चमकन घाघरों चमकन चीर, बोल मारी गवरा कितो बड़ों वीर क्या महत्व है गण्गौर का खास बातचीत, देखे वीडियों
शिव भादाणी
बीकानेर। सुयोग्य वर व मंगलमय जीवन की कामना को लेकर कुआंरी कन्याओं व विवाहितों ने गीतों के साथ गुरुवार से 16 दिवसीय गणगौर पूजन का अनुष्ठान के साथ गणगौर- ईसर तथा भाइया की काष्ठ की प्रतिमाओं को सजाने संवारने का कार्य श्रद्धा भाव से शुरू कर दिया। गीतों के साथ गणगौर पूजन में बालिकाओं का सहयोग व मार्गदर्शन घर.परिवार की बड़ी बुर्जुग महिलाएं कर रही है। भुजिया बाजार के पास के मथैरण चैक ने गणगौर बाजार का रूप ले लिया। चौक में रहने वाले महेश महात्मा ने बताया कि पिछले दो साल बाद गणगौर के अवसर पर उत्सव देखने को मिला है। क्योकि दो साल से कोरोना के कारण गणगौर के अवसर पर पूरे देश में पाबंदियों के चलते गणगौर की बिक्री भी कम रही और अब महंगाई की मार भी पड़ रही है। क्योकि जो गणगौर का जोड़ा 600 रुपये तक मिलता था वहीं जोड़ा अब 900 से लेकर 1100 रुपये तक बिकने लगा है। इसका मुख्य कारण है लकड़ी, कलर सभी महंगे हो गये है। पिछले करीब 50 सालों से महेश महात्मा का परिवार गणगौर के कार्य से जुड़ा हुआ है
यह इनका पुश्तनी काम है लेकिन पिछले काफी दो साल कोरोना के कारण धंधे में काफी नुकसान हुआ है। लेकिन इस साल थोड़ी राहत मिली है। वहीं बड़ा बाजार, कोटगेट तोलियासर भैरव गली, जस्सूसर गेट ,गंगाशहर व विश्वकर्मा गेट के बाहर ईश्वर आर्ट गैलरी कालीजी के मंदिर के पास सहित अनेक स्थानों पर गणगौर की प्रतिमाओं उनके वस्त्रों और गहनों की बिक्री की जा रही है। कोरोना के कारण दो वर्षों से गणगौर पूजन को प्रतीक रूप् में करने वाली बालिकाएं व महिलाएं इस बार पूर्ण मनोयोग व उत्साह से गणगौर का पूजन कर रही है। खुलासा न्यूज के शिव भादाणी ने गणगौर के बारे में पूरी जानकारी ज्योति जैन से बातचीत की उन्होंने बताया कि गणगौर में गण शब्द से आशय भगवान शंकर जी से है और गौर शब्द से आशय माँ पार्वती से है. यह पर्व 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है. इस पर्व को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती हैं. इस दिन भगवान शिव की और माता पार्वती की पूजा की जाती है.
इस पर्व में जहाँ कुंवारी लड़कियां इस दिन गणगौर की पूजा कर मनपसंद वर की कामना करती हैं, वहीँ शादीशुदा महिलाएं इस दिन गणगौर का व्रत रख अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती है.
इस दिन महिलाएं गणगौर मतलब शिव जी और मां पार्वती की पूजा करते समय दूब से दूध की छांट देते हुए गोर गोर गोमती गीत गाती हैं. नवविवाहित महिलाएं पहला गणगौर का पर्व अपने पीहर आकर मनाती है. गणगौर की पूजा में लोकगीत भी गाये जाते हैं जो इस पर्व की शान है.
बहुतों के मन में ये सवाल जरुर आया होगा की आखिर में गणगौर क्यूँ मनाया जाता है? गणगौर पर्व के पीछे मान्यता है कि इस दिन कुंवारी लड़कियां गणगौर की पूजा करती हैं तो उन्हें मनपसंद वर की प्राप्ति होती है और शादीशुदा महिलाएं यदि गणगौर पूजा करती हैं और व्रत रखती है तो उन्हें पतिप्रेम मिलता है और पति की आयु लंबी होती है.
घर.परिवार व आस पड़ौस की बालिकाएं स्नान.ध्यान कर समूह में घरों की छत पर विभिन्न तरह की सफेद मिट्टी की आकृृति बनाकर उस पर मिट्टी के पालसिएं में रखी होली की राख की पिण्डोलियां बनाकर पूजन कर रही है। परम्परिक गीतों के साथ फिल्मी व राजस्थानी गीतों की तर्जों पर आधारित व आपस में हंसी ठिठोली के भी गीत गा रही है
गोपेश्वर बस्ती में में रहने वाली ज्योति जैन, प्रिया ओझा, नंदा भादाणी, डिम्पल जैन, सोनू भादाणी, पूनम जैन, लक्ष्मी भादाणी, दीक्षा सेवग, जुही सोनी ने बताया कि दो साल बाद गणगौर पर कोरोना की मार नहीं है। देवी गौरी के गणगौर का पूजन श्रद्धा भाव से कर रही है।
शीतला सप्तमी व अष्टमी से गणगौर का तीन समय पूजन भोग का अनुष्ठान शुरू हो जाएगी। शहरी व ग्रामीण इलाकों में कई जगह शाम को महिलाएं एकत्रित होकर भी गणगौर के गीतों को गा रही है। बारह गुवाड़ क्षेत्र के कई पुरुषों की मंडलियां भी गणगौर गीतों को घरों में जाकर गाना शुरू कर दिया है ।
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