बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने चार करोड़ के टीसीएस इक्विटी शेयर के पुर्नखरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दी- शंगारी

बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने चार करोड़ के टीसीएस इक्विटी शेयर के पुर्नखरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दी- शंगारी

बीकानेर. टीसीएस के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने पीछले बुधवार 4500 रूपये प्रति शेयर के मूल्य पर 18000 करोड़ रुपए तक के शेयर बायबैक कार्यक्रम को मंजूरी दे दी है। टीसीएस की 4500 प्रति शेयर के मूल्य पर बाय बैक पेशकश बुधवार को बीएसई में कंपनी के शेयर के बंद भाव 3857.25 से करीब 16.6 प्रतिशत अधिक है। पीएस इन्वेस्टमेंट्स के फाउंडर एवं बिजनेस हेड पीयूष शंगारी ने बताया कि कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने बैठक में चार करोड़ इक्विटी शेयरों तक के पुनर्खरीद के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। यह इस कंपनी का चौथा बायबैक है।

श्री शंगारी ने आगे कहा कि इस शेयर के बायबैक की प्रक्रिया के बीच निवेशकों को इस बात को लेकर असमंजस है कि वह अपनी आगे की रणनीति कैसे बनाएंघ् उन्हें इस बाय बैक का फायदा उठाते हुए शेयर बेच देने चाहिए या फिर उनमें अपना निवेश बनाए रखना चाहिएघ् इस सवाल का जवाब लंबी अवधि और छोटी अवधि के निवेशकों के लिए अलग.अलग है। अगर आपने लंबी अवधि के लिए टीसीएस में निवेश किया है तो बायबैक की प्रक्रिया में अब आप अपने शेयरों को ना बेचें और उनमें अपना निवेश बनाए रखेंए क्योंकि आने वाले दिनों में यह आपको अधिक रिटर्न देंगे। वहीं दूसरी ओर अगर आपने छोटी अवधि के लिए टीसीएस में निवेश किया है या फिर आपका मकसद सिर्फ ट्रेडिंग करके मुनाफा कमाने तक सीमित है तो आपके लिए यह किसी सुनहरे मौके से कम नहीं है। एक रिटेल निवेशक बायबैक के प्राइस और मौजूदा प्राइस के बीच के अंतर का लाभ उठा सकता हैए क्योंकि मार्केट रेगुलेटर सेबी के नियमों के अनुसार कंपनी में ₹2 लाख तक की होल्डिंग वाले रिटेल निवेशकों के लिए बायबैक का 15: हिस्सा आरक्षित होता है। इसलिए रिटेल कैटेगरी में बाय बैक में हिस्सा लेने योग्य बनने के लिए आप अधिकतम 44 शेयर खरीद सकते हैं।

बायबैक प्रक्रिया को समझाते हुए कंपनी के मार्केटिंग कंसलटेंट श्री शशांक शेखर जोशी बताते हैं कि जब कोई कंपनी अपने ही शेयर्स को बाजार से वापस खरीद लेती है तो उस प्रक्रिया को बायबैक कहते हैं। इस तरह कंपनी खुद में ही रीइन्वेस्ट करती है। कंपनी के शेयरों को वापस खरीद लेने के बाद बाजार में आउटस्टैंडिंग शेयर्स की संख्या कम हो जाती हैए अब क्योंकि शेयर की संख्या कम हो जाती है तो हर शेयरहोल्डर का मालिकाना हक तुलनात्मक आधार पर कुछ बढ़ जाता है। शेयर बायबैक को आसान शब्दों में आईपीओ की उलट प्रक्रिया की तरह भी समझा जा सकता है।

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