
सावे की धूम, पूरा शहर बनेगा बाराती, करीब ढाई सौ युवक युवतियां विवाह बंधन में बंधेंगें







बीकानेर। बीकानेर शहर का परकोटा आज सजा-धजा है। अधिकांश घरों पर लाइटिंग है, मोहल्लों में खास तौर पर साफ सफाई की गई है। सडक़ के दोनों तरफ चूने की सफेद लाइनिंग है। कहीं पुलिस की खाकी वर्दी व्यवस्था करती नजर आती है तो कहीं यातायात पुलिसकर्मी जाम में फंसे वाहनों को निकालने में लगे हैं। गली-मोहल्ले से जो भी निकल रहा है, वो रंग-बिरंगे कपड़ों के साथ सिर पर साफा बांधे हैं। दरअसल, बीकानेर शहर के किसी एक मोहल्ले में नहीं बल्कि पूरे परकोटे में ही शादियां ही शादियां हैं। ये कहना गलत नहीं होगा कि आज पूरा परकोटा एक विवाह स्थल हैं। बीकानेर के पुष्करणा ब्राह्मण समाज की ओर से रविवार को ओलंपिक सावा आयोजित किया जा रहा है। हर दो साल में बीकानेर का ये समाज एक ही दिन में विवाह करने का अनूठा रिकार्ड बनाता है। ये सामूहिक विवाह किसी एक मैदान पर एक साथ नहीं होते, बल्कि पूरे परकोटे में जगह-जगह होते हैं। एक तारीख तय है, इसलिए पुष्करणा समाज के अपने युवा बेटे-बेटियों को इी दिन ब्याहते हैं। उद्देश्य सिर्फ इतना है कि एक ही दिन विवाह होंगे तो खर्चा कम हो जाएगा। ऐसा होता भी है। आमतौर पर जिस बारात में एक हजार लोग पहुंचते हैं, वहां सौ लोगों को ले जाना भी चुनौतीपूर्ण हैं। बाराती कम होते हैं तो व्यवस्था भी जबर्दस्त रहती है। खाने का खर्च कम, भवन का खर्च कम होता है।
इस बार करीब तीन सौ युवकों का विवाह
बीकानेर की अनूठी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले पंडित जुगल किशोर ओझा का कहना है कि पुष्करणा समाज हर दो साल में एक बार सावा आता है। इस बार भी करीब तीन सौ युवक-युवतियों का विवाह हो रहा है। करीब तीन सौ घरों में एक साथ विवाह हैं। इस दौरान दुल्हा विशेष तरह का साफा पहनता है, जिसे खड़गिया पाग कहा जाता है। बीकानेर की रमक-झमक संस्था की ओर सेऐसे पाग उपलब्ध कराए जाते हैं।
दुल्हे की पौशाक है विशेष
सावे में विवाह करने वाले दूल्हे की पौशाक ही अनूठी होती है। इस दिन अधिकांश दुल्हे सूट के बजाय पितांबर पहनकर विवाह करने जाते हैं। सिर पर राजस्थानी पगड़ी के बजाय खडगिया पाग होती है, जो पीले रंग की होती है। पीली धोती और पीले बनियानके साथ विवाह करने जाने वाला दुल्हा अलग ही नजर आता है।
श्रेष्ठ मुर्हुत है विवाह कारण पुष्करणा सावे की तारीख तय करने के लिए समाज के विद्वान एक साथ एकत्र होते हैं। पंडित आपस में शास्त्रार्थ करते हैं। इसके बाद वर को शिव और वधु को पार्वती मानते हुए विवाह मुर्हुत तय किया जाता है। ये श्रेष्ठतम विवाह मुर्हुत है। ऐसे में हर कोई इसी श्रेष्ठ दिन शादी करना चाहता है।
पहले चार साल से, अब दो साल में एक वक्त था जब पुष्करणा सावा करीब चार साल से आता था। ऐसे में इसे पुष्करणा ओलंपिक कहा गया। पिछले कई सालों से ये दो साल के अंतराल से आयोजित होता है। इससे विवाह की संख्या में फिर बढ़ोतरी हो गई है। हर साल डेढ़ सौ के आसपास विवाह एक दिन में हो जाते हैं। इस बार भी कई संस्थाओं ने पुष्करणा विवाहों की सूची तैयार की है, जिन्हें अलग-अलग संस्थाएं आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराते हैं। इस सूची में सौ से ज्यादा नाम है। वहीं बड़ी संख्या में लोग किसी तरह का आर्थिक सहयोग नहीं लेते,उनके यहां भी विवाह रविवार को ही है। देशभर से आते हैं पुष्करणा
देशभर से बड़ी संख्या में पुष्करणा समाज के लोग इसी दिन बीकानेर आते हैं। खासकर कोलकाता में रहने वाले पुष्करणा सावे के दिनों में बीकानेर आते हैं और अपने लडक़े-लड़कियों के लिए उपयुक्त जीवनसाथी चुनकर विवाह कर देते हैं। कई बार “चट मंगनी-पट ब्याह जैसे हालात भी होते हैं।
सरकार देती है आर्थिक सहयोग
पुष्करणा सावा समिति से जुड़े वीरेंद्र किराडू ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से सावे में विवाह करने पर पुष्करणा समाज की कन्या को 21 हजार रुपए दिए जाते हैं। वहीं इस आयोजन को करने वाली संस्था को चार हजार रुपए मिलते हैं। कुछ संस्थाएं अब ये चार हजार रुपए भी कन्या को ही देते हैं। इस बार सरकार ने न सिर्फ पुष्करणा बल्कि गैर पुष्करणा को भी इस दिन विवाह करने परआर्थिक सहयोग देने की घोषणा कर दी हे।
तीन दिन से चल रहे हैं आयोजन पुष्करणा सावे के तहत विवाह तो रविवार को होंगे लेकिन विवाह के आयोजन पिछले तीन दिन से चल रहे हैं। शनिवार की रात गणेश परिक्रमा निकाली गई। हर घर से दुल्हे और दुल्हन के साथ उनके परिजनों ने अपने विवाह स्थल के चारों तरफ एक परिक्रमा की, ताकि उस रास्ते से आने वाली बारात को किसी तरह की दिक्कत नहीं हो। इस रास्ते को शुद्ध किया जाता है।
बीकानेर में इसे झींकी कहा जाता है।
देशभर में सिर्फ बीकानेर में ऐसा आयोजन बीकानेर के अलावा देश के किसी भी हिस्से में ऐसा आयोजन नहीं होता। जहां एक लंबे-चौड़े परकोटे को खुद सरकार एक विवाहस्थल मानती हैं। जहां लोग एक ही दिन में सैकड़ों की संख्या में विवाह करते हैं लेकिन सबका आयोजन व्यक्तिगत होता है। ज्यादा सेज्यादा विवाह एक ही दिन में होने के कारण खर्च वैसे ही कम हो जाता है और पूरा शहर एक विवाह स्थल की तरह नजर आता है।


