कोरोना:जांच पर लगा ब्रेक,आंकड़ों को मैनेज करने में जुटा चिकित्सा महकमा,देखे विडियो

कोरोना:जांच पर लगा ब्रेक,आंकड़ों को मैनेज करने में जुटा चिकित्सा महकमा,देखे विडियो

खुलासा न्यूज,बीकानेर। कोरोना की तांडव मचाती दूसरी लहर के प्रकोप को छिपाने का खेल अब शुरू हो गया है। जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग ने आंकड़ों को मैनेज करने के प्रबंधन में जुट गया है। इसके लिये विभाग ने साधन के रूप में कोरोना के लक्षणों से पीडि़तों की जांच न करना साधन बनाया है। खुलासा के पास इस तरह के अनेक फोन कॉल्स आने के बाद इसकी जमीनी हकीकत जानने के लिये खुलासा की टीम ने अलग अलग स्वास्थ्य केन्द्रों पर जाकर पुष्टि करनी चाही। तो सामने चौकानें वाले तथ्य आएं। अनेक स्वास्थ्य केन्द्रों में तो कोरोना लक्षण से पीडि़त मरीजों से उलटे सवाल के साथ साथ सलाह भी दी जा रही थी। जांच करने वाले कार्मिक उन्हें पूछ रहे थे कि आखिर आपको जांच क्यों करवानी है। अगर आप पॉजिटिव तो 14 दिन घर में आइसोलेट हो जाएं। आराम आ जाएगा। भला कार्मिकों को जांच करने में क्या आपति आ रही है। यह समझ से परे है। यह हालात शहरी डिस्पेन्सरी या स्वास्थ्य केन्द्रों के ही नहीं बल्कि सीएचसी और पीएचसी के भी है। ग्रामीण इलाकों में भी लक्षण वाले मरीजों को सीधा उतर दिया जा रहा है और जांच से साफ इंकार किया जा रहा है।अगर सरकारी आंकड़ों की बात की जाएं तो जांचों पर अंकुश लगाने के बाद भी 15 से 20 प्रतिशत से ज्यादा मरीज संक्रमित हो रहे है। जबकि मौत का आंकड़ा तो इससे भी ज्यादा है।
तो कैसे टूटेगी चैन
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की इस पॉलिसी से आखिर कैसे टूटेगी चैन। विभाग की इस रणनीति से कोरोना का खतरा ओर बढ़ गया है। कोरोना संक्रमण के लक्षण वाले बाजार में घूम रहे कितने लोग वास्तव में संक्रमित है और वे अन्य को संक्रमित कर रहे है। इसका लेखा जोखा किसी के पास नहीं है। महज रोज मीडिया के जरिये बुलेटिन जारी करवाकर आमजन में प्रशासन और सरकार की छवि को मैनेटेन करने का काम किया जा रहा है।
मॉनिटिरिंग के अभाव में बिगड़ रहा है खेल
हालात यह है कि जिले में तीन मंत्री होने के बाद भी पीबीएम सहित अन्य स्वास्थ्य केन्द्रों और चिकित्सा विभाग की मॉनिटिरिंग नहीं हो रही है। एक ओर केन्द्रीय मंत्री तो दूसरी ओर सरकार और उसके मंत्री कोविड से राहत के लिये संसाधन उपलब्ध करवाने के दावे कर रहे है। किन्तु हकीकत इससे परे है। मंजर यह है कि अस्पताल में भर्ती बैड में ज्यादातर बीआईपी की सिफारिश वाले है। जिन्हें पूरे संसाधन मिल रहे है। आम भर्ती मरीज की कोई सुनवाई तक नहीं होती। जिसके चलते युवाओं की मौत हो रही है।

 

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