
इच्छामृत्यु पर शोध के स्वर्णिम कदम, बीकानेर की बेटी ने हासिल की पीएचडी, आपको रूला देगी अरूणा शानबाग की पूरी कहानी







खुलासा न्यूज, बीकानेर। ऑलम्पिक खेलों में देश के लिए सोना-चांदी जितना हो या श्रीडूंगरगढ में आरएएस चयन जैसी उपलब्धि हासिल करनी हो चारों ओर बेटियां अपने परिवारों का नाम रोशन कर रहीं है। कस्बे की एक ओर बेटी विनीता प्रजापत पुत्री बुलाकिचन्द प्रजापत ने कानून की पढ़ाई करते हुए इच्छामृत्यु विषय पर महाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी से अपनी पीएचडी पूरी कर ली है। विनीता को आज कस्बे में जानकारों द्वारा बधाइयां दी जा रही है। विनीता ने टाइम्स को बताया कि वे ऊपनी राजकीय विद्यालय में इतिहास की व्याख्याता के रूप में कार्यरत है। विनीता ने इतिहास व लॉ दोनों विषयों में नेट जेआरएफ क्लियर किया और अब लॉ में पीएचडी पूरी कर सफलता हासिल की है। विनीता अभी आगे कॉलेज व्याख्याता की भर्ती परीक्षा की तैयारी में जुटी है और अब तक के अपने सफल सफर का श्रेय अपने माता पिता के साथ बीकानेर निवासी अपने नाना पुसाराम प्रजापत व अपने गुरू महेशसिंह राजपुरोहित को देती है।
इच्छामृत्यु विषय पर हासिल की पीएचडी
विनीता ने अपनी डॉक्टरेट उपाधि लॉ के बिल्कुल नए व अछूते विषय इच्छामृत्यु पर रिसर्च कर हासिल की है। बता देवें अपनी थीसिस में उन्होंने इच्छामृत्यु के लिए अनुमति देने या नहीं देने पर विभिन्न देशों के कानूनों सहित भारत देश की सामाजिक तानेबाने को ध्यान में रखते हुए कार्य पूरा किया है। विनीता ने इच्छामृत्यु की अनुमति से पूर्व एक व्यवस्थित लंबी कानूनी व्यवस्था के बाद दिए जाने की पैरवी की है। बता देवें इच्छामृत्यु की मांग का मामला भारत में सबसे पहले 2011 में उठा था। जब जर्नलिस्ट पिंकी विरानी ने 1973 मुबंई के केईएम हॉस्पिटल में रेप की शिकार हुई अरूणा शानबाग के लिए इच्छामृत्यु या दया मृत्यु की मांग की। विरानी की पिटीशन सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च 2011 को ठुकरा दी थी और 42 साल कोमा में रहने के बाद अरूणा शानबाग ने 18 मई 2015 को मृत्यु हो गई। इसी विषय पर अब लिविंग विल लाया गया जिसमें एक लंबी प्रक्रिया के बाद दया मृत्यु दिए जाने की बात कही गई।
अरुणा की पूरी कहानी: रुला देता है 42 साल का दर्द
अरुणा शानबाग का निधन। बीते 42 साल मौत से संघर्ष करती रहीं। सहकर्मियों, नर्सों द्वारा परिवार के सदस्य के समान की गई सेवा से वह चार दशक तक जीवित रहीं।


