बीकानेर के तीनों मंत्री लंबे अंतर से हारे, किसका क्या रहा हार का कारण, पढ़ें रिपोर्ट

बीकानेर के तीनों मंत्री लंबे अंतर से हारे, किसका क्या रहा हार का कारण, पढ़ें रिपोर्ट

खुलासा न्यूज, बीकानेर। पांच साल पहले जब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनी तो सबसे ज्यादा मंत्री पद बीकानेर को ही मिले। आज जब चुनाव के नतीजे आए तो केबिनेट स्तर के तीनों मंत्री चुनाव में बुरे हार गए। खास बात ये है कि इनमें दो मंत्री तो उन भाजपा प्रत्याशियों से हार गए, जो चुनाव मैदान में ही पहली बार उतरे थे।

 

भारी मतों से हारे मंत्री भाटी

 

सबसे लंबी हार ऊर्जा मंत्री रहे भंवर सिंह भाटी को मिली। भाटी 32 हजार 933 वोट से हार गए। उन्हें हराने वाले महज 28 साल के अंशुमान सिंह भाटी है। अंशुमान सिंह के दादा देवी सिंह भाटी लगातार दो बार मिली हार के बाद इस बार पिछले कई वर्षों से मैदान में डटे हुए थे। उन्होंने पोते को जीत दिलाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। नाराज को राजी करने, बिगड़ी बात को मनाने से लेकर अर्जुन राम मेघवाल से समझौता भी किया। टिकट भी पहले पूनम कंवर को मिला लेकिन देवी सिंह भाटी ने खुद पर्चा भर दिया। पार्टी उनके नाम पर राजी नहीं हुई तो जिद को छोड़कर अंशुमान को टिकट दिलाया। आखिरकार तीन-चार साल की मेहनत रंग लाई और ऊर्जा मंत्री को 33 हजार वोट की लंबी शिकस्त देकर दो हार का बदला ले लिया।

 

20 हजार वोटों से डॉ. कल्ला

 

शिक्षा मंत्री डॉ. बी.डी. कल्ला को चुनाव में बीस हजार से ज्यादा मतों से हराने वाले जेठानन्द व्यास ने तो महज दो महीने पहले ही भाजपा ज्वाइन की थी। जेठानन्द और उनके समर्थक लगातार दावा कर रहे थे कि वो बीस हजार वोट से जीतेंगे। अंतत: ये जीत बीस हजार 194 वोट से ही हुई। जेठानन्द ने पूरा चुनाव चंद कार्यकर्ताओं के साथ बाइक पर घूम-घूमकर जीत लिया। दसवीं बार चुनाव लड़ रहे डॉ. कल्ला को 18 राउंड में से 16 राउंड में व्यास से शिकस्त मिली। आश्चर्य की बात ये है कि जिन अल्पसंख्यक समाज के वोट पर डॉ. कल्ला का एकाधिकार माना जा रहा था, वहां भी जेठानन्द व्यास को अच्छे खासे वोट मिले।

 

गोविंदराम मेघवाल विश्वनाथ मेघवाल पड़े भारी

 

राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री रहे डॉ. विश्वनाथ मेघवाल हार की आपदा को टाल नहीं सके। गोविन्दराम कांग्रेस की कैम्पेन कमेटी के चैयरमेन थे लेकिन डॉ. विश्वनाथ ने उनको ऐसे घेर के रखा कि खाजूवाला से बाहर कहीं भी प्रचार के लिए नहीं जा सके। अपने क्षेत्र में अंतिम महीनों में जोरदार मेहनत करने के बाद भी 17 हजार 374 वोट से गोविन्दराम चुनाव हार गए। गोविन्दराम को लोकसभा चुनाव का दावेदार माना जा रहा था लेकिन इस लंबी हार के बाद उन्हें भी नए सिरे से राजनीतिक दाव चलने होंगे।

 

लूनकरणसर में बगावत तो डूंगरगढ़ में जिद के कारण हारी कांग्रेस

 

नतीजों को देखकर स्पष्ट है कि अगर कांग्रेस आपसी जिद पर नहीं अड़ती तो दो और सीट भाजपा से छीन सकती थी। लूणकरनसर में पार्टी के बागी उम्मीदवार वीरेंद्र बेनीवाल अगर अधिकृत प्रत्याशी डॉ. राजेंद्र मूंड को समर्थन करते तो वो जीत सकते थे। सुमित गोदारा यहां आठ हजार वोट से जीते हैं जबकि बेनीवाल ने दस हजार से अधिक वोट लिए हैं। इसी तरह श्रीडूंगरगढ़ में कांग्रेस चाहती थी कि माकपा प्रत्याशी को ही समर्थन दिया जाए लेकिन पूर्व विधायक मंगलाराम गोदारा तैयार नहीं हुए। इसी का नतीजा है कि यहां भाजपा के ताराचंद सारस्वत की जीत आसान हो गई।

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