
गणगौर को उस्ता कला और मथेरन कला दोनों का मिश्रण कर भादाणी ने एक नई बीकानेर गोल्डन आर्ट को स्वरूप दिया






बीकानेर। गणगौर उत्सव एक ऐसा अवसर है जहां संस्कृति के विभिन्न रूपों को सहेजने की प्रेरणा भी जागृत होती है जिसमें मूर्ति कला, पेंटिंग, श्रृंगार इस अवसर पर गाये जाने वाले पारम्परिक गीतों का संरक्षण भी होता रहता है और नए नए आयाम जुड़ते जाते हैं। जिससे लोगों में कला के प्रति नवाचार पैदा होता रहता है। संबंधित कलाकारों को आर्थिक सुदृढीकरण भी बढ़ता जाता है। गणगौर की प्रतिमा अपना एक नया रूप लेकर तैयार होती है जिसको सहज रूप से स्वीकार कर खुद को बहुत सन्तुष्टि का अहसास अपने आप में बहुत बड़ा आस्था का प्रतीक माना जाता है जो कि शिव परिवार के रूप में शिव के स्वरूप में इंसरजी पार्वती के रूप में गणगोर और गणेश के रूप में भाया को पूजा जाता है। शिल्प स्थापत्य और चित्रकला में भारत में राजस्थान का प्रमुख स्थानरहा है राजस्थान की प्रमुख नगरों में बीकानेर का महत्वपूर्ण स्थान है । बात करें शिल्प स्थापत्य चित्रकला की तो इनमें बीकानेर की अपनी एक विशेषता है इसी क्रम को आगे की यात्रा करते हुए बीकानेर की चित्रकला पर्याप्त समर्थन में स्फूर्ति दायक रही है यहां राजमहल में भित्ति चित्रों का निर्माण व जनसाधारण के घरों मंदिरों में भी सुंदर कला अभिव्यक्ति हुई है। ऐसे ही प्रकृति एवं लोक जीवन से संबंधित चित्र पर सुनहरी कलम का काम करने वाले चित्रकार राम कुमार भादाणी बताते हैं कि इन्होंने उस्ता कला और मथेरन कला दोनों का मिश्रण कर एक नई बीकानेर गोल्डन आर्ट को स्वरूप किया है यह अपनी गणगौर में मथेरण कला के साथ उस्ता कला की बारीकियों को भी संजोए रख रहे है। मधेरण कला के मिश्रित प्रभाव से इन्होंने नई कला की ओर रुख किया है जिसे बीकानेर की सुनहरी कलम के नाम से जाना जाता है। उनका मानना है कि बीकानेर की यह दूसरी प्रमुख शैली होगी। इस शैली का उगम स्थल बीकानेर की कलम से बारीकियों के साथ किया गया है उसमें सुनहरी कलम का कार्य किया जाता है। भादाणी बताते है कि गणगोर के इस कलात्मक कार्य को करने के लिए तीन माह पहले तैयारियां की जाती है इस शैली में गणगोर की चंद्रमुखी छटा विकसित होकर तीखी नासिका खंजन पक्ष के तीखे नेत्रों द्वारा अधिक आकर्षण हो उठती है। नासिका कुछ लंबी, ललाट पर गोलाई और नासिका के मध्य उच्च संकुचन से ऐसा प्रतीत होता है इस शैली का प्रारंभिक रूप है। इसमें रंगों के संयोजन में मुख्यतः 5 रंगों का उपयोग किया जाता है जिसमें लाल, नीला, पीला, सफेद, काला यह रंग पूर्ण रूप से
प्रयोग में किए जाते है परंतु अब आधुनिक युग में अन्य रंगों का उपयोग होने लगा है। पौराणिक समय में पेवड़ी, नील, रामरज सफेद मिट्टी और काजल जैसे प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता था लेकिन अब समय के अभाव को देखते हुए बाजार में उपलब्ध रंगों का उपयोग किया जाता है। जैसे सोना चांदी से प्राप्त अन्य रंगों का निर्माण भी बारीकी से तैयार किया जाता है। तूलिका के निर्माण के लिए प्राचीन काल से चली आ रहीगिलहरी के बारीक वालों से पूंछ के बालों से तैयार की जाती है। वर्तमान में बाजार के प्रचलन के कारण आज कलाकार साधारण ब्रश रंग तथा जरूरत दैनिक जरूरतमंदों को पूरा करने के लिए जल रंगों के साथ तैलीय रंगों का प्रयोग करते हैं।
गणगौर पर सुनहरी कलम का कार्य किया जाता है। गणगौर पर गौर वर्ण, गुलाबी कलर से चित्रित कर उनकी भावनात्मकता को दर्शाता है। रंग गोरा होने से शारीरिक गठन में एक प्रकार से चेहरा गोल, आंखें बड़ी और कान के निकट तक खींची हुई आंखों की पुतली में बहुत कलात्मकता से कार्य करते हुए लगभग चार पांच रगों का प्रभाव देखकर बहुत सजीव तथा एक प्रकार की कलात्मक भाव दर्शाया गया है जो कि गणगौर को मूल भाव है वस्त्रों की रेखाओं में लहरिया को प्रदर्शित किया है क्योंकि गहनों की आलंकारिक नख शिख व सोलह श्रृंगार तो है ही एक नायिका के रूप में वर्णित विशेष प्रकार का गहना सौभाग्य सूचक है।
बीकानेर
में गिरधर सुधार, साँवरलाल सुधार, दीनदयाल सुधार, राजू सुधार जैसे कलाकार इस शैली में बनी गणगोर को सागवान, बर्मा, टीक रोहिड़ी पाइनवुड जैसी लकड़ियों का उपयोग करके बनाते हैं जिससे गणगौर में दीमक लगने के चांस कम रहते हैं। इन गणगीर को बनाने के लिए लकड़ी के कारीगरों को कम से कम 6 माह पहले अपना कार्य शुरू करना पड़ता है तथा साथ ही रंग रोगन व कलात्मक कार्य के लिए 2 से 3 माह का समय लगता है। जब जाकर यह गणगौर आम भक्तों तक पहुंचने के लिए तैयार होती है। बीकानेर की गणगोर के हाथ, नाक नक्श इतने सुंदर होते हैं कि देसी प्रवासी के साथ-साथ यहां से गए हुए लोग जो विदेशों में बस गए हैं वह भी इस गणगौर के त्योहार को वहां मनाते हैं साथ ही बीकानेर की गणगौर की पूजा करके स्वयं को धन्य मानते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि 7080 साल पुरानी गणगौर के रंग आज भी हू ब हू वापस किये जाते हैं जो कि बहुत आस्था का प्रतीक माना जाता है।


