
4 पोते-पोतियों को गांव की गलियों में ढूंढ रहा दादा, मां सिर्फ रो रही, पिता सुध-बुध खो बैठे





खुलासा न्यूज,बीकानेर। जिले के नापासर थानान्तर्गत हिम्मतासर गांव में हुए दर्दनाक हादसे के बाद गांव में पूरी तरह सन्नाटा पसरा है। कहीं से कोई आवाज आती है तो सिर्फ सिसकियों की और बीच-बीच में चिडिय़ों की चहचहाहट खामोशी तोड़ देती है। कभी-कभी 70 साल के मालाराम के रोने की आवाज गांव के सन्नाटे को चीर देती है। मालाराम वह अभागा दादा है जिसके 4 पोते-पोतियां अब इस दुनिया में नहीं हैं। रविवार की रात खेल-खेल में 4 पोते-पोतियों समेत 5 बच्चे अनाज की (टंकी) कोठरी में छिप गए थे। तभी टंकी का ढक्कन गिर गया और दम घुटने की वजह से सभी बच्चों की मौत हो गई थी।
थोड़ी-थोड़ी देर में मालाराम बच्चों की तरह बिलखता हुआ बोल पड़ता है, “अरे गळी में देखो रे, म्हारे टाबरां ने…”। (अरे गली में देखो..मेरे बच्चे हैं) उसे पता है कि पोते और पोतियां अब वापस नहीं आएंगे। लेकिन दिल बार-बार उन्हें गली में तलाश रहा है। पास बैठे दादा के साथी बहुत सख्ती से उन्हें हकीकत से रूबरू करवाते हैं कुछ भी कर लो, बच्चे अब वापस नहीं आएंगे। लेकिन वह मानने को तैयार नहीं।जिस घर का आंगन बच्चों की शैतानियों और उछल-कूद से खुश रहता था। वह अब खामोश है। रिश्वतेदार और गांव के लोग आंगन में बैठे हैं, लेकिन सब चुपचाप है। कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। मां तो बस रोए जा रही है। वह होश में नहीं है। वहीं 4 बच्चों का पिता भींयाराम होश में तो है। लेकिन उसे होश नहीं है। रिश्तेदारों से बात करता है। खुद को बार-बार कोसता है। फिर चुपचाप घर की दीवार से चिपककर रोने लगता है।सिर्फ भींयाराम के घर का आंगन नहीं, गांव का स्कूल और गलियां भी गमगीन हैं। न तो पड़ोसियों का मन लग रहा है और न स्कूल में टीचर्स का दिल लग रहा। यहां तक कि दुकानों पर बैठे युवा भी इन दिनों अनमने से नजर आ रहे हैं।उस सरकारी स्कूल में भी मातम का माहौल है, जहां पांचों बच्चे पढ़ते थे। मंगलवार को एक टीचर की आंखों से उस समय अश्रुधारा बह निकली जब राधा की कॉपी सामने आई। राधा ने घर से ही काम करके कॉपी जमा कराई थी, जिस पर अच्छी हैंडराइटिंग देखते हुए टीचर ने लिखा था “कार्य अच्छा है”। कॉपी चेक करके मैडम ने हस्ताक्षर के नीचे 20 मार्च की तारीख लिखी हुई है। 21 मार्च को खुद राधा का अध्याय समाप्त हो गया। इन बच्चों को पढ़ाने वाले टीचर्स में शमशाद भुट्टा, साजिदा जोईया, अशोक तंवर, सरीता शर्मा, संतोष कुमार नेगी शामिल हैं। इन सबकी नम आंखें आज भी स्कूल में बच्चों को ढूंढ रही है।
नानी के साथ स्कूल आती थी माली
यहां पढऩे वाली माली अपनी नानी आशा देवी के साथ आती थी। आशा देवी स्कूल में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम करती है। माली का स्कूल में पूजा नाम था। पांचों बच्चों में सबसे ज्यादा स्कूल वही आती थी। शिक्षिका शमशाद भुट्टा कहती हैं कि माली को पढऩे की बड़ी लगन थी। रविना भी बहुत होशियार थी। अपना काम करके तुरंत कॉपी जमा करवाती। अभी 20 मार्च को ही वो स्कूल से अपना होमवर्क चेक करवाकर गई थी। स्कूल की नई छात्रा थी लेकिन सभी टीचर्स के दिल में जगह बना ली थी।
लॉकडाउन में नहीं आए स्कूल
रविना और राधा दोनों स्कूल में नए स्टूडेंट थे। रविना पहले अपने ननिहाल के गांव में पढ़ती थी। इसी साल वो अपने दादा के घर आई थी। इसी तरह राधा ने तो प्रवेश ही पहली बार लिया था। फिर भी कई बार कॉपी चेक करवाने के लिए तो कभी कोई सवाल हल करवाने स्कूल आ ही जाती थी। अधिकांश बार तो टीचर खुद उनके घर जाकर पढ़ाते थे। सरकार के निर्देश के कारण घर पर जाकर पढ़ाई करवानी पड़ती थी। यहां तक कि उनका भाई देवराम भी कई बार स्कूल आया है। टीचर्स के पास ऐसा ही एक फोटो भी मिला, जिसे देखकर उनकी आंखें गीली हो रही हैं। इनमें सभी बच्चे आसपास बैठे हुए थे।

