राजपूत समाज किसके साथ? बीकानेर सहित 40-50 विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव

राजपूत समाज किसके साथ? बीकानेर सहित 40-50 विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव

जयपुर: बीते कुछ सालों में राजपूत वर्ग को कांग्रेस से जोड़ने के कई प्रयास हुए कुछ जगह सफलता मिली फिर भी यह कहा नहीं जा सकता कि राजपूत वर्ग ने बीजेपी का पूरी तरह तिरस्कार कर दिया अभी भी जड़े गहरी है. अब एक बार फिर प्रयास हुए है ,आज क्षत्रिय युवक संघ के प्रांगण में कांग्रेस से जुड़े राजपूत नेता एकत्रित हुए और समाज के प्रति निष्ठा जताई . कांग्रेस और राजपूत को लेकर विचार गोष्ठी का समय ऐसा रखा गया जब राजस्थान में उप चुनाव है. उल्लेखनीय है राजपूताना की राजनीति को आजादी के बाद से ही राजपूत समाज प्रभावित करता आया है युवक संघ प्रमुख भगवान सिंह रोलसाहबसर का संदेश काफी अहम है.

विधानसभा चुनावों के समय आंदपाल , चूतर सिंह फैक्टर ,राजमहल पैलेस होटल, पद्मावती फिल्म,मानवेंद्र सिंह का कांग्रेस में जाना समेत कई मसले ऐसे रहे जब राजपूत समाज ने कांग्रेस का साथ दिया था.. आनंद पाल जाति से रावणा था लेकिन राजपूत संगठन एनकाउंटर के खिलाफ खड़े हो गए राजपूत – रावना वर्ग एक जाजम पर आ गए.नतीजा यह निकला कि शेरगढ़,कोलायत जैसी सीटों पर समाज ने बीजेपी के बजाय कांग्रेस के राजपूत को वोट दिया. देवी सिंह भाटी, राव राजेंद्र सिंह,बाबू सिंह राठौड़ राजपाल सिंह शेखावत सरीखे चेहरे चुनाव हार गए जो जीते वो अपने दम पर लेकिन लोकसभा चुनाव आते समाज ने धारणा बदल दी. कांग्रेस के राजपूत चेहरे बुरी तरह चुनाव हार गए. धारणा को बदलने के लिए समय से पहले कांग्रेस के राजपूत नेताओं ने प्रयास शुरू कर दिए है, इन्ही नेताओं के आग्रह पर प्रताप फाउंडेशन ने  राजपूत समाज और कांग्रेस विषय को लेकर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया . क्षत्रिय युवक संघ प्रमुख भगवान सिंह रोल साहबसर और महावीर सिंह सरवडी ने कांग्रेस के राजपूत नेताओं को संबोधित किया . परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास,राज्य मंत्री भंवर सिंह भाटी ,कांग्रेस नेता धर्मेंद्र सिंह राठौड़,गोपाल सिंह इड़वा समेत प्रमुख नेता शामिल हुए .

राजस्थान में जमींदारा प्रथा के खिलाफ जब कांग्रेस खड़ी हुई तब राजपूत राजे रजवाड़ों का झुकाव विपक्षी दलों की और रहा. साल 1956में जब राम राज्य परिषद की ओर से करीब 50राजपूतों ने चुनावों में जीत दर्ज की. बेहद कम राजपूत ही कांग्रेस के टिकट पर जीते थे. बहुत कम लोगों को पता है कि बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री और कद्दावर राजपूत नेता भैरों सिंह शेखावत को राम राज्य पार्टी ने 1952में टिकट नहीं दिया था ,बाद में उन्होंने जनसंघ का दामन थामा था. आगे चलकर राम राज्य परिषद मिल स्वतंत्र पार्टी में जिसकी अगुवाई जयपुर की राजमाता गायत्री देवी कर रही थी. स्वतंत्र पार्टी का अस्तित्व खत्म हुआ तब राजपूत राजनीति शिफ्ट हुई जनता पार्टी में और आगे चलकर सोहन सिंह,बिशन सिंह शेखावत,मदन सिंह दांता,तन सिंह जैसे कद्दावर नेताओं की अगुवाई में राजपूत जुड़ गये बीजेपी से और राजपूताना में कमल खिला दिया. जोधपुर राजपरिवार का भी राजपूत पॉलिटिक्स पर सीधा प्रभाव रहा. आज भी जोधपुर महाराजा गजसिंह की ताकत का सबको अंदाजा है.

राजपूताना में राजपूत

प्रमुख राजपूत दिग्गज

स्व महाराजा मान सिंह द्धितीय

स्व.तन सिंह,स्व.महाराजा हनुमंत सिंह

स्व.महाराजा कर्णी सिंह ,केसरी सिंह पाटोदी,राव धीर सिंह

जोधपुर महाराजा गज सिंह,कल्याण सिंह कालवी,भैरों सिंह शेखावत

कुल जनसंख्या 11प्रतिशत

रावणा को मिलाकर 14 प्रतिशत

सरकारी आंकड़े 9प्रतिशत

40-50 विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव

वेस्टर्न राजस्थान,सेंट्रल राजस्थान,अजमेर,जयपुर ,जोधपुर संभाग ,बीकानेर , उदयपुर संभाग में राजपूत लगभग 40सीटों पर जीतने और जीताने की स्थिति झुंझुनूं और चूरु में राजपूत वहां की सीटों को सीधे प्रभावित करते है
लोकसभा की 20 से 22सीटों पर सीधा प्रभाव

तन सिंह ने क्षत्रिय युवक संघ की नींव रखी थी. विशुद्ध राजपूत संगठन के तौर पर क्षत्रिय युवक संघ को खड़ा कर दिया. आगे चलकर राजपूत आरक्षण आंदोलन के वक्त क्षत्रिय युवक संघ की कोख से ही प्रताप फाउंडेशन ने जन्म लिया. राजपूत सभा भवन की अपनी भूमिका रही है,सभा भवन शिक्षण संस्था के तौर पर अग्रणी. राजपूताना की राजनीति में राजपूत समाज की भूमिका व्यापक रही है. सरपंच से लेकर सांसद तक बड़ी तादाद में इस समाज की अपनी भूमिका है. कांग्रेस के राजपूत नेता चाहते है समाज का साथ मिले. कार्य आसान नहीं है, कोशिशें जारी है. यही कारण उप चुनाव की रणनीति को बीच में छोड़ कर प्रताप सिंह खाचरियावास और धर्मेंद्र राठौड़ को मेवाड़ से जयपुर आना पड़ा.

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