
लोगों को नशामुक्त करने का आह्वान व नशे छोड़ने के उपाय बताए






बीकानेर. नशा हमारे शरीर में जाकर धर्म के अंकुर को नष्ट कर देता है और नशा करने वाला मनुष्य अपने विवेक को खो देता है। जो व्यक्ति भूल व अज्ञानवश नशे का आदी हो चुके हैं उन्हें इसका तुरन्त परित्याग कर देना चाहिए क्योंकि यह देवदुर्लभ मानव शरीर नशे में नष्ट करने के लिए नहीं मिला है। उक्त विचार शास्त्रों के निष्णात विद्वान आचार्य पीठ मुकाम के अधिष्ठाता संत डॉ गोवर्धनराम शिक्षाशास्त्री ने जाम्भाणी साहित्य अकादमी द्वारा ऑनलाइन त्रिदिवसीय नशामुक्ति जागरूकता वेबिनार के अंतर्गत बुधवार के कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में कही।
उन्होंने शास्त्रीय उद्धरणों से नशे की बुराईयों के बारे में बताते हुए कहा कि परमात्मा द्वारा दिए इस शरीर का जो नशा आदि करके अनादर करता हैए उसकी लोक व परलोक दोनों में दुर्गति होती है। उन्होंने जगह.जगह शिविर लगाकर नशे के आदी लोगों को नशामुक्त करने का आहवान किया और नशे छोड़ने के अनेकों उपाय भी बताए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अकादमी अध्यक्ष आचार्य कृष्णानंद ऋषिकेश ने कहा कि नशे रुपी विकराल दानव ने समाज पर आक्रमण कर रखा है। यह केवल बिश्नोई समाज ही नहीं अपितु सभी समाज व पंथ के सामने आज एक ज्वलंत समस्या है। हमें सामूहिक रूप से इसका सामना करना है। इसके लिए अकादमी हर प्रकार के सहयोग के लिए तैयार है। एक व्यापक कार्ययोजना बनाकर इस पर काम शुरू करना चाहिए। नशा तस्कर कोई भी हो वह समाज का दुश्मन है उसका सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए।
मुकाम पीठाधीश्वर आचार्य रामानंद ने अपने आशीर्वचन में कहा कि नशा मनुष्य जीवन का बहुत बड़ा शत्रु है हमें इससे विशेष सावधान रहना होगा। उन्होंने वर्षों पहले बीकानेर संभाग में व्यापक नशामुक्ति अभियान चलाया था जिसमें लेखराम भादू, सुखराम धारणियां, लेखराम धायल, राजाराम धारणियां, रामनारायण डेलू, भगवानाराम डेलू आदि समाज के अग्रणी महानुभावों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। आज फिर ऐसे ही अभियान की समाज में जरूरत है।
अकादमी के राष्ट्रीय प्रेस संयोजक पृथ्वी सिंह बैनीवाल ने बताया कि उक्त वेबिनार में समाज के विभिन्न वरिष्ठ संतों ने अपना उद्बोधन दिया और कार्यक्रम संचालक आचार्य सच्चिदानंद द्वारा पंथ संस्थापक गुरु जाम्भोजी की शिक्षाओं संबंधी जानकारियों से श्रोताओं को लाभान्वित किया। सभी वक्ताओं, आयोजकों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन मेहराणा धोरा पंजाब के महंत मनोहरदास शास्त्री द्वारा किया गया। कार्यक्रम का तकनीकी प्रबंधन डॉ लालचंद बिश्नोई और संयोजन विनोद जम्भदास ने किया।


