बाजरे से घटा सकते हैं 15% तक ब्लड शुगर, ऐसा क्यों है इसकी भी वजह जानिए - Khulasa Online बाजरे से घटा सकते हैं 15% तक ब्लड शुगर, ऐसा क्यों है इसकी भी वजह जानिए - Khulasa Online

बाजरे से घटा सकते हैं 15% तक ब्लड शुगर, ऐसा क्यों है इसकी भी वजह जानिए

बाजरा टाइप-2 डायबिटीज का खतरा घटाता है और शरीर में ब्लड शुगर का स्तर पर भी कंट्रोल करने में मदद करता है। ऐसे लोग जो स्वस्थ हैं और बाजरे को खानपान में शामिल करते हैं उनमें इस बीमारी की आशंका कम हो जाती है।

यह दावा इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी एसिड ट्रॉपिक (ICRISAT) ने अपनी हालिया रिसर्च में किया है। ‘फ्रंटियर्स इन न्यूट्रिशन’ जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, बाजारा ब्लड शुगर के लेवल में 12 से 15 फीसदी तक कमी लाता है।

ऐसा क्यों है इसकी भी वजह जानिए
वैज्ञानिकों का कहना है, बाजरे का औसत ग्लाइसीमिक इंडेक्स 52.7 होता है। यह चावल और रिफाइंड गेहूं के मुकाबले 30 फीसदी तक कम होता है। वहीं, मुक्के के मुकाबले भी बाजरे का ग्लाइसीमिक इंडेक्स कम होता है। किसी चीज का ग्लाइसीमिक इंडेक्स जानकर पता लगाया जा सकता है वो चीज ब्लड शुगर लेवल कितना बढ़ाएगी और कितने समय में बढ़ाएगी। इसीलिए चावल, गेहूं और मक्के का ग्लाइसीमिक इंडेक्स बाजरे से ज्यादा होने के कारण इनसे ब्लड शुगर बढ़ने का खतरा ज्यादा है।

डाइबिटीज कंट्रोल करने में खानपान का अहम रोल
इंडियन नेशनल बोर्ड ऑफ न्यूट्रीशन के प्रतिनिधि और शोधकर्ता डॉ. राज भंडारी का कहना है, रिसर्च के दौरान अनाज को उबालकर, बेक करके और भाप में पकाकर देखा गया है। इसके बाद सामने आए नतीजों को पेश किया गया है। इंसान का खानपान डायबिटीज को कंट्रोल करने में अहम रोल अदा करता है।

ICRISAT की सीनियर न्यूट्रिशन साइंटिस्ट डॉ. एस अनीता का कहना है, रिसर्च में साबित हुआ है कि बाजारा ब्लड शुगर के लेवल को और डाइबिटीज के खतरे को कम करता है।

भारत, चीन और अमेरिका में डायबिटीज के रोगी ज्यादा
लैंसेट जर्नल में पब्लिश ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) की रिपोर्ट मुताबिक, 1990 से 2006 के बीच डायबिटीज के मामले तेजी से बढ़े थे। इंटरनेशनल डायबिटीज एसोसिएशन का कहना है, डायबिटीज के मामले दुनिया के हर हिस्से में बढ़ रहे हैं। भारत, चीन और अमेरिका में इसके मामले सबसे ज्यादा हैं।

हैदराबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन की डायरेक्टर डॉ. हेमलता कहती हैं, इसे रोकने का कोई आसान उपाय नहीं है। लाइफस्टाइल और खानपान में बदलाव करके ही इसे कंट्रोल किया जा सकता है। नई रिसर्च के परिणाम आम इंसान और सरकारों के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं।

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