
खुद्दार कहानी:7वीं क्लास से खेती करने लगे, 12वीं बाद पढ़ाई छोडऩी पड़ी; आज खुद का सीड बैंक है






नई दिल्ली। ओडिशा के बरगढ़ जिले के रहने वाले सुदामा साहू का बचपन संघर्षों में बीता। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। थोड़ी बहुत खेती और मजदूरी करके उनके पिता जैसे-तैसे परिवार का गुजारा करते थे। इसी बीच उनके पिता की तबीयत खराब हो गई। उन्होंने काम करना छोड़ दिया। परिवार में बूढ़े दादा जी और सुदामा के अलावा कोई और था नहीं जो कुछ काम कर सके और आमदनी हासिल कर सके। कई बार तो दो वक्त का खाना भी ठीक से नसीब नहीं होता था।
मजबूरन सुदामा को कम उम्र में ही खेती और मजदूरी करनी पड़ी। 12वीं के बाद उनकी पढ़ाई भी छूट गई। 16 साल के सुदामा के सामने संघर्ष बड़ा और लंबा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। खेती को ही करियर और जुनून बना लिया, नए प्रयोग किए, यहां तक कि सरकारी नौकरी का ऑफर भी ठुकरा दिया। आज सुदामा के पास खुद का देसी बीज बैंक है। 1100 से ज्यादा अलग-अलग वैराइटी के बीज उनके पास हैं। देशभर में वे इसकी मार्केटिंग कर रहे हैं। सालाना 40 लाख रुपए से ज्यादा उनका टर्नओवर है। कई बड़े संस्थानों में उनके देसी बीज पर रिसर्च हो रहा है। ओडिशा के कई स्कूलों में उनकी लिखी किताब पढ़ाई जा रही है।
12वीं बाद पढ़ाई छोडऩी पड़ी
सुदामा कहते हैं कि खेती से मेरा गहरा लगाव रहा है। मैंने अपने दादा जी से खेती और बीजों को सहेजने की ट्रेनिंग ली है।
सुदामा कहते हैं कि खेती से मेरा गहरा लगाव रहा है। मैंने अपने दादा जी से खेती और बीजों को सहेजने की ट्रेनिंग ली है।
48 साल के सुदामा कहते हैं, “पिता जी की तबीयत खराब होने के बाद परिवार को संभालने की जिम्मेदारी मेरी थी। मां और पिता जी चाहते थे कि मैं पढ़ाई करूं, लेकिन घर का खर्च चलाने के लिए हमारे पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था। लिहाजा 7वीं क्लास से ही मैं खेती करने लगा। मां भी मेरे साथ खेत में काम करती थीं और हल खींचने में मदद करती थीं। मैं हर रोज स्कूल से आने के बाद खेती के काम में लग जाता था। धीरे-धीरे खेती में मेरी दिलचस्पी बढऩे लगी और 12वीं के बाद मैंने पढ़ाई छोड़ दी और फुल टाइम खेती करने लगा।”
सुदामा को खेती की बेसिक ट्रेनिंग उनके दादा जी से मिली थी। वे सुदामा को खेती की प्रोसेस समझाते थे ताकि ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्शन हो। सुदामा कहते हैं, “दादा जी ने मुझे देसी बीज को बचाने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि बिना देसी बीज को बचाए हम सही खेती नहीं कर सकते हैं। देसी बीज हमारे पूर्वजों की विरासत है, अगर हमने इन्हें नहीं सहेजा तो आने वाली पीढिय़ों को सही अनाज खाने को नहीं मिलेगा। इसके बाद मैं देसी बीज को बचाने में जुट गया। तब हमारे पास सिर्फ दो देसी बीज थे।”
सुदामा कहते हैं कि स्पोट्र्स कोटे के तहत उन्हें सरकारी नौकरी का ऑफर मिला था, लेकिन खेती छोडक़र वे कहीं और नहीं जाना चाहते थे, इसलिए पिता जी की नाराजगी के बाद भी नौकरी नहीं की।
गांव-गांव जाकर देसी बीज इक_ा करने लगे
सुदामा बताते हैं कि देसी बीज कलेक्ट करने के लिए मैं गांव-गांव जाने लगा। वहां किसानों से मिलकर उनसे बीज खरीद लेता था, लेकिन कुछ दिनों बाद मुझे रियलाइज हुआ कि इस तरह काम ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा। हर बीज की पहचान मैं नहीं कर सकता और न ही इन्हें ज्यादा दिनों तक सहेज कर रख सकता हूं।
इसके लिए मुझे ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी, बीज बैंक बनाने और उन्हें स्टोर करने की प्रोसेस समझनी होगी। इसके बाद मैंने वर्धा (महाराष्ट्र) गांधी आश्रम में जाकर ऑर्गेनिक खेती और बीज सहेजने की ट्रेनिंग ली। यहां मुझे काफी कुछ समझने को मिला। बीज के बारे में मेरी जानकारी बढ़ गई। इसके बाद मैं अलग-अलग राज्यों में जाकर किसानों से देसी बीज कलेक्ट करने लगा।
वे कहते हैं कि एक बार मैं छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में किसानों को ट्रेनिंग देने के लिए गया था। वहां बिजली गिरने से एक मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा था। इस वजह से गर्भगृह में काम चल रहा था। जब मैं वहां पहुंचा तो देखा कि यहां बहुत सारे अनाज हैं। मुझे लगा कि यहां कई नई वैराइटी मिल सकती है, क्योंकि मंदिर में लोग कई जगहों से आते हैं।
बीज को बचाने के लिए सुदामा अपने खेत को अलग-अलग हिस्सों में बांट लेते हैं। इसके बाद वैराइटी के हिसाब से उनकी प्लांटिंग करते हैं।
बीज को बचाने के लिए सुदामा अपने खेत को अलग-अलग हिस्सों में बांट लेते हैं। इसके बाद वैराइटी के हिसाब से उनकी प्लांटिंग करते हैं।
मैंने उन लोगों से आग्रह किया और एक बोरा अनाज मुझे मिल गया। सुदामा कहते हैं कि तब करीब 80 नई वैराइटी मिली थी, इसकी पहचान भी उसी जगह के लोगों ने की थी। यह मेरे लिए टर्निंग पॉइंट रहा। 2009 तक मेरे पास 300 से 400 तक बीजों की वैराइटी जमा हो गई। इसके बाद धीरे-धीरे उनका कारवां बढ़ता गया।
एक हजार से ज्यादा किसान जुड़े, देशभर में मार्केटिंग
फिलहाल सुदामा के पास 1100 से ज्यादा वैराइटी हैं। इसमें एक हजार से ज्यादा धान और बाकी वैराइटी दलहन फसलों की है। उनके पास देश की प्रमुख वैराइटीज के साथ ही श्रीलंका, भूटान, ब्रिटेन सहित कई देशों की वैराइटी हैं। इतना ही नहीं, वे इन बीजों की मार्केटिंग भी करते हैं।
अनुभव सीड बैंक नाम से उन्होंने एक संस्था बनाई है। इसमें एक हजार से ज्यादा किसान जुड़े हैं। सोशल मीडिया और वॉट्सऐप के जरिए देशभर से उनके पास ऑर्डर्स आते हैं। पिछले साल उन्होंने 40 लाख रुपए की मार्केटिंग की थी। जो उनके साथ जुड़े सभी किसानों की मेहनत का परिणाम था।
हजारों किसानों को ट्रेनिंग दी, कई स्कूलों में पढ़ाई जा रही उनकी किताब
सुदामा कहते हैं कि मैं खुद बीज बचाता ही हूं साथ ही दूसरे किसानों को भी इसकी ट्रेनिंग देता हूं। ओडिशा ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी मुझे ट्रेनिंग के लिए बुलाया जाता है। अब तक हजारों किसानों को ट्रेनिंग दे चुका हूं।
इतना ही नहीं कई स्कूलों में मेरी लिखी किताब भी बच्चों को पढ़ाई जा रही है। इसमें ऑर्गेनिक खेती की पूरी प्रोसेस और बीज बचाने की प्रोसेस की पूरी जानकारी दर्ज है। मैं खुद भी स्कूलों में जाता हूं और बच्चों को पढ़ाता हूं और उन्हें प्रैक्टिकल ट्रेनिंग भी देता हूं। कई स्कूलों में कैंपस गार्डन का मॉडल भी अपनाया गया है, जहां बच्चे खेती सीखने के साथ ही खुद भी फार्मिंग करते हैं।
कैसे करते हैं बीजों का संग्रह, क्या है प्रोसेस?
सुदामा फिलहाल 5 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। इसमें एक हिस्से पर वे खुद के खाने के लिए अनाज उगाते हैं। जबकि बाकी जमीन पर वे बीज बचाने के लिए खेती करते हैं। इसकी प्रोसेस को लेकर वे बताते हैं कि मैं जमीन को अलग-अलग हिस्सों में बांट लेता हूं और उस पर बीज की बुआई करता हूं। इसमें अलग-अलग वैराइटी के बीच टाइमिंग का गैप रखता हूं। ताकि उनकी आसानी से पहचान की जा सके।
फसल तैयार होने के बाद बीज संग्रह का काम शुरू होता है। इसके लिए मैंने देसी तकनीक अपनाई है। मेरे पास मिट्टी के हजारों मटके हैं। इन मटकों में गोबर और हल्दी का लेयर चढ़ा दिया जाता है। इसके बाद धूप में सुखा देते हैं, फिर इसमें बीज डालकर ऊपर से नीम की सूखी पत्तियां डाल दी जाती हैं। ताकि अंदर कीड़े नहीं लगें। हर 3-4 महीने के अंतराल पर हम इसको मॉनिटर करते हैं। इस तरह देसी बीज को सहेजा जाता है। वे कहते हैं कि आमतौर पर लोगों की धारणा होती है कि देसी बीज से ज्यादा प्रोडक्शन नहीं होता है, लेकिन यह हकीकत नहीं है। अगर देसी बीज सही हो तो उससे प्रोडक्शन काफी ज्यादा होता है।


