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कभी दिल्ली वाले मंत्री जी के खास सिपहसलार रहे छोटे नेताजी आजकल फिर चर्चा में, पढ़ें क्या कहती है कानाफूसी

पत्रकार, कुशाल सिंह मेड़तिया

विधानसभा चुनाव को लेकर टिकटों की कवायद शुरू हो चुकी है और दावेदार भी अपने ढंग से सक्रिय हो चुके हैं। चुनाव के मौसम में अंदरखाने की कई चर्चाएं चुनावी मिजाज बताने के लिए काफी होती है, बंद कमरे में दावेदार की नेताओं और समर्थकों ठ्ठसे होती बात या फिर चौक चौराहों पर चाय की दुकान तक पर दावेदारों और उनकी सक्रियता को लेकर होती चर्चा। इन सबसे आपको हम करवाएंगे। जो कुछ भी बात पहुंचेगी उससे करवाएंगे आपको रूबरू.....आज से चुनाव तक आप भी पढि़ए हर सप्ताह हमारी विशेष रिपोर्ट.....

कानाफूसी

'चाणक्य' की परीक्षा का समय

कभी दिल्ली वाले मंत्री जी के खास सिपहसलार रहे छोटे नेताजी आजकल फिर चर्चा में है। किसी जमाने में नेताजी के सलाहकार रहे छोटे नेताजी यदा कदा चुनिंदा मीडियाकर्मियों के लिए मीडिया मैनेजर की भूमिका निभाते रहते हैं। पिछले सालों में अपनी उपयोगिता सिद्ध करने में सफल रहे ये महाशय अब दोस्तों के बीच 'चाणक्य' कहलाए जाने लगे हैं। मंत्री जी से खास कारण से दूर होने के बाद ये नेपथ्य में जाने की बजाय अनोखे परिणाम के साथ ये ज्यादा चमक से बाहर आए और अब आजकल शोले के वीरू की भूमिका में जय के लिए पर्दे के पीछे तैयारी में जुटे हैं। बरहराल अब देखने वाली बात है कि दोस्तों के बीच के चाणक्य वास्तव में इस उपमा को सही साबित कर पाते हैं कि नहीं।

अपने तो अपने होते हैं

कभी सत्ताधारी पार्टी के पदाधिकारी रहे एक युवा को लेकर आजकल काफी चर्चा है। पिछले दिनों विपक्षी पार्टी परिवर्तन यात्रा में केंद्रीय मंत्री के स्वागत में सात समंदर पार से आकर टिकट मांग रहे एक दावेदार के लिए अपने दोस्तों के साथ ये पूर्व पदाधिकारी दिखे तो आसपास खड़े लोग अचरज में पड़ गए। पास खड़े लोगों ने वहां खोजबीन की और पता लगाया तो जवाब मिला 'अपने तो अपने होते हैं।'

अब नया ठिकाना

टिकट के लिए कितने जतन करने पड़ते हैं, ये तो टिकट की दौड़ में शामिल दावेदार ही बता सकता है। तभी तो बुजुर्ग कह गए कि चुनाव तो पडौसी के घर में ही अच्छा लगता है। टिकट भले ही अपने क्षेत्र के लिए मांग रहे हो लेकिन इसकी दौड़ धूप में गुलाबी नगरी से देश की राजधानी तक करनी पड़ती है। लेकिन सूरसागर वाली सीट के दावेदार ने इसका नया तोड़ निकालते हुए एक पैर यहां और दूसरा वहां की बजाय देश की राजधानी में ही डेरा डाल लिया है। चार महीने के लिए किराए पर पूरा घर बसा लिया है , अब कौन रोज रोज होटल का रास्ता देखें। बता रहे हैं कि पब्लिक पार्क की चाय की थड़ी वाले नत्थू की भी ग्राहकी इसलिए कम हो गई है। क्योंकि नेताजी और उनके समर्थक अब दिल्ली में ही डेरा डाले हैं।

बन जाएगा रिकॉर्ड

शहर के चमत्कारी नेताजी इस चुनाव में कोई बड़ा चमत्कार नहीं कर दे इसको लेकर फिर से कानाफूसी शुरू हो गई है। अलग अलग चुनाव लड़ चुके नेताजी अंधेरी रात में पाला बदलकर टिकट का कमाल कर चुके हैं। अब उनके नए बने जिले के एक सीट से चुनाव लडऩे की चर्चा है। हालांकि नेताजी के खास लोग भी अभी तक इस बात से अनजान थे लेकिन नेताजी के चमत्कार को सब देख चुके हैं ऐसे में ये चर्चा एक और चमत्कार हो जाए तो बड़ी बात नहीं। हालांकि परिणाम तो जनता जनार्दन के हाथ में है। लेकिन टिकट के मामले में नेताजी का एक रिकार्ड जरूर बन जाएगा।

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