
सरकार लेकर आ रही एक ओर कानून: जनता के काम नहीं करने वाले अफसरों की जायेगी नौकरी






जयपुर। राजस्थान में हाल ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पुलिस जवाबदेही कमेटी बनाई है। जल्द ही प्रदेश में जवाबदेही कानून भी लागू होगा। मुख्यमंत्री गहलोत ने हाल ही एक आदेश जारी कर प्रशासनिक सुधार विभाग को कानून तैयारी करने के लिए कहा है। राजस्थान लोक सेवाओं की गारंटी और जवाबदेही विधेयक-2022 नाम से यह एक क्रांतिकारी बदलाव लाने वाला कानून होगा। जैसा पिछले दशक में सूचना का अधिकार कानून साबित हुआ था।
इस कानून के लिए पिछले दो वर्षों से सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय और उनके सहयोगी निखिल डे आंदोलनरत हैं। अरुणा की कोशिशों के बाद साल 2005 में देश में सबसे पहले सूचना का अधिकार (आरटीआई) राजस्थान में बना था। इसका प्रारूप भी अरुणा ने बनाया था। जो बाद में देश भर में लागू हुआ।
जवाबदेही कानून का प्रारूप भी अरुणा राय और उनकी टीम ही तैयार कर रही है। केंद्र की यूपीए सरकार (2004-2014) के दौरान अरुणा यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की प्रमुख थीं। अरुणा ने तब आरटीआई कानून और मनरेगा कानून बनवाने की पहल की थी। जिसे यूपीए सरकार ने देश भर में लागू किया था।
फिलहाल इस जवाबदेही कानून पर राज्य सरकार के प्रशासनिक सुधार विभाग ने काम शुरू कर दिया है। विभाग चाहता है कि इस कानून को बनाने के लिए आम लोगों से भी सुझाव मांगे जाएं। इसके लिए विभाग ने एक सूचना अपनी वेबसाइट पर भी जारी कर दी है। विभाग के शासन सचिव आलोक गुप्ता ने भास्कर को बताया कि 9 नवंबर हमने अंतिम तिथि तय की है। तब तक कोई भी व्यक्ति अपने सुझाव हमें दे सकता है।
इस कानून के गठन के लिए प्रयासरत सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने बताया कि इस कानून को बनाने के लिए दो साल पहले मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा था, अब बहुत देरी हो चुकी। सरकार को अपने प्रयासों को तेज करने चाहिए, ताकि कानून जल्द लागू हो सके।
इस कानून को सूचना के अधिकार कानून का अगला महत्वपूर्ण चरण माना जा रहा है। इस कानून के तहत 5 मुख्य प्रावधान होंगे।
1. सरकारी विभागों को हर काम के लिए किसी भी व्यक्ति द्वारा पूछने पर यह बताना होगा उसका काम कौन सा अधिकारी-कर्मचारी करेगा।
2. प्रत्येक काम को अधिकतम 30 दिनों में करना ही होगा।
3. संबंधित काम को करने या ना करने के लिए एक जिम्मेदार-जवाबदेह सरकारी कार्मिक तय होगा।
4. वाजिब काम होने के बावजूद काम को तय समय सीमा में ना करने पर संबंधित जवाबदेह कार्मिक पर आर्थिक, प्रशासनिक और वैधानिक कार्रवाई होगी।
5. लगातार तीन बार जवाबदेही का उल्लंघन करने वाले कार्मिक की सरकारी नौकरी पूर्णत: खत्म करने की कार्रवाई होगी।
नौकरशाही में हो रहा विरोध
यह कानून बनाने के लिए अरुणा राय और उनकी टीम राजस्थान में रैली, सभा, धरना, प्रदर्शन कर चुके हैं। वे तीन-चार बार इसी साल में मुख्यमंत्री गहलोत से मिल भी चुके हैं। करीब दो महीने पहले इस आंदोलन से संबंधित बिड़ला सभागार में हुए एक कार्यक्रम में गहलोत और अरुणा दोनों ने मंच भी साझा किया था। मुख्यमंत्री गहलोत के अतिरिक्त इसका मसौदा अखिल अरोरा, कुलदीप रांका, आलोक गुप्ता जैसे वरिष्ठ आईएएस अफसरों को भी सौंपा गया है।
सूत्रों का कहना है कि राज्य की नौकरशाही में इस कानून को लेकर उत्साह होना तो दूर बल्कि अंदरखाने विरोध हो रहा है। सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों का मानना है कि यह कानून उनके लिए बेहद सख्त होगा और सरकारी नौकरी करना बहुत कठिन हो जाएगा। ऐसा विरोध कभी सूचना के अधिकार कानून का भी हुआ था, लेकिन अंतत: वो कानून जनता के अधिकारों को सशक्त करने में बहुत कारगर साधन बना।
विभागों में आम आदमी को चक्कर लगाने पड़ते हैं, इसलिए है कानून की जरूरत
अभी तक राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में अगर किसी आम आदमी का कोई काम नहीं होता है या उसे चक्कर कटवाए जाते हैं, तो किसी सरकारी कार्मिक के खिलाफ सामान्यत: कोई कड़ी कार्रवाई नहीं होती है। ऐसे में सरकारी कार्मिकों में काम करने या ना करने के प्रति कोई लगाव या भय जैसी कोई भावना नहीं होती। सूचना के अधिकार कानून के तहत भी सरकारी विभाग आम तौर पर सूचना मांगने वाले को यह बता कर निजात पा लेते हैं कि सूचना 30 दिनों के भीतर देनी है। इसके बाद काम ना होने या ना करने के विषय में किसी अधिकारी-कर्मचारी की जिम्मेदारी तय नहीं होती है। ऐसे में यह जरूरत लंबे अर्से से महसूस की जा रही है कि जवाबदेही कानून बनाया जाए ताकि सरकारी कार्मिकों की जवाबदेही तय हो और जानबूझकर काम न करने पर संबंधित कार्मिक के खिलाफ नौकरी छीन लेने जैसी कड़ी कार्रवाई भी की जा सके।
चुनावी वर्ष में आ सकती है मुश्किल
प्रदेश में अगले वर्ष दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक चुनाव होना तय है, जिनकी आचार संहिता अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में लग सकती है। ऐसे में कानून पर आम लोगों से राय लेने, फिर उनका परीक्षण करने, विधि विभाग की मंजूरी लेने, नियम बनाने, कैबिनेट में ले जाने और उसके बाद विधानसभा में विधेयक पेश करने और लागू करवाने में बहुत समय लगेगा। ऐसे में अगर सरकार ने अपने प्रयास तेज नहीं किए तो यह कानून या तो लागू ही नहीं हो पाएगा या फिर लागू हुआ भी तो सशक्त कानून नहीं बन सकेगा।


