
बीकानेर – शहरों की शरण में गए वे पुनः गांव की धरती पर लौटे






श्रीडूंगरगढ़ । कोरोना ने जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है और युवा जो पारम्परिक कार्यों से भाग कर शहरों की शरण में गए वे इन दिनों पुनः गांव की धरती पर लौट आए है। ऐसे में हमारे क्षेत्र के गांव डेलवां के किसान तोलाराम डेलू उनके लिए प्रेरणा बन रहे है। अपने किसान पिता भगवानाराम से तोलाराम ने परम्परागत पशु पालन सीखा और आज पशुपालन की दिशा में सफलता की एक नई इबारत गढ़ रहें है। तोलाराम ने बताया कि मैं भी लगातार मौसम परिवर्तन से खेती में होने वाले नुकसान को देखकर निराश होने लगा था। तभी करीब ढाई वर्ष पूर्व हनुमानगढ़ क्षेत्र के एक मित्र के यहां जाना हुआ जो कि डेयरी के साथ ही पशु क्रय-विक्रय का कार्य करते थे। हालांकि सभी किसान कृषि के साथ पशुपालन भी पारंपरिक तरीके से करते है। परंतु अपने मित्र के वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन कार्य को देखकर तोलाराम भी उम्मीद से भर गए। तोलाराम ने बताया कि उन्होंने इससे पहले कभी पशुपालन के बारे में नहीं सोचा था। उन्होंने पशुपालन को आजीविका के रूप में अपनाने की ठानी और इसे सार्थक भी किया। वे अपनी ढाणी में ग्राम में 13 एच एफ नस्ल, 8 राठी नस्ल की गाय, 2 मुर्रा नस्ल की भैंस लेकर आए व वैज्ञानिक तरीके से एक डेयरी फार्म स्थापित किया। तोलाराम ने इन पशुओं के लिए धूप व सर्दी से बचाव के लिए एनिमल शेड भी बनवाए। इस व्यवसाय में मेहनत करने पर अच्छा मुनाफा कमाया। वे इन पशुओं को चारे के रूप में जौ, ज्वार व रिजका को वैज्ञानिक अनुपात में देने लगे जिससे पशु की आहार आवश्यकता भी पूरी हो जाए तथा दुग्ध उत्पादन भी अच्छा हो। तोलाराम ग्रामीण स्तर पर राजकीय पशु चिकित्सालय डेलवा से भी पशु चिकित्सक डॉ. सुभाष घारु द्वारा पशु संबंधी आहार, रोग, कृत्रिम गर्भाधान तथा कृमिनाशक, खनिज लवण आदि के बारे में जानकारी लेते रहते है। तोलाराम ने टाइम्स को बताया कि सभी लागत खर्च निकालने के बाद 4 से 5 लाख की वार्षिक आय हो रही है। बता देवें ये कई प्राइवेट नोकरियों से बड़ा पैकेज है। तोलाराम ने बताया कि वे भविष्य में पशुओं की संख्या में वृद्धि कर, अजोला व मशीन द्वारा मिल्किंग करने पर विचार कर रहें है जिससे शुद्ध दुग्ध उत्पादन के साथ अपनी आय बढ़ा सकें।


