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बदल रहा है मेरा गांव

श्रीडूंगरगढ। भारत में संवैधानिक रूप से पंचायत और महिलाओं को मजबुत बनाने के लिए अनेक प्रयास किये जा रहे है। परन्तु आज आजादी के लगभग ७० वर्षों बाद तस्वीर कुछ बदल रही है। ये सुखद है और समाज के विकास के लिए आवश्यक भी है। आज भी अपने आस पास हम देखते है कि सरपंच या किसी संवैधानिक पद पर नियुक्त होने के बाद भी महिलाऐं अपना कार्य स्वयं नहीं करती। उनके प्रतिनिधि ही उनका सारा कार्य देखते है। आज के भारत की एक नयी तस्वीर नजर आयी बरजांगसर गांव में। आज पंचायत की विशेष बैठक बुलाई गयी और उसमें महिला सरपंच प्रियंका सिहाग ने अपना नेतृत्व पेश किया। आज की सभा बहुत विशेष थी क्योंकि हर गांव की पंचायत सभा में पुरूष ही नजर आते है। आज अपने सरपंच का साथ देने गांव की महिलाओं ने बड़ी संख्या में बैठक में भाग लिया। महिलाऐं अपने सम्मान के लिए खड़ी हुई है और सरकार से अपना हक मांग रही है। महिलाओं ने माना उनके स्वास्थ्य के साथ सरकार का ये खिलवाड़ अब और सहन नहीं करेंगी व अपने आने वाले कल की बहू बेटियों के लिए उन्हें अपने गांव में उपचिकित्सा केंद्र भवन निर्माण की मांग मनवा कर ही दम लेंगी मूलत: देखा जाता है कि कोई महिला पंच भी हो तो उनसे हस्ताक्षर करवाने उनके घर ही जाना पड़ता है। परन्तु आज बड़ी संख्या में गांव की महिलाओं ने ग्राम सभा में भाग लिया। आज की बैठक में सभंवत पहली बार इतनी संख्या में महिलाओं ने किसी ग्राम पंचायत सभा में भाग लिया है। इन महिलाओं ने संवैधानिक रूप से सक्षम पंचायत में अपने प्रस्ताव को एकमत से पास किया। महिलाओं ने कहा हम अपने सरपंच प्रियंका सिहाग का पूरा साथ देंगी। पंचायत ने जिला स्तरीय जिम्मेदार अधिकारियों के प्रति निंदा प्रस्ताव पारित किया। ग्रामीणों का आरोप है कि ढाई दशक से पंचायत को उपचिकित्सा केंद्र भवन से वंचित रखा गया है। सभी ग्रामीणों ने मिल कर सरपंच प्रियंका सिहाग के भवन निर्माण के लिए आमरण अनशन के नोटिस का समर्थन किया व संघर्ष के अंतिम क्षणों तक साथ देने का वादा किया। ग्राम सभा ने इस बाबत एक संघर्ष समिति का भी निर्माण किया जिसमें चतर कंवर को अध्यक्ष व हुक्माराम सिहाग को सचिव बनाया गया। संघर्ष समिति के कोषाध्यक्ष रामनिवास को नियुक्त किया गया।

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