आखिर क्या है ऐसा कि गहलोत हार कर भी अगली बाजी अपने नाम करते रहे ?

आखिर क्या है ऐसा कि गहलोत हार कर भी अगली बाजी अपने नाम करते रहे ?

1998 के विधानसभा चुनाव में एक नारा चला था  “गहलोत नहीं आंधी है, राजस्थान का गांधी है “।
अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाने में तो इस नारे सहयोग ना भी रहा हो लेकिन यकीनन इस नारे ने अशोक गहलोत को राजस्थान की राजनीति में एक नायक के तौर पर स्थापित कर दिया। लेकिन ये सफर इतना भी आसान नहीं था आंधी छोड़िए  हवा भी खिलाफ ही थी। छात्रसंघ चुनाव में ही महासचिव नहीं बन पाए तो विधायक के चुनाव में माधो सिंह से हार गए। एक साक्षात्कार में अशोक गहलोत कहते है कि चुनाव हार गया था लेकिन मैंने हिम्मत कभी नहीं हारी। हुआ भी यही ,आखिरकार जनता ने उन्हें जोधपुर से एक नहीं 5 बार सांसद बनाया। इंदिरा सरकार में  नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री बने वाकई अब सियासी हवा में उड़ना सीख गए थे गहलोत। लेकिन सियासी राह इतनी भी सरपट ना थी। चंद्रास्वामी से अनबन से फौरी तौर पर नुकसान हुआ पर शायद गहलोत का ये स्टैंड ही उन्हें सोनिया गांधी के और नजदीक ले गया। राजस्थान की राजनीति में स्व भैरोंसिंह शेखावत के खूब किस्से मिलते है तो गहलोत की जादूगिरी के चर्चे भी खूब है ,ये सच्चे है या नमक मिर्ची के साथ लगाकर परोसे जाते है ,ये जादूगर ही बता सकते है।  CM हरदेव जोशी के समय सरिस्का में  प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कार को एक कांस्टेबल ने गलत दिशा में जानबूझकर मोड़ा ताकि तत्कालीन मुख्यमंत्री जी की झूठ राजीव को पता चल सके । ये बात खूब चलती है कि उस सिपाही ने जो कुछ किया वो अशोक गहलोत के इशारे पर था। फिर एक SP के मामलें में बूटा सिंह की तरफदारी भी चर्चा में रही । एक और वाकिया जो मुझे याद पड़ता है 2014 में कांग्रेस कवर करते वक्त मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निशाने पर अशोक गहलोत थे । उन्होंने जादूगर कहकर एक तरह से अशोक गहलोत की खिल्ली सी उड़ाई थी मैंने गहलोत जी को फोन कॉल कर प्रतिक्रिया चाही तो पूछ बैठे अच्छा क्या कहना चाहिए? मैंने कहा शायद जनता तय करेगी गहलोत बीच मे ही बात काटकर बोल उठे कहा – जादूगर के कॉम्प्लिमेंट के लिए मुख्यमंत्री जी का शुक्रिया।
 गहलोत की खूबियों में इस बात की चर्चा भी खूब होती है कि सियासत में विरोधियों के खिलाफ  बोलना तो दूर उन्हें गहलोत की नाराजगी का अहसास भी राजनीतिक नुकसान के बाद ही हो पाता था। राज्य की सियासत में कई बार ऐसा हुआ कि विरोधी खेमे से तैयार किए गए नेता वो खेमा छोड़कर गहलोत की बात मानने को मजबूर होते थे। इन दिनों काबीना मंत्री और गहलोत के खास माने जाने वाले नेता उस वक्त के दमदार नेता नटवर सिंह की पैरवी से अध्यक्ष बने थे लेकिन चुनाव आते आते फिर सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा गहलोत चाहते थे ।
खैर आज मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपना 69वा जन्मदिन मना रहे है लेकिन उस वक्त तुलनात्मक रुप से कमउम्र वाला,पिछड़ी जाति का एक नेता ना केवल राज्य का मुख्यमंत्री बना अपितु सियासत का ऐसा जादूगर बनकर उभरा जिसका सियासी संयम  और धैर्य जितना कमाल का था उतनी ही कमाल की थी उसकी कूटनीति। तमाम दावों, अटकलों और दिल्ली दरबार के पत्रकारों के अनुमानों को धता बताते हुए तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे। राज्य के बाहर भेजे जाने के बाद भी पंजाब और कर्नाटक में गहलोत ने अपनी संगठनात्मक क्षमता का लोहा तो मनवाया लेकिन दो बार सीएम रहने   2-4 नेता अंदरखाने खिलाफत कर रहे थे और जुमला उछाला गया था युथ लीडरशीप का। इस बार चुनाव परिणामों के बाद से ही ना केवल पॉलिटिकल ड्रामा शबाब पर था बल्कि दिल्ली के दिग्गज पत्रकार अपने अपने मीडिया हाउसेज के जरिए आर्टिकल लिख कर गहलोत के CM नहीं बनने के समीकरण समझाए जा रहे थे।मानों वे मान बैठे थे या कांग्रेस आलाकमान को मनवाना चाह रहे थे कि  राजस्थान में कांग्रेस का पायलट कौन हो?
दिसम्बर की सर्दी में दिल्ली एयरपोर्ट पर पायलट के इंतज़ार , पायलट के नहीं आने और गहलोत के एयरपोर्ट से वापिस जाने के इस नाटकीय घटनाक्रम ने सियासी गर्माहट बढा दी थी। राजस्थान के कुछ खबरिया चैनल के पत्रकारों ने लाइव में जो कहा था यकीनन वो पत्रकार धर्म के बजाय गहलोत के प्रति खुन्नस का नजरिया ज्यादा नजर आ रहा था। मुझे आज भी याद है दिल्ली में चल रही बैठकों के दिन वाली वो शाम ,जब  कांग्रेस के नेता धर्मेन्द्र राठौड़ अशोक गहलोत के सरकारी निवास पर थे और मैं वहां टोह लेने पहुँचा था ( चैनल के लिए नहीं बस पॉलिटिकल रिपोर्टिंग के इंटरेस्ट के कारण) अनौपचारिक सवाल पर राठौड़ ने पलटकर कहा था लक्ष्मण जी आप बताइए गहलोत साहब के अलावा आप को कौन लगता है जो मोदी युग में स्थिर सरकार दे सकता है वाकई मुझे जवाब नहीं सूझा था …. बाद में कुछ संभलकर मैंने दिल्ली मीडिया हाउसेज की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा  पायलट क्यों नहीं हो सकते ? राठौड़ मुस्कुराए भर थे बोले कुछ नहीं।
लेकिन कमलनाथ की विदाई के क्षण से लेकर कोरोना के संकट काल में कांग्रेस के भीतर की किचकिच को झेलते हुए अशोक गहलोत वाकई  शुरुआती हिचकोलों के बाद आम आदमी के हितैषी मजबूत मुख्यमंत्री के तौर पर उभरे है। इस बार एक चीज और जो वे कर पाए वो ये कि दिल्ली का अंग्रेजी भाषी मीडिया भी उनको हाशिये पर नहीं रख पाया और वे भी इस बार दिल्ली के लिए लाइव उपलब्ध रहे।
हालांकि ये सच है कि वे चालाक है, समझदार है, हाजिर जवाबी में उनका कोई सानी नहीं,  दुश्मनों को शांति से ठिकाने लगाने की कला में भारतीय राजनीति में उनसा कोई भी नहीं । तो फिर क्या है ऐसा कि अशोक गहलोत  सब सियासी गुण रखते हुए भी अपनी छवि दूसरे नेताओं से इतर बना पाए,  आम और गरीब आदमी की आंखों में अशोक गहलोत का नाम उम्मीद जगाए या ना जगाए पर तसल्ली जरूर देता है।  शायद उनकी संवदेनशीलता, मिलने का ढंग और सामंती सियासी तौर तरीकों से दूरी।
उन्हें दूसरे नेताओं की तुलना में ना केवल अलग बना रहा है। महंगे कुकीज के बजाय ,पारले जी बिस्किट चाव से खाने वाले चाय पसंद इस मुख्यमंत्री में आम आदमी अपनी छवि देखता है और कनेक्ट कर जाता है  ।
 एक बार गांधी परिवार की खास मानी जाने वाली प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने  जो कहा था उस सच से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता ।अशोक जी काम तो अच्छा करते है लेकिन सरकार नहीं बचा पाते । वाकई ये सच भी है। गांधी के अनुयायी मुख्यमंत्री बेहतर प्रशासक और हवा को भांपने वाले सियासतदां है पर उन्हें ये समझना ही होगा कि गांधी जी के अर्थशास्त्रीय सिद्धांत बहुत कामयाब नहीं रहे। ये भी सच है कि काम के अत्यधिक भार के चलते पुराने सिपहसालार हावी हो जाते है वहीं सच ये भी है कि कानाफूसी बड़े नेताओं की हमेशा कमजोरी रही है गहलोत भी इससे अलग नहीं है ।हालांकि इस बार कुछ युवा IAS सीएमओ की टीम में लिए गए है। शायद गहलोत हवा के रुख को समझ रहे है, समझने की जरूरत भी है।
 दरअसल अशोक गहलोत से राज्य की जनता को जितनी उम्मीद है उससे कई गुणा ज्यादा आशाएं उनकी अपनी पार्टी के नेताओं को है। दरकती पार्टी  को दिल्ली में वापसी की झीनी सी आस को हकीकत में बदल सकने की कुव्वत वाले कुछ नेताओं में अशोक गहलोत का नाम शीर्ष पर है ।सच भी है सियासी चुनौतियों और मजबूरी को अवसर में बदलने का जादू राजस्थान के इस जादूगर से बेहतर जानने वाला शायद ही कोई कांग्रेस में है। लेकिन अहम सवाल ये भी है कि क्या वे अरुणा राय की बात का तोड़ बचे हुए तीन सालों में निकाल पाएंगे ?
पत्रकार लक्ष्मण राघव।
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