
अल्फा से भी घातक है डेल्टा!, भारत में मिला डेल्टा वैरिएंट, अब क्या करेगी सरकार






भारत में मिला कोरोना का वैरिएंट डेल्टा सुपर इन्फेक्शियस है। इसने ही भारत में 1.80 लाख से अधिक लोगों की जान ली है। भारत में दूसरी लहर 11 फरवरी से शुरू हुई थी और अप्रैल में भयावह हो गई थी। इसी के चलते देश के अधिकांश राज्यों में लॉकडाउन है या कड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं।
भारत में कोरोना के वैरिएंट्स की स्टडी के लिए बने SARS-CoV-2 जीनोमिक कंसोर्टिया (INSACOG) और नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) के वैज्ञानिकों ने स्टडी की है। इसके आधार पर ही उन्होंने दावा किया कि अब तक कोरोना के अल्फा (यूके में मिले) वैरिएंट को सबसे ज्यादा इन्फेक्शियस माना जा रहा था। पर भारत में मिला डेल्टा (डबल म्यूटेंट) वैरिएंट उससे भी 50% ज्यादा इंफेक्शियस है।
अब सरकार क्या करेगी?
- स्टडी के आधार पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सतर्कता बढ़ाने की सलाह दी गई है। खासकर, विदेश से आने वाले यात्रियों के पॉजिटिव मिलने पर उनके सैम्पल कलेक्ट करने को कहा गया है, ताकि उनकी जीनोम सिक्वेंसिंग कर नए वैरिएंट्स ऑफ कंसर्न का पता लगाया जा सके।
- राज्यों को दी गई जानकारी के अनुसार डेल्टा वैरिएंट सभी राज्यों में मौजूद है। पर इसने दिल्ली, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा और तेलंगाना में अधिक लोगों को प्रभावित किया है। इन राज्यों में ही दूसरी लहर से सबसे अधिक नुकसान भी हुआ है।
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अब तक वैज्ञानिकों को क्या पता चला है?
- दो हफ्ते पहले तक भारत में कई वैरिएंट्स पॉजिटिव केस का कारण बन रहे थे। जीनोमिक डेटा बताता है कि यूके में सबसे पहले नजर आया B.1.1.7 वैरिएंट दिल्ली और पंजाब में सक्रिय था। वहीं, B.1.618 पश्चिम बंगाल में और B.1.617 महाराष्ट्र में केस बढ़ा रहा था।
- बाद में B.1.617 ने पश्चिम बंगाल में B.1.618 को पीछे छोड़ दिया और ज्यादातर राज्यों में प्रभावी हो गया है। दिल्ली में भी यह तेजी से बढ़ा है। नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के डायरेक्टर सुजीत सिंह ने 5 मई को दिल्ली में पत्रकारों से कहा था कि केस 3-4 लाख तक पहुंचे तो उसके लिए B.1.617 ही जिम्मेदार है।
- WHO के मुताबिक भारत में 0.1% पॉजिटिव सैम्पल की जीनोम सीक्वेंसिंग की गई। ताकि वैरिएंट्स का पता चल सके। अप्रैल 2021 के बाद भारत में सीक्वेंस किए गए सैम्पल्स में 21% केसेज B.1.617.1 के और 7% केसेज B.1.617.2 के थे। यानी केस में बढ़ोतरी के लिए यह जिम्मेदार है।
- सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट और भारतीय SARS-CoV-2 जीनोम सीक्वेंसिंग कंसोर्टिया (INSACOG) के प्रमुख शाहिद जमील का कहना है कि B.1.617 वैरिएंट्स तेजी से नए केस बढ़ा रहा है क्योंकि यह अन्य के मुकाबले ज्यादा फिट है। वहीं यूके के यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज के वायरोलॉजिस्ट रवींद्र गुप्ता भी कहते हैं कि इस वैरिएंट की ट्रांसमिशन क्षमता सबसे ज्यादा है।
सबसे पहले यह वैरिएंट किसे और कैसे मिला?
- डेल्टा वैरिएंट को भारतीय वैज्ञानिकों ने सबसे पहले महाराष्ट्र से अक्टूबर 2020 में लिए कुछ सैम्पल्स में पकड़ा था। INSACOG ने जनवरी में अपनी सक्रियता बढ़ाई तो पता चला कि महाराष्ट्र में बढ़ते मामलों के पीछे B.1.617 ही जिम्मेदार है।
- पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) की डायरेक्टर प्रिया अब्राहम के मुताबिक 15 फरवरी तक महाराष्ट्र में 60% केसेज के लिए B.1.617 ही जिम्मेदार था। इसके बाद इसके सब-लाइनेज सामने आते चले गए।
- 3 मई को एक स्टडी में NIV वैज्ञानिकों ने दावा किया कि इस वैरिएंट ने स्पाइक प्रोटीन, जिससे वायरस इंसान के शरीर के संपर्क में आता है, में 8 म्यूटेशन किए हैं। इसमें दो म्यूटेशंस यूके और दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट्स जैसे थे। वहीं, एक म्यूटेशन ब्राजील वैरिएंट जैसा था, जो इसे इम्युनिटी और एंटीबॉडी को चकमा देने में मदद करता है। अगले ही दिन जर्मनी की एक टीम ने भी अपनी स्टडी में इस दावे का समर्थन किया।
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क्या यह वैरिएंट ही कोरोना के गंभीर लक्षणों के लिए जिम्मेदार है?
- कुछ कह नहीं सकते। पर जानवरों में हुई छोटी स्टडी कहती है कि यह वैरिएंट गंभीर लक्षण के लिए जिम्मेदार हो सकता है। 5 मई को NIV की वैज्ञानिक प्रज्ञा यादव की एक स्टडी प्री-प्रिंट हुई, जिसमें दावा किया गया है कि अन्य वैरिएंट्स के मुकाबले B.1.617 से इन्फेक्टेड हैमस्टर्स के फेफड़ों में गंभीर असर हुआ है।
- पर क्या यह स्टडी वास्तविक दुनिया में भी असर दिखा रही है, यह दावा करने के लिए और डेटा चाहिए। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि रिसर्च बताती है कि यह वैरिएंट गंभीर लक्षण पैदा कर सकता है। पर हैमस्टर्स से तुलना के आधार पर यह बताना सही नहीं होगा। इसके लिए और स्टडी की जरूरत है।
इस पर एंटीबॉडी या वैक्सीन कारगर है या नहीं?
- पक्के तौर पर नहीं पता। WHO का कहना है कि डेल्टा वैरिएंट पर वैक्सीन की इफेक्टिवनेस, दवाएं कितनी प्रभावी हैं, इस पर कुछ नहीं कह सकते। यह भी नहीं पता कि इसकी वजह से रीइन्फेक्शन का खतरा कितना है। शुरुआती नतीजे कहते हैं कि कोविड-19 के ट्रीटमेंट में इस्तेमाल होने वाली एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की इफेक्टिवनेस कम हुई है।
- इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अधिकारियों का दावा है कि भारत बायोटेक की कोवैक्सिन इस वैरिएंट से इन्फेक्शन को रोकने में कारगर साबित हुई है। भारत में उपलब्ध अन्य वैक्सीन की इफेक्टिवनेस की अभी जांच की जा रही है।
- कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में हुई स्टडी में भारत में मिला वैरिएंट फाइजर की वैक्सीन से बनी एंटीबॉडी से बचने में कामयाब रहा है। एक अन्य स्टडी में दिल्ली में रीइन्फेक्ट हुए डॉक्टरों में यह वैरिएंट मिला है। इन डॉक्टरों ने तीन-चार महीने पहले कोवीशील्ड के डोज लिए थे।
इसका मतलब यह है कि अगर आपको पहले कोरोना इन्फेक्शन हुआ है तो नए वैरिएंट्स आपको रीइन्फेक्ट कर सकते हैं। वैक्सीन भी इन्फेक्शन रोक नहीं सकेगी। पर अच्छी बात यह है कि जिसे वैक्सीन लगी होगी, उसमें काफी हद तक गंभीर लक्षण नहीं होंगे।


