अस्पताल ने युवक का प्राइवेट पार्ट काटा: पीड़ित का आरोप- फोड़े का इलाज कराने पहुंचा था

अस्पताल ने युवक का प्राइवेट पार्ट काटा: पीड़ित का आरोप- फोड़े का इलाज कराने पहुंचा था

जोधपुर संभाग में हैरान कर देने वाली खबर सामने आयी है। संभाग के बाड़मेर जिले में इलाज के नाम पर एक मरीज प्राइवेट पार्ट ही काट दिया। मरीज प्राइवेट पार्ट पर हुए फोड़े का इलाज करवाने अस्पताल गया था। इलाज के नाम पर ना सिर्फ उससे मोटी रकम वसूली बल्कि लापरवाही करते हुए प्राइवेट पार्ट काट दिया गया। मरीज के अनुसार उसकी स्थिति और बिगड़ गई। अब वह अपना इलाज जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल में करवा रहा है। इधर, मरीज ने डॉक्टर की लापरवाही का मामला दर्ज करवाया है। वहीं, अस्पताल का कहना है कि हमने सिर्फ स्किन काटी है। मरीज का कहना है कि डॉक्टर की लापरवाही ने उसका जीवन खराब कर दिया। मरीज इलाज कराने सरकारी अस्पताल गया था। वहां डॉक्टर ने उसे इलाज के लिए निजी अस्पताल में भेज दिया। युवक का कहना है कि उसके पास इलाज के लिए रुपए नहीं होने के कारण घर को गिरवी रखकर यह रकम जुटाई थी। इस घटना की शिकायत बाड़मेर एसपी के पास शिकायत दर्ज कराई है। एसपी का कहना है कि इस मामले में जांच के बाद ही केस दर्ज किया जाएगा।बाड़मेर निवासी एक मरीज के प्राइवेट पार्ट पर एक फोड़ा हो गया था। वह उसका इलाज करवाने के लिए बाड़मेर के सरकारी अस्पताल में गया। सरकारी अस्पताल के डॉक्टर गोयल ने उसे कहा कि इसका बाड़मेर के निजी यश अस्पताल में इलाज संभव है। एक मामूली सर्जरी की जाएगी। वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएगा। डॉक्टर ने इलाज की फीस डेढ़ लाख रुपए बताई। पीड़ित के पास इतने रुपये नहीं थे। उसने अपने घर का पट्टा गिरवी रखकर रकम जुटाई।
पीड़ित ने बताया कि इलाज के दौरान उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगाया गया था। बाद में जब उसे होश आया तो उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई। क्योंकि उसका प्राइवेट पार्ट करीब 1 इंच कटा हुआ था। उस पर करीब 12 टांके लगे हुए थे। पीड़ित का आरोप है कि उसका इलाज 1 सरकारी और 2 निजी डॉक्टर्स ने किया। डॉक्टर्स ने लापरवाही बरतते हुए उसका जीवन तबाह कर दिया।

  यश अस्पताल बाड़मेर के डॉक्टर रोहित खत्री ने बताया कि उसने हॉस्पिटल के कई चक्कर लगाए। तब इलाज किया गया। प्राइवेट पार्ट पर फोड़ा हो रखा था। आगे की स्किन काटी गई है। इलाज के लिए उसने 8 हजार ही जमा करवाए थे।

बाड़मेर एसपी आनन्द शर्मा ने बताया कि शिकायत आई थी। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन है कि कोई डॉक्टर ट्रीटमेंट के दौरान कुछ ऐसा करे जिसमें व्यक्ति की सहमती हो। उसमें डायरेक्ट एफआईआर नहीं होती। डॉक्टर की टीम बनेगी उसके लिए प्रशासन को चिट्ठी लिखी है। कमेटी में जांच के बाद अगर यह सामान्य प्रक्रिया नहीं पाई गई तो एफआईआर दर्ज होगी।

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