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बीकानेर निगम की हो रही है थू-थू, महापौर व आयुक्त दोनों को अपने अपने पद का घमंड, नुकसान शहर को

बीकानेर। बीकानेर नगर निगम में अगर अभी देखा जाये तो महापौर व आयुक्त के बीच विवाद लगातार चल रहा है जिसको नगर निगम की शहरवासी थू-थू कर रहे है कि एक तरफ राजनीति व दूसरी तरफ आयुक्त पर राजनैतिक दबाब के चलते दोनों अपने अपने पद को लेकर अहम से भरे हुआ है उनको शहर से कोई मतलब नहीं है। बारिश का मौसम शुरु होने वाला है और शहर के सभी नाले पूरी तरह से डटे हुए पड़े है उनको सफाई नहीं करवा रहे है बस आपसी खींचातान में अपना समय पूरा कर रहे है। अगर देखा जाये तो महापौर का बहुत कम आयुक्त के साथ काम को लेकर सेंटिग बैठी है क्योकि महापौर यह चाहती है कि निगम में कोई भी काम हो उसके आदेश के बिना नहीं हो लेकिन आयुक्त चाहता है कि वह अपने स्तर पर ही शहर का काम करवा सकता है। आयुक्त एक प्रशासनिक अधिकारी होता है उसके पास अधिकार होता है काम करवाने का किसी कर्मचारी को कहां लगाना है किस को कहां से हटाना है लेकिन महापौर चाहती है निगम में उनका अधिकार है उनके बिना कुछ भी नहीं होना चाहिया इसी को लेकर पिछले काफी दिनों से आपसी में पत्राचार विवाद चल रहा है।
विवाद का मुख्य कारण
मेयर और आयुक्त के टकराव की मुख्य वजह स्वास्थ्य अधिकारी अशोक व्यास है। दरअसल एक साल पहले ही मेयर ने व्यास को इस पद से हटाया था। हाईवे सफाई मामले में उनके खिलाफ एक जांच भी कराई। जांच में उन पर सवाल भी उठे लेकिन वर्तमान आयुक्त गोपाल राम बिरदा के ज्वाइन करते ही उन्हें वापस एचओ बना दिया गया। यहीं से टकराव शुरू हो गया। इसी टकराव के चलते आयुक्त ने मेयर से बिना पूछे साधारण सभा की बैठक भी तय कर दी जिससे दोनों के बीच खाई और बढ़ गई। अब सेवानिवृत कर्मचारी को लगाने का मुद्दा खड़ा हो गया।
अतिक्रमण तोडऩे को लेकर भी महापौर नाराज
एक तरफ शहर के संभागीय आयुक्त अतिक्रमण को हटाने का जिम्मा ले रखा है तो वह भी महापौर को अखर गया और उन्होंने इसकी खींज आयुक्त पर निकाली और आदेश जारी कर दिया कि अब शहर में कही भी अतिक्रमण तोडऩे जाओं तो पहले मुझे सूचना देनी होगी उसके बिना शहर में कही पर भी अतिक्रमण नहीं तोड़े। इससे यह प्रतित होता है कि महापौर नहीं चाहती कि शहर सुंदर दिखे और अतिक्रमण हट जाये।
आखिर कब होगा विकास और कब रुकेगा विवाद
आखिर शहर का विकास कब होगा और कब रुकेगा आयुक्त व महापौर का विवाद यही बात पूरे निगम में चल रही है कुछ पार्षद दबी आवाज में कह रहे है कि महापौर अपने पद को लेकर काफी अहम में रहती है उसको अपने आदेशों के अलावा किसी ओर के आदेश पंसद नहीं है वो यह चाहती है कि निगम में कोई भी आदेश हो वह उनके हस्ताक्षरों से हो ना कि कोई प्रशासनिक अधिकारी।

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