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शादी करना 25 प्रतिशत तक महंगा, वम्बर-दिसम्बर में करीब 1 लाख 50 हजार शादियां होंगी

जयपुर आज देवउठनी एकादशी है। आज से बैंड-बाजा-बारात और शुभ मुहूर्त शुरू हो गए हैं। सभी तरह के मांगलिक कार्यों का शुभारंभ हो गया है। देवउठनी एकादशी पर आज स्वयं सिद्ध अबूझ मुहूर्त है।शादियों की भरमार है। राजस्थान में इस साल नवम्बर-दिसम्बर में करीब 1 लाख 50 हजार शादियां होंगी। जबकि पिछले साल नवंबर-दिसंबर में करीब 70 हजार ही शादियां हुई थीं। नवंबर से लेकर मार्च तकविंटर वेडिंग सीजन में साढ़े 3 लाख से ज्यादा शादियां प्रदेश में होंगी। राजधानी जयपुर के अलावा उदयपुर, सवाईमाधोपुर, जोधपुर, कुम्भलगढ़, अलवर एरिया में कई डेस्टिनेशन वेडिंग होंगी। अगले 5 महीने मेंहोने वाली इन शादियों के लिए मैरिज गार्डन, रिसॉर्ट, होटलों के बैंक्वेट और रूम्स की बुकिंग हो रही है। जो 25 फीसदी तक महंगे हो गए हैं। राजस्थान में पूरे शादी सीजन में करीब 10 हजार करोड़ के कारोबार

की उम्मीद है। वहीं, इस सीजन में शादी के लिए जयपुर के हाथी बाबू की सबसे ज्यादा डिमांड है।इस बार गोल्ड ज्वेलरी, डायमंड, पोलकी (कुन्दन-मीना) का क्रेज अच्छा है। गोल्ड ज्वेलरी भी अच्छी बिक रही है। इस साल शादी में मेहमानों की संख्या और लिमिट को लेकर किसी तरह की कोविडगाइडलाइंस नहीं है। साथ ही नवंबर और दिसंबर 2022 में सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त हैं। पिछले 2 साल के कोविड पीरियड के बाद यह किसी सीजन में होने वाली सबसे ज्यादा शादियां होंगी। माना जा रहा है कि इसबार बाजार में अब तक के खरीदारी के सभी रिकॉर्ड टूट जाएंगे। ज्वेलरी, वाहन, कपड़ों और शू, इलेक्ट्रॉनिक्स, फर्नीचर, कैटरिंग और हलवाई, टेंट और डेकोरेशन, इवेंट, आर्ट एंड हैंडी क्राफ्ट्स, गिफ्ट, फूलोंका बड़ा कारोबार होगा।
जयपुर में ज्योतिष परिषद एवं शोध संस्थान के अध्यक्ष ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ ने बताया देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की 4 महीने की नींद पूरी हो जाती है। वहपाताल लोक से अपने धाम वैकुण्ठ में फिर से लौटते हैं। देवउठनी एकादशी से ही भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का पूजन दोबारा एक साथ शुरू होता है। इसी कारण से देवउठनी एकादशी के साथ ही सभी मा

ंगलिक कार्य न केवल विवाह सम्बंधित बल्कि गृह प्रवेश, नींव मुहूर्त, मुंडन और दूसरे मांगलिक कार्यों का की भी शुरुआत होती है। देवउठनी तिथि का समापन आज शाम 6 बजकर 9 मिनट पर होगा। 3 नवंबर से यह शुरू हो चुकी है। आज उदया तिथि के अनुसार एकादशी का व्रत भी रखा जाएगा। व्रत का समय 5 नवंबर को सुबह 8 बजकर 52 मिनट तक है। देवउठनी एकादशी से लेकर नवंबर और दिसम्बर में10 बड़े सावे और शुभ मुहूर्त हैं, जो शादी-विवाह, मांगलिक और शुभ कार्यों के लिए बहुत ही उत्तम हैं।
पुष्कर के पास मंदिर कानबाय सूरजकुण्ड में विराजित श्री हरि भगवान विष्णु प्रतिमा से मूर्ति पूजा की शुरु
अजमेर के पुष्कर से 9 ्यरू दूर मंदिर कानबाय सूरजकुण्ड में विराजित श्री हरि की प्रतिमा दुनिया की सबसे प्राचीन प्रतिमाओं में से एक मानी जाती है। देवउठनी एकादशी पर आज यहां विष्णु स्तुति स्तवन होरहा है। क्षीर सागर में विराजित भगवान विष्णु की यह प्रतिमा बेहद सुन्दर और अलौकिक रूप में है। जो सिंगल काले पत्थर की एक शिला से बनी हुई है। कार्बन डेटिंग में यह मूर्ति 4000 साल पुरानी पाई गई।जबकि मंदिर महंत महावीर प्रसाद वैष्णव का दावा है कि इतिहास के मुताबिक मूर्ति 41 हजार 70 साल पुरानी है। यहीं से सनातन धर्म की उत्पत्ति मानी जाती है।यहां पर सप्तऋषियों- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज (विष्णु पुराण के अनुसार) ने भगवान विष्णु की तपस्या की थी। इनके अलावा भगवान विष्णु, ब्रह्माजी और रावण ने भीतपस्या की। त्रेतायुग में भगवान श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी यहां पर दो बार आए। भगवान श्रीकृष्ण 7 बार आए। कृष्ण मथुरा से द्वारिका जाते समय कानबाय में ठहरते थे। जिसका प्रमाण पद्म पुराणऔर हरिवंश पुराण में भी मिलता है। त्रेता युग में सनातन धर्म में मूर्ति पूजा की शुरुआत इसी से हुई थी।
भगवान विष्णु की यह मूर्ति सवा 9 फीट लम्बाई में लेटी हुई अवस्था में है। लेकिन यह निद्रा अवस्था में नहीं आराम मुद्रा में है। विष्णु की आंखें पूरी तरह खुली हुई हैं। हाथों में गदा, चक्र, पदम और शंख हैं।इस विशाल मूर्ति में भगवान विष्णु शेषनाग र लेटे हुए हैं। सिर पर शेषनाग के नौ फन छाया कर रहे हैं। लक्ष्मी जी पैर दबा कर सेवा कर रही हैं। मान्यता है कि यहां एक बार मंत्र जपने पर वह 10 हजार गुणाज्यादा फलदायी होता है।
एकादशी पर तुलसी विवाह भी होगा
पंडित पुरूषोत्तम गौड़ ने बताया देवउठनी एकादशी के दिन दान-पुण्य करने से व्यक्ति के घर में शुभता का आगमन होता है। इस दिन तुलसी विवाह (तुलसी विवाह की तिथि) का बहुत अधिक महत्व बतायागया है। धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार कार्तिक में तुलसी-शालिग्राम के पूजन विवाह का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इनका पूजन करने और भजन कीर्तन करने से जन्म जन्मांतर के ज्ञात अज्ञात दोषखत्म हो जाते हैं। साथ ही जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। पारिवारिक सुख- शांति और आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। इस महीने में यम के निमित्त सूर्यास्त के समय तिल्ली के तेल का दीपक जलाने सेभी अज्ञात भय का नाश होता है। साथ ही अनुकूलता और आर्थिक प्रगति मिलती है।यह भी मान्यता है कि अपने घर की छत के ऊपर तिल के तेल का दीपक लगाकर लक्ष्मी, इंद्र, यम, कुबेर का ध्यान करके समृद्धि, ऐश्वर्य, प्रगति और धार्मिक उन्नति के लिए प्रार्थना करने से धार्मिक दृष्टिकोणसे पॉजिटिव रिजल्ट मिलते हैं।

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