भूल को ना माने, ना समझे वह अज्ञानी- 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. - Khulasa Online भूल को ना माने, ना समझे वह अज्ञानी- 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. - Khulasa Online

भूल को ना माने, ना समझे वह अज्ञानी- 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

बीकानेर। मानव जीवन में भूल होने की बड़ी संभावना  है। हर मानव से भूल होती है। लेकिन भूल को ना समझना अज्ञानता है और भूल को स्वीकार कर लेना समझदारी है।  संसार के अन्दर ज्ञात-अज्ञात कई तरह की भूलें होती है, भूल का सुधार करना साधना है। इसलिए भूल को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने गुरुवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चल रहे चातुर्मास के नित्य प्रवचन में यह बात कही।

आचार्य श्री ने कहा कि श्रावक को अपना चि8ा स्थिर करना चाहिए, अगर कोई भूल हो जाए और कोई भूल के बारे में चेताया है तो उसे सहज स्वीकार कर लेना चाहिए। महाराज साहब ने कहा यह याद रखो कि भूल करने वाले की दुर्गती होती है। कबूल करने वाले की सद्गती होती है।

महाराज साहब ने कहा कि  क्षमा करने वाला कभी छोटा नहीं होता और क्षमा करने वाला भी कभी छोटा  नहीं होता। अपने भीतर उत्तराध्यन सूत्र में लिखा है, क्षमा करने वाला अपने भीतर आह्लाद (प्रसन्नता) का भाव पैदा करता है। इसलिए अपने अंदर बड़प्पन का भाव पैदा करो, व्यक्ति उम्र से या धन सम्पदा से और कद- काठी से बड़ा नहीं होता, बड़प्पन से आदमी बड़ा होता है। इसलिए अपने भीतर आत्मियता का भाव लाएं, जिसके अंदर आत्मियता होती है, वही क्षमा कर सकता है।

महाराज साहब ने कहा कि साता (सुख) की प्राप्ति के लिए महापुरुषों ने 15 बोल बताए हैं। इसके तीसरे बोल में कहा गया है कि हमने अगर किसी की भूल को माफ कर दिया, नजरअंदाज कर दिया वह सामने वाले को भी नहीं स्वयं को भी प्रसन्न करता है।

महाराज साहब ने एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक महिला जिसका नाम यूदनी था। वह इसाई धर्म को मानने वाली थी। वह हमेशा चर्च जाया करती थी। उसके साथ एक अजीब बात होती, वह जब भी चर्च में प्रवेश करती, करते के साथ उसके शरीर में खुजली शुरु हो जाती और जगह-जगह लाल चकते हो जाते थे। चर्च से बाहर आने के बाद खुजली और चकते सब खत्म हो जाते थे।  इससे वह बहुत परेशान थी और कई बार डॉक्टरों को दिखाया पर आराम नहीं मिला। बहुत विचार करने पर उसे एहसास हुआ कि वो जब चर्च में दाखिल होती है तब उसके साथ यह घटित होता है। एक दिन उसने यह बात चर्च के पादरी से कही, पादरी ने उसे कुछ दिन बाद आने के लिए कहा, कुछ दिनों के बाद जब पादरी से वह महिला मिली तो पादरी ने उसके काम के बारे में, रहने के स्थान सहित अन्य जानकारियां ली। इसके बाद पादरी ने उसे बताया कि तुम जहां काम करती हो, वहां पर पैसे चुराती हो, इस वजह से यह सब हो रहा है। तुम एक काम करो, जाकर अपने मालिक को सब सच बता दो, इससे दो बात होगी। पहली यह कि मालिक तुम्हें काम से निकाल दे और दूसरी यह कि उसे लगेगा तो वह तुम्हारी पगार बढ़ा दे। महिला ने पादरी की बात मान अपने मालिक को सब सच बता दिया। मालिक उसकी ईमानदारी से बहुत प्रसन्न हुआ और उसकी नौकरी तो बची ही, साथ ही पगार भी बढ़ा दी। इस प्रकार उसे पाप कर्म से भी मुक्ति मिल गई और लाभ भी हो गया। महाराज साहब ने कहा कि धर्म संघ में आने से लाभ ही मिलता है। नुकसान तो होना ही नहीं है। इसलिए भूल स्वाभाविक है और अगर  हो जाए तो उसे सुधारने का प्रयत्न करो। ऐसा कोई नहीं है जो कभी भूल नहीं करता है। भूल सब से होती है। लेकिन हमें अपनी भूल को सुधारना है, दूसरों की भूल को नजरअंदाज करो, उनकी भूलों को उजागर मत करो, लेकिन देखने में यह आता है कि व्यक्ति अपनी भूलों पर तो पर्दा डालता है और दूसरों की गलतियों को सार्वजनिक करने का काम करता है। अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो आप भावनात्मक द्वेषों, व्यथाओं से बच जाओगे। महाराज साहब ने कहा कि हमारा धर्म कहता है ‘क्षमा विरस्य आभूषणम्’, क्षमा वीरों का आभूषण है और हमें हमारे धर्म में क्षमा को ही महत्वपूर्ण बताया गया है।

आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने कहा कि क्षमापना के भाव रिश्तों में मधुरता पैदा करते हैं। महाराज साहब ने भजन ‘धर्म री गंगा में हाथ धोय ले रे, उम्र थोड़ी सी हमको मिली थी मगर..’भजन के साथ प्रवचन को विराम दिया।

संघ के प्रति निष्ठा रखें

महाराज साहब ने उपस्थित सभी श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि संघ के प्रति निष्ठा रखें, संघ की मर्यादा के लिए, संरक्षण के लिए सभी श्रावकों को मिलकर काम करना चाहिए।

बाहर से आए श्रावकों का किया स्वागत

महाराज साहब ने कहा कि बीकानेर की नगरी आस्था की नगरी है, पुण्य की नगरी है, धर्म नगरी है और बीकानेर एक तरह से जैन नगरी है। जहां बड़ी संख्या में सकल जैन समाज के लोग रहते हैं। इतना ही नहीं अन्य अजैन समाज भी जैन समाज के धर्म-ध्यान कार्यक्रमों में बढ़-चढक़र सहभागिता निभाते हैं। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ की ओर से मुनि वैराग्यप्रिय जी के जन्म स्थली रत्नागिरी से बड़ी संख्या में पधारे तथा रतलाम, पूणे और मंदसौर सहित अन्य स्थानों से आए श्रावक-श्राविकाओं का स्वागत किया गया।

सामूहिक एकासन रविवार को

श्री शान्त- क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि श्री संघ की ओर से सामूहिक एकासन रविवार 7 अगस्त को अग्रसेन भवन में आयोजित किया जाएगा।

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