स्वयं के प्रयासों से ही होगी मनुष्य के भावी जीवन की राह आसान- प्रो. मनोज दीक्षित - Khulasa Online

स्वयं के प्रयासों से ही होगी मनुष्य के भावी जीवन की राह आसान- प्रो. मनोज दीक्षित

स्वयं के प्रयासों से ही होगी मनुष्य के भावी जीवन की राह आसान- प्रो. मनोज दीक्षित

बीकानेर। भारतीय इतिहास और पर्यावरण का अन्योन्याश्रित सम्बंध अनंतकाल से रहा है। भारतीय इतिहास के आध्यात्मिक ग्रन्थों यथा भारतीय वेद-वेदांग, उपनिषद, ब्राह्मण एवं अन्य आध्यत्मिक ग्रन्थों में प्रकृति का दिव्य रूप निर्धारित किया गया है। धर्मपरायण भारतीय समाज में इन्हीं ग्रन्थों की परंपराओं के कारण वृक्ष पूजा, प्रकृति पूजा इत्यादि का दिव्य प्रचलन है। इतिहास के साथ इन्हीं पर्यावरणीय संबंधों पर महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में आयोजन हुआ एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का ; जिसका विषय “भारतीय इतिहास परम्परा व पर्यावरण” रहा। ध्यातव्य है कि यह संगोष्ठी अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली एवं इतिहास विभाग, महाराजा गंगासिंह विश्विद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में एवं इतिहास संकलन समिति मरु क्षेत्र जोधपुर प्रान्त जिला इकाई बीकानेर के सहयोग व नेतृत्व में सम्पन्न हुई। उद्घाटन सत्र का प्रारम्भ अतिथियों के कर-कमलों से सरस्वती पूजन तथा महारानी सुदर्शना महाविद्यालय बीकानेर की छात्राओं द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विश्विद्यालय के कुलपति एवं कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. दीक्षित ने कहा कि मनुष्य प्रकृति से निंरतर दूर होता जा रहा है जिसके फलस्वरूप भौतिक विकास की दौड़ में पर्यावरण नष्ट होता जा रहा है।

 

समाज के स्व- प्रयासों से ही निकलेगी भावी जीवन की राह; समाज को प्रकृति संरक्षण की दिशा में कदम उठाने ही होंगे। इस अवसर पर प्रो. दीक्षित ने मानसून के समय विश्विद्यालय के विशाल परिसर में ग्यारह हजार पौधों के रोपण का निश्चय जताया। विश्विद्यालय के 20 एकड़ क्षेत्र में वन्य-जीव एवं प्रकृति संरक्षण के लिए जैव-विविधता पार्क विकसित करने की योजना की घोषणा की। उन्होंने विश्विद्यालय परिसर में जल-सरंक्षण हेतु नैसर्गिक स्रोत विकसित करने का लक्ष्य बताया ताकि गजनेर व कोलायत झील की भांति प्रवासी एवं अन्य पक्षी विश्विद्यालय परिसर में कलरव कर सकें। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं वक्ता डॉ. बालमुकुंद पांडे ने कहा कि वर्तमान में हमारी जीवन प्रणाली देवत्व से दूर व राक्षसत्व की तरफ उन्मुख है; इसकी पृष्ठभूमि में हम पर्यावरण का दोहन न करके शोषण कर रहे हैं जिसके कारण आज सम्पूर्ण विश्व दैहिक, दैविक एवं भौतिक ताप से संतप्त है। उपभोगवादी संस्कृति प्रकृति को लील रही है। उन्होंने वर्तमान में शोधार्थियों से अपील करते हुए कहा कि वे प्राचीन भारतीय धार्मिक ग्रन्थों में निहित पर्यावरण संबंधी धारणाओं पर नवीन शोध कर समाज के बीच मे लाए ताकि समाज में पर्यावरण के संरक्षण के प्रति उत्तरदायित्व जाग्रत हो सके।

 

कार्यकम के विशिष्ट अतिथि विधायक जेठानंद व्यास ने संबोधित करते हुए कहा कि पर्यावरण हमारी परंपराओं से जुड़ा है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को एक पेड़ लगाकर उसके संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र सहसंपर्क प्रमुख राजस्थान योगेंद्र कुमार ने अपने संबोधन में बताया कि आने वाले वर्षों में मनुष्य को प्रकृति के अनुरूप अपने जीवन की रचना करनी पड़ेगी। उन्होंने प्लास्टिक मुक्त समाज की आवश्यकता जताई और कहा कि समाज को पेड़ व जल के संरक्षण व प्लास्टिक मुक्त जीवन हेतु आगे आना होगा। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में संगोष्ठी में उपस्थित छगन लाल बोहरा, क्षेत्रीय संगठन सचिव, इतिहास संकलन योजना राजस्थान ने कहा कि प्रकृति समाज की प्रथम आवश्यकता है। हमें प्रकृति से न्यून लेना व प्रकृति को अधिक देना चाहिए एवं उसके अनुकूल चलना चाहिए। संगोष्ठी के सारस्वत अतिथि प्रो. धर्मचंद चौबे ने कहा कि पर्यावरण मनुष्य के अस्तित्व से जुड़ा है। पर्यावरण के प्रति समाज को संवेदनशील होना ही होगा। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में आगंतुक अतिथियों के कर- कमलों से इतिहासज्ञ व विद्वान मनीषी जानकी नारायण श्रीमाली का अभिनंदन किया गया। विदित रहे इनके द्वारा अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के अंतर्गत रातीघाटी युद्ध के वास्तविक स्वरूप को शोध के माध्यम से प्रकट किया गया। इस उल्लेखनीय व महत्वपूर्ण शोध को वर्तमान में विद्यालयी व महाविद्यालयी पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है। इसके अतिरिक्त श्री श्रीमाली द्वारा शताधिक पुस्तकों व आलेखों का सृजन किया गया है। उद्घाटन के पश्चात द्वितीय सत्र में शोधार्थियों व विद्वान आचार्यों द्वारा संगोष्ठी के विषय पर विविध भांति के पत्र वाचन किए गए। संगोष्ठी के तृतीय सत्र में समापन समारोह का आयोजन किया गया जिसके अंतर्गत कार्यक्रम की अध्यक्षता ओंकार सिंह लखावत अध्यक्ष राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रौन्नति प्राधिकरण ने की।

 

लखावत ने कहा कि राजस्थान तो प्राचीन काल से ही पर्यावरण के प्रति जागरूक रहा है।हमें इस दिशा में नवीन शोध कर समाज को जागरूक करने की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि डॉ राकेश कुमार शर्मा और प्रो. शिवकुमार मिश्रा थे। कार्यक्रम के अन्त में सक्रिय कार्यकर्ताओं का सम्मान भी किया गया। इस अवसर पर डॉ. दिग्विजय सिंह शेखावत, डॉ. चंद्रशेखर कच्छावा, डॉ. निर्मल कुमार रांकावत, डॉ. श्रीराम नायक एवं अनेक विद्व आचार्य गण तथा शोधार्थी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का सफल संचालन डॉ. राजशेखर पुरोहित, डॉ. सुनीता बिश्नोई एवं मदनमोहन मोदी ने किया।

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