
आखिर कौन है सहीं: एसपी मेडिकल कॉलेज का बोर्ड या फिर सीएमएचओं की ओर से बनाई कमेटी की रिपोर्ट







मासूम हैजल की मौत का मामला
आखिर कौन है सहीं: एसपी मेडिकल कॉलेज का बोर्ड या फिर सीएमएचओं की ओर से बनाई कमेटी की रिपोर्ट
बीकानेर। दो साल की मासूम हैजल की मौत के मामले में बीकानेर और जयपुर के तीन डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही के आरोप लगे हैं। परिजनों की ओर से तकरीबन 17 लाख रुपए खर्च करने के बाद भी बच्ची की जान नहीं बच पाई। पीड़ित परिवार ने बीकानेर के डॉ. गौरव गोम्बर, जयपुर के डॉ. अंकित मंगला और डॉ. प्रियंका मित्तल के खिलाफ थाने में मामला दर्ज कराया है। बताया जा रहा है कि हेजल के यूरेनरी ट्रैक्ट की जन्मजात विकृति थी। ऑपरेशन के बाद उसके शरीर में सूजन आ गई। बुखार भी ठीक नहीं हुआ। तीन महीने तक बीमारी से लड़ने के बाद उसकी मौत हो गई। मृतका के पिता की रिपोर्ट पर सदर थाने में बीकानेर और जयपुर के तीन डॉक्टरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, जबकि एसपी मेडिकल कॉलेज के बोर्ड ने इस प्रकरण में डॉक्टरों को क्लीन चिट दे दी है। वहीं सीएमएचओं ने कमेटी से जांच कराई, जिसमें माना कि हेजल की मौत ऑपरेशन के बाद कॉम्पलीकेशन के कारण हुई। ऑपरेशन के बाद हेजल को डॉ. गौरव गोंबर के अस्पताल में चार-पांच दिन तक इलाज के लिए रोकना सही नहीं माना।
ऐसे में सवाल उठता है की एसपी मेडिकल कॉलेज के बोर्ड सही है या फिर सीएमएचओं की ओर से बनाई कमेटी। क्या हर एंगल से जांच ही नहीं की। दरअसल, जगदीश खत्री ने हेजल की मौत के लिए डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाते हुए तीन फरवरी को सदर थाना में परिवाद दिया था। पुलिस ने चार मार्च को पीबीएम अधीक्षक को पत्र लिखकर इस पर राय मांगी। इस पर अधीक्षक ने बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. मोहन काजला, डॉ. पवन डारा, यूरोलॉजिस्ट डॉ. योगेंद्र और नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. जितेंद्र फलोदिया का मेडिकल बोर्ड गठित किया। बोर्ड ने दस्तावेजों की जांच के बाद हेजल के इलाज में किसी तरह की लापरवाही नहीं मानी। उन्होंने रिपोर्ट में लिखा को हेजल के किडनी और मूत्र पथ की जन्मजात विकृति थी। जबकि मेदांता अस्पताल गुड़गांव ने उसकी मृत्यु का कारण सेप्टिक शॉक, एक्सडीआर यूरोसेप्सिस, पायलोनेफ्राइटिस, एकेआई, गुर्दे और मूत्र पथ की जन्मजात विसंगति माना है।
सीएमएचओ को लिखा पत्र
जानकारी के अनुसार चार मार्च को बोर्ड ने रिपोर्ट तैयार कर सदर पुलिस को सौंप दी। उसके बाद पुलिस ने चार अप्रैल को सीएमएचओ को पत्र लिखा। सीएमएचओं ने खंड मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. रमेश गुप्ता, चिकित्साधिकारी शिशु डॉ. मुकेश जनागल की कमेटी से जांच कराई, जिसमें माना कि हेजल की मौत ऑपरेशन के बाद कॉम्पलीकेशन के कारण हुई। ऑपरेशन के बाद हेजल को डॉ. गौरव गोंबर के अस्पताल में चार-पांच दिन तक इलाज के लिए रोकना सही नहीं माना।
ये है मामला
रानी बाजार निवासी जगदीश खत्री अपनी बेटी हेजल की बीमारी को लेकर काफी परेशान थे। गंगाशहर स्थित डॉ. एलसी बेद को दो बार दिखाने के बाद भी कोई समाधान नहीं हुआ तो वे मरवाड़ हॉस्पिटल(आशीर्वाद चाइल्ड केयर सेंटर) में डॉ. गौरव गोंबर को दिखाया। मारवाड़ हॉस्पिटल में जयपुर के हॉप हॉस्पिटल से गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ. अंकित मंगला विजिट पर आते हैं। डॉ. गोंबर ने उन्हें दिखाने की सलाह दी। डॉ. अंकित के कहने पर जगदीश हेजल को लेकर जयपुर गए। उन्होंने हेजल के मुत्राशय और किडनी की जांचें करवाने के बाद ऑपरेशन करवाने की सलाह दी। डॉक्टर ने बताया कि बच्ची की बायीं तरफ की किडनी नहीं है। पेशाब नली भी दो है। उसके यूरेटर का रि प्लांट करना पड़ेगा और ब्लेडर का आकार भी सही करना होगा। डॉ. मंगला ने 11 नवंबर 24 को डिस्चार्ज कर 25 दिन की दवाएं लिख दी। बीकानेर लौटने पर हेजल की तबीयत वापस खराब होने पर जगदीश ने वापस डॉ. गोंबर को दिखाया। कई बार इलाज करवाने के बाद भी बच्ची ठीक नहीं हुई तो जगदीश उसे लेकर 14 अक्टूबर को हॉप हॉस्पिटल चले गए, जहां उसका ऑपरेशन किया गया। हेजल को 30 अक्टूबर को डिस्चार्ज कर दिया गया। तीन-चार दिन बाद बच्ची को फिर से तेज बुखार आया तो उसे डॉ. गोंबर को दिखाया गया। हालत में सुधार नहीं होने पर उसे 13 नंवबर को वापस हॉप हॉस्पिटल ले गए। आरोप है कि वहां इलाज के दौरान हेजल की तबीयत और ज्यादा बिगड़ती गई। उसका शरीर नीला पड़ चुका था और डॉक्टर उसे वहां रखने को तैयार नहीं थे। जगदीश ने बताया कि 20 नवंबर को वह हेजल को मेदांता हॉस्पिटल ले गया, जहां उसकी मौत हो गई। पिता की रिपोर्ट पर सदर थाना पुलिस ने मारवाड़ हॉस्पिटल के डॉ. गौरव गोंबर, हॉप हॉस्पिटल जयपुर के डॉ. अंकित मंगला और डॉ. प्रियंका मित्तल के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। जांच एएसआई अशोक अदलान को सौंपी गई है।
कहीं कमीशन का खेल तो नहीं…
गुरुवार को जब इसका मामला थाने में दर्ज हुआ तो हड़कंप सा मच गया। क्योंकि जो मामला कई महीनों पहले शांत हो गया वो गुरुवार को फिर से सामने आगया। एफआईआर दर्ज हुई तो कई परते धीरे-धीरे खुलकर सामने आने लगी। हालांकि हकीकत क्या है वो तो पुलिस जांच के बाद ही सामने आ पाएगा। लेकिन अब मामला सामने आने के बाद बाजार चर्चा ये ही है की ये कहीं कमीशन का खेल तो नहीं है। क्योंकि सवाल ये खड़ा होता है की बच्ची की तबियत जब ज्यादा खराब हो रही थी तो डॉ. गौरव गोंबर ने पीबीएम अस्पताल या किसी अन्य सरकारी अस्पताल की बजाय जयपुर के प्राइवेट अस्पताल में जाने की सलाह दी ही क्यों?

