलाकमान तय करेगा। हालांकि पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि ऐसा करने में देरी नहीं की जाएगी क्योंकि उन्हें काम करने का मौका भी देना होगा ताकि चुनाव में वह अपनी छाप छोड़ सकें।’

तो क्या राजस्थान कांग्रेस में ऑल इज वेल?
हालांकि भले ही पायलट खेमा अभी मान गया हो लेकिन सीएम गहलोत और पायलट के बीच दांवपेच अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। फिलहाल गहलोत मजबूत होकर उभरे हैं और अपनी सरकार को बचा ले गए हैं। गहलोत ने अपने बरसों के अनुभव का इस्तेमाल करते हुए सचिन पायलट को पटखनी दी है। लेकिन जिस तरह से पायलट के साथ राहुल और प्रियंका खुलकर दिखी हैं उसमें गहलोत के लिए आगे की राह आसान भी नहीं है। अगर पायलट के साथ हुए समझौते को लागू करने में गहलोत आनाकानी करेंगे तो राज्य में पार्टी के लिए फिर से मुश्किल खड़ी हो सकती है।

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