
मोदी के भाषण का एनालिसिस: खुद की पीठ थपथपाई, उनकी 56 इंच वाली इमेज को हुए नुकसान के लिए मीडिया को जिम्मेदार ठहराया






देश में कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत से यानी पिछले 56 दिनों में नरेंद्र मोदी की 56 इंच वाली इमेज को जितना नुकसान हुआ है, उतना पहले कभी नहीं हुआ। इस बात से वाकिफ मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में दोहरा प्रहार किया। पहला प्रहार उस विपक्ष और मीडिया पर जो मोदी के मुताबिक उनकी छवि खराब करने के जिम्मेदार हैं। दूसरा जनता से सीधे संवाद में मुफ्त वैक्सीन और 80 करोड़ लोगों को दिवाली तक मुफ्त अनाज की घोषणा करके।
सबसे पहले मोदी ने कोविड मैनेजमेंट पर खुद की पीठ थपथपाई। उसके बाद जो कुछ खराब हुआ, उसके लिए विपक्षी राज्य सरकारों और मीडिया को दोषी ठहराया। मोदी ने कहा कि पहली लहर के समय जब तक केंद्र ने बागडोर अपने हाथ में रखी तब तक कोरोना काबू में था। लेकिन इस बीच कई राज्यों और मीडिया के एक वर्ग ने ऐसी व्यवस्था के खिलाफ अभियान चलाया।
इमेज को सुधारना क्यों जरूरी?
PM मोदी की सरकार कोरोना की दूसरी लहर के पहले तक एक मजबूत सरकार मानी जाती थी। 56 इंच सीने की सरकार का पिछले 56 दिनों में विश्वास हिल गया था। देश के अंदर मोदी और पार्टी की छवि खराब हुई, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद मोदी और सरकार की साख पर बट्टा लग गया। गंगा किनारे की लाशों की तस्वीरों ने देश के प्रति दुनिया का नजरिया बदल दिया।
इसके बाद संघ, संगठन और सरकार के स्तर पर गहन मंथन हुआ। PM मोदी ने सबके साथ वन-टू-वन चर्चा की। अब इस मंथन से निकले निष्कर्ष पर पूरी ताकत से काम करने की तैयारी है।
आज की स्पीच में क्या बड़ा हुआ?
18 प्लस को केंद्र की तरफ से मुफ्त वैक्सीन और 80 करोड़ गरीबों को दीपावली तक मुफ्त राशन का ऐलान किया। वैक्सीनेशन ड्राइव और वैक्सीन को लेकर विपक्ष को घेरा। सरकार के फैसलों पर उसकी पीठ थपथपाई। पिछले 60-70 साल की स्वास्थ्य व्यवस्था की तुलना कर अपने 7 साल के कार्यकाल को बेहतर बताया। कुल मिलाकर हर अच्छाई का श्रेय केंद्र को दिया और हर खराबी का ठीकरा राज्यों के माथे मढ़ दिया।
इस पूरी कवायद में मोदी का रोल?
डैमेज कंट्रोल के लिए बनी रणनीति में नरेंद्र मोदी अपनी सरकार और पार्टी की तरफ से ओपनिंग बैट्समैन की भूमिका में रहेंगे। यह संबोधन उसी का हिस्सा माना जा रहा है। जिस तरह UPA सरकार अपने दूसरी कार्यकाल के दो साल बाद वैश्विक रेटिंग्स में नीचे चली गई थी, वही अब मोदी सरकार के साथ भी हो रहा है।
मौजूदा आंकड़ा यूनाइटेड नेशंस के 193 देशों की ओर से अपनाए गए 17 सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) की ताजा रैंकिंग है, जिसमें भारत 2 स्थान खिसककर 117वें नंबर पर आ गया है। नेपाल-बांग्लादेश से भी खराब पोजिशन में! अब मोदी का रोल ही अहम है, जो लगातार जनता से सीधा संवाद करते रहे हैं। इसी संवाद के जरिए मोदी ने फिर जनता को फेवर में लाने की कोशिश की। साथ ही सरकार और मोदी के लिए बनी छवि को बदलने की कोशिश भी की।
अब सरकार और भाजपा के फोकस एरिया क्या हैं?
पहला: कोरोना की दूसरी लहर अभी संभली स्थिति में है, लेकिन तीसरी लहर चुनौती है। ऐसे में मोदी देश में हेल्थ सर्विसेज, एक लाख से ज्यादा इमरजेंसी हेल्थ केयर वर्कर्स की फोर्स तैयार करने पर फोकस कर रहे हैं। यह स्काउट गाइड, रेड क्रॉस या NDRF की तर्ज पर हो सकती है। इस फोर्स को इन्हीं सेवाओं के साथ भी मर्ज किया जा सकता है।
दूसरा: संघ और पार्टी के साथ मोदी और शाह का जो मंथन हुआ है, उसमें केंद्रीय मंत्रिमंडल को भी लेकर चर्चा हुई है। मंत्रिमंडल में बदलाव भी जल्द हो सकता है। इस बदलाव में चौंकाने वाले नाम आ सकते हैं। इन्हें पॉलिटिकल चेहरों से ज्यादा टेक्नोक्रेट्स को मौका दिया जा सकता है।
तीसरा: भाजपा दावा करती है कि वो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है, जिसके 11 करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ता हैं। लेकिन, कोरोना के दौर में भाजपा के कार्यकर्ता कहीं नजर नहीं आए। पिछले दिनों हुए मंथन में मोदी-शाह और नड्डा के साथ संघ ने भी इस पर चिंता जाहिर की। नतीजा ये निकला कि PM के तौर पर 26 मई को मोदी ने 7 साल पूरे कर लिए, पर इसके बावजूद कोई जश्न नहीं मनाया गया। नड्डा ने सीधा संदेश कार्यकर्ताओं को दिया था कि वे कोरोना काल में जरूरतमंदों की मदद, ऑक्सीजन, बेड और वैक्सीन जैसी चीजों पर फोकस करें। इसी स्ट्रैटजी को आगे भी लागू किया जा सकता है, क्योंकि जब विपक्ष ने भाजपा को इस मोर्चे पर घेरा था तो वो कमजोर पड़ गई थी।


