
बीकानेर: कांग्रेस का वर्चस्व तोड़कर पहले पिता, फिर बेटा बना सांसद






बीकानेर: कांग्रेस का वर्चस्व तोड़कर पहले पिता, फिर बेटा बना सांसद
बीकानेर। देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में एक ही परिवार के दो सदस्यों के पहुंचने के तमाम उदाहरण हैं। एक ऐसा ही रिकॉर्ड बीकानेर लोकसभा क्षेत्र के नाम पर भी दर्ज है। बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से पहले पिता और उसके बाद पुत्र भी सांसद निर्वाचित होकर संसद पहुंचे और बीकानेर संसदीय क्षेत्र की पैरवी की। वर्ष 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में चौधरी हरीराम सांसद चुने गए। इसके बारह वर्ष बाद चौधरी हरीराम के पुत्र श्योपत सिंह वर्ष 1977 में बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीते और संसद पहुंचे। बीकानेर लोकसभा क्षेत्र की बात करें, तो अब तक के चुनावी इतिहास में यह एक इतिहास की तरह दर्ज हो गया।
चौधरी हरीराम – पहली बार किसी दल का प्रत्याशी बना सांसद
बीकानेर लोकसभा क्षेत्र में वर्ष 1951 से 1971 तक लगागार तक लगातार पांच चुनावों में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में डॉ. करणी सिंह ने जीत हासिल की व संसद में पहुंचे थे। वर्ष 1977 में हुए चुनाव में पहली बार किसी राजनीतिक दल के प्रत्याशी ने बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल की। बीएलडी प्रत्याशी के रूप में चौधरी हरीराम ने कांग्रेस प्रत्याशी रामचन्द्र चौधरी को पराजित कर संसद पहुंचे थे।
श्योपत सिंह – कांग्रेस का वर्चस्व तोड़ा, पहली बार सीपीएम की झोली में डाली सीट
वर्ष 1951 से 2019 तक हुए लोकसभा चुनावों में केवल एक बार ही सीपीएम प्रत्याशी को बीकानेर लोकसभा क्षेत्र से जीत हासिल हो पाई है। वर्ष 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में सीपीएम प्रत्याशी के रूप में श्योपत सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी मनफूल सिंह भादू को पराजित किया था। मनफूल सिंह भादू वर्ष 1980 और 1984 में लगातार दो बार सांसद रहे चुके थे। श्योपत सिंह ने कांग्रेस के इस वर्चस्व को तोड़ते हुए जीत हासिल की थी।
सरपंच से सांसद तक का सफर
चौधरी हरीराम मक्कासर का परिवार किसानी और जागीरदार परिवार रहा है। परिवार के कई सदस्य सरपंच, जिला प्रमुख, विधायक और सांसद रहे हैं। रामेश्वर वर्मा के अनुसार, चौधरी हरीराम हनुमानगढ़ तहसील के सरपंच भी रहे। उन्होंने विधानसभा का भी चुनाव लड़ा। वे 1977 में सांसद बने। वर्ष 1980 में हुए चुनाव में वे जेएनपी एस से फिर चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन हार गए। श्योपत सिंह चार बार विधायक रहे। तीन बार सीपीएम व एक बार निर्दलीय रूप में। वे मक्कासर के सरपंच भी रहे। वर्ष 1989 में लोकसभा का चुनाव जीता। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मनफूल सिंह भादू को हराया था। पूर्व विधायक गिरधारीलाल महिया के अनुसार कॉ. श्योपत सिंह ने भूमिहीन किसानों और किसान हितों के लिए लंबा संघर्ष किया। वे मजदूर और गरीबों के हितैषी थे।


