
स्कूल जाकर पढऩे से अब वंचित न रहें बच्चे, वायरस के साथ ही सीखना होगा जीना






बीकानेर। कोरोना संक्रमण जनित डर और आशंका के बीच सरकार द्वारा जारी तमाम दिशानिर्देशों का पालन करते हुए इस माह के आरंभ से देश के अधिकांश हिस्सों में चरणबद्ध तरीके से खोले जा रहे स्कूल। हालांकि इस बीच कुछ लोग इस बात की आशंका भी जता रहे हैं कि संक्रमण की तीसरी लहर में बच्चों पर ज्यादा बुरा असर पड़ सकता है। इसीलिए बच्चों को विद्यालय भेजने के विरुद्ध कई बड़े प्रश्न उठ रहे हैं। पहला सबसे बड़ा प्रश्न है कि अगर इतने समय से बच्चे आनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं तो तकनीक का सदुपयोग करके कुछ और समय तक बच्चे घर से ही पढ़ाई क्यों न करें? दूसरा बड़ा प्रश्न है कि जब तीसरी लहर की आशंका है तो अनजाने वायरस के सामने बिना टीकाकरण के बच्चों को विद्यालय भेजने का खतरा क्यों उठाना चाहिए? तीसरा कि छोटे बच्चों के लिए भी विद्यालय खोलने के पीछे शिक्षा माफिया काम कर रहा है। ऐसे साजिशी सिद्धांत के पक्ष में तर्क देने वाले कह रहे हैं कि देश में निजी विद्यालयों में पढऩे वाले बच्चे विद्यालय नहीं जा रहे हैं और कई निजी विद्यालयों को बंद भी करना पड़ा है, इसीलिए सरकारों पर दबाव है कि विद्यालय जल्द से जल्द खोले जाएं।ये तीनों प्रश्न महत्वपूर्ण हैं और इस पर विस्तार से चर्चा कर उसका सही पक्ष लोगों के सामने लाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि छोटे बच्चों से जुड़े होने की वजह से यह मसला अतिसंवेदनशील हो जाता है। सबसे पहले तकनीक के होते हुए बच्चों को विद्यालय भेजकर खतरे में डालने वाले तर्क की बात करते हैं। तकनीक आधुनिक समय में केवल शिक्षा ही नहीं हर कार्य को आसान करने का माध्यम बन गई है और वायरस के दुष्प्रभाव से पहले ही भारत में डिजिटल लॄनग कारोबार तेजी से बढ़ रहा था। आनलाइन माध्यमों के जरिये विभिन्न तरह के आकर्षक, रुचिकर पाठ्यक्रमों से बच्चों को तेजी से सिखाने के लिए कई नए स्टार्टअप भी इसमें आगे आए हैं। बड़े कारोबारी बैठकों और वीडियो काल के जरिये होने वाली बातचीत में शिक्षा का नया आयाम जुड़ा तो ढेरों कंपनियों ने एक मोबाइल, कंप्यूटर, टैबलेट और लैपटाप पर पूरी कक्षा को समेट दिया। कहा जा सकता है कि तकनीक ने बच्चों को शिक्षा की आवश्यकता पूरी कर दी, लेकिन इसी के साथ तकनीक से जुड़ी हुई एक बड़ी मुश्किल भी है कि तकनीक भले ही सबको जोडऩे का काम कर रही है, लेकिन शुरुआती दौर में नई तकनीक का लाभ सुविधासंपन्न लोगों को ही मिल पाता है और आनलाइन कक्षाओं के मामले में भी यही हुआ है। निजी या फिर सरकारी विद्यालयों में भी पढऩे वाले सुविधासंपन्न बच्चे ही आनलाइन माध्यम से अपनी पढ़ाई लगातार कर रहे हैं। यहां तक कि महानगरों में भी बहुत से बच्चों के लिए आनलाइन माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर पाना आसान नहीं रहा। कस्बों और गांवों के विद्यालयों पर तालाबंदी के साथ ही उन विद्यालयों के छात्रों की बेहतरी के रास्तों पर भी ताला बंद हो गया।


