इतिहास:- आखिर क्यूं भादाणियों की माता गवरजा दौडती है ? पढ़े पूरी खबर - Khulasa Online इतिहास:- आखिर क्यूं भादाणियों की माता गवरजा दौडती है ? पढ़े पूरी खबर - Khulasa Online

इतिहास:- आखिर क्यूं भादाणियों की माता गवरजा दौडती है ? पढ़े पूरी खबर

बीकानेर। तकरीबन चार सौ साठ वर्ष पूर्व बादशाह अकबर के समय बीकानेर के महाराजा रायसिह के दीवान कर्मचन्द बच्छावत थे । महाराजा के एक भाई ने उनसे बगावत कर सता हथियाने के लिए कर्मचन्द बच्छावत से सम्पर्क किया एवम साथ देने व सता पर काबिज होने पर उसे महत्वपूर्ण पद व धन देने का लालच व आश्वासन दिया । परन्तु उस दीवान ने उस पंडयत्र में शामिल होने से मना कर दिया तथा यह योजना महाराजा को बता दी। इस बात पर नाराज होकर वह मन ही मन द्वेष रखने लगा तथा दीवान कर्मचन्द बच्छावत को जलील कर नीचा दिखाने की कोशिश में लग गया। कर्मचन्द बच्छावत के पास गणगौर थी तथा गणगौर मेले में हर वर्ष की भांति चौतीना कुंआ के पास भागीदारी निवाहने आयेगी तो राजा के भाई ने उक्त गणगौर छीनने का गुपचुप आदेश की योजना बना ली । यह कुटिल चाल दीवान कर्मचन्द बच्छावत को पता चल गई । इस बात का पता चलने पर दीवान ने अपने गुरू संप्रदाय भादाणी जाति से बात की एवम यह योजना बताई कि अब यह गवर आपकी जाति को हमेशा हमेशा के भेंट करना चाहता हूँ ताकि उक्त पंडयंत्र से गवरजा की आन बान शान बनी रहे तथा गवरजा को अपमानित होने से बचाया जा सके।
इस पर भादाणी समाज के पंचो की राय बनी एवम कर्मचन्द बच्छावत को योजना बताई कि जैसे ही गवर का खोल भरा जाये तो तुरंत ही आप अपनी माता रानी को हमारे समाज के गोद में दे देना तथा हम इस योजना को विफल कर देंगे अन्दर ही अन्दर यह भादाणी समाज में योजना बनी इस गवर को बचा कर लानी है । समाज के सभी सदस्य ने योजना को समझ पूरी तैयारी के साथ मेले में भागीदारी निभाने एकत्रित होकर गये जैसे ही गवर माता का खोल भरा गया, योजना अनुसार उक्त माता भादाणी समाज को दीवान ने गंवर सौंप दी तो तुरंत ही समाज के युवा वर्ग ने गवरजा को सम्हाल कर दौड़ लगा दी तथा इस पर दरबारियो ने रास्ता रोक लिया तब वह लडाई शुरू हो गई। इस युद्ध में भादाणी समाज के साथ साथ देने वाले जैन महात्मा (मथेरन कला के मर्मज्ञ व पारंगत समाज) जाति के तीन व्यक्ति जुझारू होकर शहीद हो गये जिन्हें बाद में मादा महाराज ने अपनी मंत्र शक्ति से भैरूजी बना दिया जो क्रमश तीन स्थान पर जुझारू होकर लडते हुए शहीद हुए व विराजित है प्रथम रिगतमल जी भैरूजी जो भुजिया बाजार में स्थित है, द्वितीय काकडा भैरू जो कोचरो के चौक में कन्हैयालाल महात्मा के घर में स्थित है। महात्मा समाज आज भी गवरजा माता को पूजते हुए काष्टकला की प्रतिमाए बनाकर व विक्रय कर बीकानेर में घर घर में पहुंचा रहा है। आज बीकानेर के प्रत्येक घर में छोटी बड़ी हजारो की संख्या में गवरजा व ईसर व भाइये की मूर्तिया विराजित होकर पूजी जा रही है। तीसरे ढंढेरा मोहल्ले के कोने पर स्थित है इन तीनो में प्रथम व द्वितीय भैरूजी के आज तक भादाणी समाज बच्चा होने से पूर्व व बाद में तथा शादी होने के बाद में जात व झडूला लगाता है । एवम भादाणी समाज उक्त गदर माता को युद्धोपरान्त सुरक्षित अपने घर ले आया तभी से यह गवर इसी पंचायत के पास ही है तथा निरंतर आज भी गवर को लेकर दोडने की परम्परा चली आ रहा है ना तो आज राजा महाराजा रहे ना ही कोई गवर को छीनने वाले रहे है। परन्तु एक परम्परा चल पड़ी है जो कायम है। यह किदवंती है कि इस बात से नाराज हाकर राजज्ञा से कर्मचन्द बच्छावत के पूरे परिवार को समाप्त करने का आदेश हो गया। इस पर समस्त परिवार को मार कर रांगडी चौक में स्थित कुए में उनकी लाशें डाल दी गई। ऐसा माना जाता है कि इस पर कर्मचन्द बच्छावत परिवर ने स्वयं ही परिवार सहित इस कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली। उस वक्त इस परिवार की एक गर्भवती स्त्री जो बीकानेर से बाहर थी व जीवित रही तथा बच्छावत परिवार आज उनकी संतानें है । परन्तु गवर माता को भगाकर लाने की परम्परा निरन्तर चल रही है व थी आज वह इस परम्परा का क्रम कोरोना के कारण इसी तरह टूट रहा है जैसे तिरूपति मंदिर, वैष्णो देवी मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर उज्जैन बाबा मंदिर से परम्पराए टूट रही है ।

संकलन कर्ता:- ओम प्रकाश भादाणी एडवोकेट

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