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आजादी के 78 साल बाद भी धूल फांकने को मजबूर बच्चे: खड़काली की ढाणियों में कब खत्म होगा ‘सड़क का वनवास’?

आजादी के 78 साल बाद भी धूल फांकने को मजबूर बच्चे: खड़काली की ढाणियों में कब खत्म होगा ‘सड़क का वनवास’?

​नागौर। बड़े-बड़े नारों के बीच नागौर की खड़काली पंचायत से एक ऐसी तस्वीर सामने आ रही है, जो सरकार के दावों की पोल खोलती है। यहाँ की गोदारों, कस्वों और स्वामियों की ढाणियों में रहने वाले 200 परिवारों के लिए पक्की सड़क आज भी एक सपना है।
​बच्चों का कठिन सफर: स्कूल जाने की राह में ‘पत्थर और धूल’
​सबसे बुरा हाल स्कूल जाने वाले बच्चों का है। भारी बस्ता पीठ पर लादकर जब ये मासूम बच्चे उबड़-खाबड़ और पथरीले रास्तों पर चलते हैं, तो उनका आधा दम स्कूल पहुँचने से पहले ही निकल जाता है।
​साइकिल चलाना मुश्किल: रास्ते में इतने पत्थर और गड्ढे हैं कि बच्चे साइकिल से गिरकर चोटिल हो रहे हैं।
​गंदी होती ड्रेस: धूल भरे रास्ते के कारण बच्चों के कपड़े और जूते स्कूल पहुँचने तक पूरी तरह गंदे हो जाते हैं।
​7 महीने से अटकी फाइल, जनता परेशान
​सामाजिक कार्यकर्ता गेनाराम कस्वा ने बताया कि ग्रामीणों ने नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल को ज्ञापन देकर गलनी से कालड़ी फांटा तक 5 किमी सड़क बनवाने की मांग की थी। 7 महीने बीत गए, पर सड़क का काम शुरू नहीं हुआ।
​बीमारी में टूट जाती है आस
सड़क न होने से इन ढाणियों में एम्बुलेंस नहीं आ पाती। अगर कोई बीमार हो जाए या किसी महिला को अस्पताल ले जाना हो, तो ग्रामीणों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है।

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