Gold Silver

9 साल बाद फिर खेला सियासी दांव!, केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने की संभावना न के बराबर

जयपुर: विधानपरिषद राजस्थान की सियासत के लिए सपने के समान है. सपने को पूरा करने की दिशा में फिर आगे बढ़े है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत. राजस्थान में 9 साल से केंद्र में लंबित पड़े विधानपरिषद के गठन के प्रस्ताव पर हालत जस की तस है. केंद्र सरकार ने विधानपरिषद के गठन पर राज्य की राय पूछी थी जिस पर अब सरकार जवाब भेज रही है, गहलोत मंत्रिपरिषद ने प्रदेश में विधानपरिषद के गठन के पक्ष में केंद्र को राय भेजने का प्रस्ताव पारित किया है. वसुंधरा राजे के पहले कार्यकाल में केंद्र को प्रस्ताव भेजा था. विधान परिषद के गठन को लेकर 18 अप्रैल 2012 को पिछली गहलोत सरकार के समय विधानसभा में सर्वससम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भिजवाया था. उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी, यूपीए सरकार ने भी काम आगे नहीं बढ़ाया और यह मुद्दा केवल चर्चा तक सीमित रह गया. बाद में केंद्र सरकार ने चिट्ठी लिखकर विधान परिषद का लेकर राज्य की मंशा पूछी, उस चिट्ठी का अब जवाब दिया जा रहा है. केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय ने 18 अप्रैल 2012 को राजस्थान विधानसभा में पारित हुए विधान परिषद के गठन के प्रस्ताव पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी के सुझावों के लेकर राज्य सरकार की राय मांगी थी.

बहराहल संसदीय मामलों के जानकार खासतौर पर घनश्याम तिवाड़ी इस पूरी कवायद को केवल सियासी शिगूफे के अलावा कुुछ भी महत्व देने को तैयार नहीं हैं. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधि मंत्री घनश्याम ​तिवाड़ी का कहना है, पहले दो बार विधान परिषद का प्रस्ताव केंद्र में भेजा हुआ है. इसकी एक लंबी प्रक्रिया हैं मंत्रिपरिषद का प्रस्ताव केवल सियासी शिगूफा है, इससे कुछ नहीं होगा. पहले से 10—11 राज्यों से विधानपरिषद के गठन के प्रस्ताव केंद्र सरकार में लंबित चल रहे हैं. हाल ही बंगाल ने भेज दिया है. मौजूदा हालत में विधान परिषद के गठन पर कुछ होना नहीं है. इसके पीछे कारण भी है, मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए केंद्र सरकार से राजस्थान में विधानपरिषद के गठन की मंजूरी मिलने की संभावना न के बराबर है.

वसुंधरा राजे के पहले कार्यकाल में केंद्र को प्रस्ताव भेजा था. विधान परिषद के गठन के लिए लंबी है प्रक्रिया, संसद के दोनों सदनों से बिल पारित होता है.विधान परिषद के गठन के लिए विधानसभा से संकल्प पारित करके केंद्र सरकार को भेजा जाता है, राजस्थान से दो बार संकल्प भेजा जा चुका है. इसके बाद केंद्र सरकार बिल लेकर आती है, उसका लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई बहुमत से पारित करवाना होता है, उसके बाद विधान परिषद के गठन की मंजूरी मिलती है. बहरहाल राजनैतिक तौर पर गहलोत सरकार के स्टेप का महत्व है. राज्य की कांग्रेस में चल रही सियासी खींचतान को बड़ा कारण माना जा रहा.

Join Whatsapp 26