
कांग्रेस के आंतरिक सर्वे ने मंत्रियों की उड़ाई नींद, सामने आई ये बड़ी वजह






राज्य में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। सभी राजनीतिक दल चुनावी समर में दो-दो हाथ करने के लिए कमर कस रहे हैं। टिकट वितरण के लिए राजनीतिक दल प्रत्याशी चयन के फॉर्मूले को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। इधर, टिकट के दावेदारों की धड़कनें बढ़ रही हैं तो उधर, विधायकों और मंत्रियों को चिंता इस बात की है कि उन्हें जीत के योग्य समझा जाएगा या नहीं। प्रदेश में कांग्रेस के आंतरिक सर्वे ने मंत्रियों की नींद उड़ा दी है। प्रदेश में पिछले चार विधानसभा चुनावों के नतीजों पर नजर डाली जाए तो साफ है कि अधिकतर मंत्रियों को मतदाता नकार देते हैं। पिछले चार विधानसभा चुनावों में मंत्री पद पर रहते हुए 106 नेताओं ने चुनाव लड़ा, जिनमें 71 मंत्रियों को हार का सामना करना पड़ा। यानी कुल 67 फीसदी मंत्री चुनावी समर में पराजित हुए। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार कितने मंत्री टिकट पाने में सफल होते हैं। नजरें इस बात पर भी रहेंगी कि कांग्रेस कितने मंत्रियों का टिकट काटने का जोखिम उठाती है। बीते 20 साल में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस-भाजपा के अधिकतर दिग्गज मंत्री हारे हैं, लेकिन गुलाबचंद कटारिया और राजेंद्र राठौड़ ऐसे मंत्री हैं जो मंत्री पद पर रहते हुए तीन-तीन बार चुनाव लड़े और जीते भी। 2013 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अलावा महेन्द्रजीत मालवीय, बृजेंद्र ओला, राजकुमार शर्मा और गोलमा देवी ही जीत पाए थे। इसके अलावा पूरा मंत्रिमंडल हार गया था।
- ये दिग्गज भी हुए चित
- 2013 विधानसभा चुनाव- गहलोत सरकार के 24 मंत्री पराजित – प्रमुख नाम- भरत सिंह, बीना काक, शांति धारीवाल, हेमाराम, राजेंद्र पारीक, भंवरलाल मेघवाल, ए.ए. खान (दुर्रू मियां)
- 2003 विधानसभा चुनाव- गहलोत सरकार के 19 मंत्री पराजित– प्रमुख नाम- डॉ. कमला, गुलाबसिंह शक्तावत, खेतसिंह राठौड़, हरेन्द्र मिर्धा, माधवसिंह दीवान, डॉ. जितेन्द्र सिंह, इंदिरा मायाराम।
- आसान नहीं टिकट काटना
- सत्तारूढ़ पार्टी के सर्वे में मंत्रियों की जीत के आसार कम दिखाई देते हैं। फिर भी पार्टियां कम से कम मंत्रियों के टिकट काटती हैं। उन्हें लगता है कि मंत्रियों के टिकट काट दूसरे को देना भी जीत की गारंटी नहीं।


