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मूल निवासी प्रमाण पत्र बनवाने में छूट रहे है पसीने,सरकारी अड़चने बन रही बाधा

खुलासा न्यूज,बीकानेर। एक ओर तो सरकारों ने पेपरलेस कामकाज को बढ़ावा देते हुए आवश्यक दस्तावेजों के आधार पर आमजन के दस्तावेज बनवाने की पहल की है। किन्तु अब सरकार की यही पहल उनके नुमाइंदों को ना गवारा लग रही है। जिसके चलते सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन में भाषागत अड़चने पैदा कर आमजन के कागकाजों को लंबित किया जा रहा है। ऐसा ही मामला मूल निवासी दस्तावेज बनवाने में सामने आ रहा है। जिसमें वोटर लिस्ट को आधार बनाकर दस्तावेज नहीं बनाएं जा रहे है। इसको लेकर विप्र फाउण्डेशन ने आपति जताते हुए बीकानेर की तहसीलदार को एक ज्ञापन भी प्रेषित किया है। जानकारी मिली है कि विप्र फाउण्डेशन की ओर से विगत माह आर्थिक रूप से कमजोर सजातिय बंधुओं का शिविर लगाकर अभ्यार्थियों से आवेदन लिये थे। जिसके गृह विभाग की ओर से 28 अगस्त 2012 की ओर से जारी अध्यादेश के अनुरूप दस्तावेज लगाकर उनका ऑनलाइन आवेदन कर दिया गया। लेकिन सैकड़ों अभ्यार्थियों के आवेदन यह कहते हुए लौटा दिए गये है कि इनके 2008-2014 की वोटर लिस्ट नहीं लगी हुई है। जबकि गृह विभाग की ओर से 28 अगस्त 2012 की ओर से जारी अध्यादेश में इस प्रकार के किसी भी दस्तावेज को साक्ष्य के लिये आधार नहीं माना गया है।
गृह विभाग ने इन दस्तावेजों को माना साक्ष्य
गृह विभाग की ओर से 28 अगस्त 2012 में शासन उप सचिव आपदा प्रबंध की ने एक अध्यादेश जारी कर मूल निवास प्रमाण पत्र बनवाने के लिये कुछ अधिकारियों को अधिकृत करने के साथ उनके लिये आवश्यक दस्तावेजों को साक्ष्य बनाया गया है। इनमें राजस्थान में पैदा हुआ हो और उसके माता-पिता इस राज्य के मूल निवासी हो। इनके साथ माता/पिता का मूल निवासी प्रमाण पत्र व चुनाव पहचान पत्र/पासपोर्ट/ड्राइविंग लाइसेंस/अन्य फोटो पहचान पत्र या लगातार दस वर्षों के बिजली/पानी/ टेेलीफोन के बिल(प्रत्येक वर्ष का एक-एक),10 वर्षों के लगातार शिक्षण प्रमाण पत्र,विवाह प्रमाण पत्रों को इसका मूल आधार माना गया है। परन्तु तहसील कार्यालय में इन दस्तावेजों के साक्ष्य होने के बाद भी वोटर लिस्ट मांगकर अभ्यार्थियों को परेशान किया जा रहा है। जबकि अध्यादेश में किसी भी प्रकार से वोटर लिस्ट लगाएं जाने का प्रावधान ही नहीं है। अगर आवेदक की ओर से इसमें से किसी भी प्रकार का साक्ष्य लगाया गया है तो उन्हें जांच के बाद मूल निवासी प्रमाण पत्र मुहैया करवाने का प्रावधान है।
आपतियां भी समझ से परे
इतना ही नहीं कई आवेदकों ने तो यह भी बताया कि उन्हें माता-पिता के डिजिटल मूल निवासी प्रमाण पत्र की कॉपी मांगी जा रही है। जबकि राज्य सरकार की ओर से प्रशासन-गांवों में लगाएं गये शिविरों में डिजिटल मूल निवासी प्रमाण पत्र नहीं बनाएं गये। ऐसे में अध्यादेशों में इन्हें भी पूर्णतया मान्य करने की बात को तहसील कार्यालय में सवालों के घेरे में खड़ा कर रहा है।
वर्जन
हमने गृहविभाग के अध्यादेश के आधार पर ही अभ्यार्थियों से आवेदन लेकर ऑनलाइन प्रोसेस किया। किन्तु करीब डेढ सौ आवेदनों में एक ही प्रकार की आपतियां लगाना उचित नहीं। तहसील कार्यालय साक्ष्यों की जांच कर उन्हें मूल निवासी प्रमाण पत्र जारी करें। किन्तु वे ऐसा नहीं कर महज आपति लगा रहा है। हमने तहसीलदार से मिलकर अपनी बात रखी है। संगठन की मांग है कि बेवजह आपति न लगाकर साक्ष्यों की जांच कर जल्द प्रमाण पत्र जारी करवावें।
भंवर पुरोहित,प्रदेशाध्यक्ष विप्र फाउण्डेशन

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