
विकलांगता का बना मजाक,तीन पदक जीतकर दिया जवाब






चूरू जिले के देवेन्द्र झाझड़िया ने टोक्यो पैरा ओलंपिक में 64.35 मीटर भाला फेंककर रजत पदक जीता। देवेन्द्र झाझड़िया की आठ साल की उम्र में करंट लगने से बायें हाथ की कलाई कट गई थी। इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने साबित कर दिखाया कि इंसान के इरादे बुलन्द हो तो हर समस्या को पार कर मंजिल मिल ही जाती है। देवेन्द्र के भाई ने बचपन का किस्सा सुनाते हुए बताया कि एक बार गांव में खेलते समय किसी बच्चे ने देवेन्द्र का विकलांग कहकर मजाक बनाया था। उस बच्चे की बात को सुनकर देवेन्द्र सहज रहा। उसने सिर्फ इतना कहा कि इस कटे हुए हाथ से ही एक दिन कीर्तिमान साबित कर देश का नाम रोशन करूंगा।
बचपन में लकड़ी का बांस फेंककर प्रैक्टिस की
सादुलपुर तहसील के गांव झाझड़िया की ढाणी में किसान राम सिंह झाझड़िया व जीवणी देवी के 10 जून 1981 को जन्मे देवेन्द्र की परवरिश सामान्य बच्चे की तरह हुई थी। बचपन से ही देवेन्द्र की खेलकूद में रूची थी। रतनपुर के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल के खेल मैदान में भाला फेंकने की शुरूआत की थी। उस समय भाला नहीं मिला तो लकड़ी का बांस फेंककर प्रैक्टिस करता था। इसके बाद हनुमानगढ़ में भी प्रशिक्षण लिया था। सात भाई बहनों में देवेन्द्र सबसे छोटे है। वहीं सबसे बड़े भाई महेन्द्र झाझड़िया, जोगेन्द्र झाझड़िया व तीन नंबर स्वयं देवेन्द्र झाझड़िया है। तीनों भाईयों से बड़ी इनकी चार बहने भी है। 2007 में देवेन्द्र की शादी चिमनपुरा निवासी मंजू के साथ हुई थी। मंजू स्वयं भी कबड्डी की नेशनल खिलाड़ी है। इनके दो बच्चे है।


