
विद्युत निगमों पर एक करोड़ का घाटा चढ़ा, कोर्ट के आदेश के बाद निगमों में मची खलबली, राजस्थान में बिजली हो सकती है महंगी





विद्युत निगमों पर एक करोड़ का घाटा चढ़ा, कोर्ट के आदेश के बाद निगमों में मची खलबली, राजस्थान में बिजली हो सकती है महंगी
उदयपुर राजस्थान के विद्युत निगमों पर करीब एक लाख करोड़ का घाटा चढ़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खलबली मची हुई है। ऐसे में संभव है कि घाटा पूर्ति के लिए प्रति यूनिट एक रुपया दर बढ़ाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल के दरमियान ही घाटा खत्म करने के निर्देश दिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मार्च 2028 तक बिजली वितरण कंपनियों की नियामक परिसंपत्ति (घाटे) को खाली करने का निर्देश दिया है। ऐसे में राजस्थान सहित देशभर में बिजली के बिलों में वृद्धि होना संभव है।
सुप्रीम कोर्ट ने लंबित नियामक परिसंपत्तियों वाले सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए, उनके राज्य विद्युत नियामक आयोगों से इन नियामक परिसंपत्तियों की वसूली के लिए एक समयबद्ध रोडमैप पेश करने को कहा है। विद्युत नियामक आयोग को निर्देशों की पालना और निगरानी के निर्देश दिए हैं।
वसूली पर भी रहेगी लगाम
सुप्रीम कोर्ट ने वार्षिक राजस्व जरूरत का 3 प्रतिशत से ज्यादा वार्षिक रेगुलेटरी एसेट्स (फ्यूल सरचार्ज सहित) वसूल नहीं करने के निर्देश भी दिए हैं। राजस्थान के तीनों डिस्कॉम की मिलाकर 76 हजार करोड़ वार्षिक राजस्व जरूरत बनती है। ऐसे में बिजली टैरिफ के अलावा साल का 2200 करोड़ वसूल कर सकते हैं। बाकी घाटा पूर्ति सरकार को करनी होगी।
छीजत कम नहीं होना
विद्युत नियामक आयोग (आरइआरसी) हर साल निगमों को छीजत कम करने के टारगेट देता है। छीजत कम नहीं कर पाने पर बिजली ज्यादा खरीदनी पड़ती है, जिससे घाटा बढ़ता है। अजमेर डिस्कॉम में 10, जयपुर में 15 और जोधपुर डिस्कॉम में 15 प्रतिशत से ज्यादा छीजत है।
सरकार से सब्सिडी नहीं मिलना
घाटे का ज्यादातर हिस्सा सब्सिडी है। सरकार बिजली में छूट देती है, उसकी राशि निगम को नहीं देती। इलेक्ट्रिीसिटी एक्ट की धारा 65 के मुताबिक सरकार बिजली दरों में छूट देना चाहती है तो पूरी सब्सिडी राशि एडवांस में जमा करवाए। इसके बावजूद सरकार नहीं देती।
पोल किराया वसूल नहीं कर पाना
दूरसंचार कम्पनियों की ओर से लाइनें खींचने के लिए बिजली पोल का इस्तेमाल किया जाता है। नियमानुसार पोल का किराया जमा होना चाहिए। लेकिन, विद्युत निगम कम्पनियों से किराया वसूल नहीं कर पाता। प्रदेश में यह बकाया राशि करीब 40 हजार करोड़ रुपए है।
अनावश्यक खर्चे कम नहीं होना
विद्युत निगमों में अनावश्यक खर्चे कई है। जैसे कि बैंक और कम्पनियों से महंगी दर पर लोन लेना। महंगी ब्याज दर से घाटा बढ़ता है और उस राशि का भार जनता पर डाला जाता है। बिजली मीटर और ट्रांसफार्मर जलने की तादाद बहुत है, जिसमें कमी नहीं ला पा रहे हैं।

